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कच्चा तेल 14 साल के सबसे महंगे स्तर पर पहुंचा, मोदी सरकार के सामने आई नई चुनौती


नई दिल्ली । अंतरराष्ट्रीय बाजार (International Markets) में कच्चे तेल की कीमतें (Crude Oil Prices) आसमान छू रही हैं। कच्चे तेल के दाम 140 डॉलर प्रति बैरल (Per Barrel) के पार पहुंच गए हैं जोकि 14 साल का सर्वोच्च स्तर है । इधर यूक्रेन (Ukraine) में चल रही जंग के चलते यूरोपीय देश (European Countries) रूस (Russia) से गैस और तेल की निर्भरता (Gas & Oil Dependencies) कम करने पर विचार कर रहे हैं ऐसे में कच्चे के तेल की कीमत कभी भी 147.50 डॉलर के रिकॉर्ड उच्च स्तर को पार कर सकती है।

दरअसल, कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों से भारत की अर्थव्यवस्था पर भी बोझ बढ़ने वाला है खासतौर पर जब भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आयात पर बहुत अधिक निर्भर है। देश की लगभग 86 प्रतिशत कच्चे तेल की आवश्यकता आयात के माध्यम से पूरी की जाती है। ऐसे में देश के आयात बिलों में वृद्धि होना तय है। व्यापार घाटा देश के चालू खाते की शेष राशि पर दबाव को और बढ़ाएगा।

आरबीआई के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार भारत ने 2021-22 की दूसरी तिमाही में चालू खाता घाटा $9.6 बिलियन या सकल घरेलू उत्पाद का 1.3 प्रतिशत दर्ज किया। वित्तीय वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही में भारत ने चालू खाता अधिशेष $6.6 बिलियन दर्ज किया था जो सकल घरेलू उत्पाद का 0.9 प्रतिशत था। हाल के महीनों में व्यापार घाटा बढ़ा है। इससे चालू खाते के घाटे में तेज उछाल आने की उम्मीद है। हालांकि तेल की बढ़ती कीमतों से केवल चालू खाता अधिशेष ही प्रभावित नहीं होगा बल्कि भारतीय अर्थव्यस्था पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ने वाला है।



कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि से मुद्रास्फीति बढ़ेगी और जिसका सीधा असर आर्थिक विकास की गतिविधियों पर पड़ेगा। रूस-यूक्रेन संघर्ष के चलते गैस, खाद्य तेल, उर्वरक और कोयले जैसी अन्य वस्तुओं की कीमतों में भी उछाल आया है। इससे भारत के आयात बिल में 35 अरब डॉलर की बढ़ोतरी हो सकती है। कच्चे तेल और अन्य वस्तुओं का उच्च आयात बिल के चलते मुद्रास्फीति में कम से कम एक प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है।

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा पिछले महीने जारी आंकड़ों के अनुसार मुद्रास्फीति जनवरी 2022 में बढ़कर 6.01 प्रतिशत हो गई, जो पिछले महीने 5.66 प्रतिशत थी। खुदरा महंगाई ने सात महीनों में पहली बार आरबीआई के 6 फीसदी के टॉलरेंस बैंड की ऊपरी सीमा को पार कर लिया है। वहीं थोक मूल्य सूचकांक (WPI) आधारित मुद्रास्फीति जनवरी में 12.96 प्रतिशत रही।

उल्‍लेखनीय है कि 31 जनवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा संसद में पेश किया गया आर्थिक सर्वेक्षण, अप्रैल 2022 से शुरू होने वाले वर्ष के लिए सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि 8 से 8.5 प्रतिशत की है, यह मानते हुए कि 2022-23 के दौरान कच्चे तेल की कीमतें औसतन $ 70 से $ 75 प्रति बैरल होंगी। यहां इस बात को ध्यान में रखना होगा कि वित्त मंत्री ने संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण में अप्रैल 2022 से शुरू होने वाले वित्तीय वर्ष के लिए सकल घरेलू उत्पाद में 8 से 8.5 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान लगाया गया है। इसके पीछे यह माना गया था कि कच्चे तेल की कीमतें औसतन 70 से 75 डॉलर प्रति बैरल होंगी।

वहीं रूस ने चेतावनी दी है कि अगर अमेरिका और यूरोपीय देश रूसी तेल के आयात पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाते हैं तो कच्चे तेल की कीमत 300 डॉलर प्रति बैरल तक बढ़ सकती है। कच्चे तेल की कीमत पिछले एक साल में दोगुने से ज्यादा हो गई है। रूस द्वारा 24 फरवरी को यूक्रेन में सैन्य अभियान शुरू करने के बाद से इसमें 30 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। ब्रेंट क्रूड ऑयल, जो दिसंबर 2020 में 50 डॉलर प्रति बैरल से कम था, 7 मार्च को बढ़कर 140 डॉलर प्रति बैरल हो गया। ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत अप्रैल 2020 में कोरोना महामारी के दौरान 16 डॉलर प्रति बैरल के निचले स्तर पर पहुंच गई थी।

अगर 2022-23 के दौरान कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर रहती है, तो यह भारत के बजट गणित को काफी परेशान करेगा। केंद्रीय बजट 2022-23 में किए गए लगभग सभी मैक्रो-इकोनॉमिक अनुमानों पर इसका काफी प्रभाव पड़ेगा। भारत में पिछले चार महीने से डीजल और पेट्रोल के खुदरा दाम नहीं बढ़ाए गए हैं। विश्लेषकों का कहना है कि तेल विपणन कंपनियों, जो सरकार के नियंत्रण में हैं, ने राज्य चुनावों के कारण नवंबर 2021 से डीजल और पेट्रोल की खुदरा कीमतों में वृद्धि नहीं की है। ऐसा कहा जा रहा है कि इन दामों को न बढ़ाने के पीछे सरकार की तरफ से अनाधिकारिक फरमान था। चूंकि पांच राज्यों में चुनाव अब खत्म हो चुके हैं, इसलिए तेल की कीमतों में बाद की बजाय जल्द ही बढ़ोतरी की जाएगी।

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