अब यादे रफ़्तगां की भी हिम्मत नहिं रही
यारों ने इतनी दूर बसा ली हैं बस्तियां।
एक दौर था मियां जब सहाफत (पत्रकारिता) आज की तरा लाइजनिंग बेस्ड नईं थी। गोया के रिपोर्टर ददेड़म अपने काम को अंजाम देते थे। कोई पत्रकार अफसरों के सामने खबरों के लिए गेपें-गेपें नईं करता था। जांपे कोई मामला देखा तो ठोक के खबर दी जाती। मैं कोई भोत पुरानी बात नई कर रिया हूं मियां। येई कोई पैंतीस- छत्तीस बरस पुराना जिक्र है। मतलब मिज जैसे सहाफियों की इब्तिदा के मामले हेंगे। तब भोपाल में नवभारत, दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, इन्दोर की नईदुनिया जैसे अखबारों के ज़लज़ले हुआ करते थे। मिल्लत में बी मियां अखबार पढऩे का शौक होता था। नगर निगम की लाइब्रेरी और वार्डों की लाइब्रेरी में भाई लोग अखबारों का मुताला करते। मैं बात कर रिया हूं साब अस्सी की दहाई से बीच से लेके दो हज़ार तलक की। उस वखत नेट वेट कुच नईं होता था मियां। मुबाइल का तो खैर सवाल ही नई था। हम लोग हर खबर और घटना दुर्घटना के स्पॉट पे जाते और ख़बरों के पीछे की खबरें निकालते। तब के सहाफियों (पत्रकारों) में कम्पटीशन तो था बाकी जलन-कुढऩ नईं थी। हर बीट के रिपोर्टर रूटीन खबरों के लिए एक दूसरे से लपक राब्ते रखते। सन 1995-97 तलक सूबे के सरकारी कर्मचारियों के आंदोलन और हड़तालें शबाब पे होती थीं। लिहाज़ा कर्मचारी बीट भोत दमदार मानी जाती थी। बाद में जब दिग्विजयसिंह के दौर में कर्मचारी आंदोलन के कबाड़े हुए तो ये बीट तकरीबन ख़तम ही हो गई। उस दौर में कर्मचारी नेता, एनपी शर्मा, सुरेश जाधव, वीरेंद्र खोंगल, सत्यनारायण तिवारी सरकार की नाक में दम किये रहते थे। भेतरीन खबरें निकलती थीं इस बीट में। बाकी मैं आपको ये बताना चा रिया था साब के हमारे दौर में रिपोर्टरों के आपसी राब्ते और एक दूसरे की खबरों की तारीफ करने की रिवायत बन गई थी।
आज की तरा नईं था के किसी ने किसी को खबर में।पीट दिया तो खफा हो गए। इसके बरक्स जब भी किसी बंदे की ख़बर चर्चा में रेती तो सहाफी एक दूसरे को मुबारकबाद देते। ऋषि पांडे और राघवेंद्र सिंह अपने अखबार के अलावा दूसरे अखबारों के रिपोर्टरों को उनकी अच्छी खबर के लिए मुबारकबाद के लिए फोन ज़रूर करते। इनके अलावा उस दौर में पंकज पाठक, पूर्णेन्दु शुक्ला,रविंद्र जैन, प्रशांत कुमार,मृगेंद्र सिंह, प्रकाश भटनागर, राजेश चतुर्वेदी, राम मोहन चौकसे, प्रदीप गुप्ता पल्ली, सुनील गुप्ता, शेलेन्द्र शेली, राजेश दुबे, राजेन्द्र धनोतिया, केडी शर्मा, आरिफ मिजऱ्ा, राकेश दीक्षित, राजेश चंचल, भारत सक्सेना, देशदीप सक्सेना, भरत देसाई, खालिक साब, नासिर कमाल, संजय सक्सेना, संजय चतुर्वेदी, चंदा बारगल, रविन्द्र केलासिया सहित तमाम रिपोर्टरों के बीच उम्दा राब्ते थे। रोज़ शाम को इन अलग अलग अखबारों के सहाफियों की मुलाकाते प्रेस काम्पलेक्स के चाय पान के ठीये पे होतीं। कोई किसी खबर में लीड करता तो शाम की चाय के वखत वहाँ ये जुमले गूंजते- छा गए साब… आज तो गज़ब ढा दिया उस्ताज, क़लम ही तोड डाली मियां। चलो कोई नी…इज़्ज़तें, शोहरतें, चाहतें, उल्फ़तें कोई भी चीज़ दुनिया में रहती नहीं आज मैं हूँ जहाँ कल कोई और था ये भी एक दौर है वो भी एक दौर था।
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