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EWS आरक्षण: SC में रिव्यू पिटीशन दायर करेंगे याचिकाकर्ता, वकील ने किया कंफर्म

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दाखिले और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को 10 प्रतिशत आरक्षण (EWS Reservation) प्रदान करने वाले 103वें संविधान संशोधन की वैधता को बरकरार रखा. सर्वोच्च न्यायालय की 5 जजों की संविधान पीठ ने 3:2 के बहुमत से EWS कोटा के पक्ष में फैसला सुनाया और 103वें संविधान संशोधन को संवैधानिक करार दिया. जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने EWS कोटे के पक्ष में फैसला सुनाया, जबकि जस्टिस एस. रवींद्र भट और प्रधान न्यायाधीश जस्टिस यूयू ललित ने इसे असंवैधानिक माना.

सुप्रीम कोर्ट फैसले के बाद याचिकाकर्ताओं के वकील वरुण ठाकुर ने कहा कि वह रिव्यू पिटीशन दाखिल करेंगे. उन्होंने कहा, तीन जजों ने 103वें संविधान संशोधन को सही माना, जबकि 2 जजों ने संशोधन को सही नहीं माना है. इसी ग्राउंड को लेकर रिव्यू पिटीशन दाखिल करेंगे. सर्वोच्च अदालत ने विस्तृत तरीके से इस पूरे मामले को सुना और अपना आदेश दिया. EWS कोटा को असंवैधानिक करार देने वाले दो जजों ने जो टिप्पणियां की हैं, हम रिव्यू पिटीशन में वे मुद्दे शीर्ष अदालत के समक्ष रखेंगे. आपको बता दें कि इस मामले में कई याचिकाओं पर लंबी सुनवाई के बाद शीर्ष अदालत ने 27 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर चली लंबी बहस
सुप्रीम कोर्ट में बहस के दौरान याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने ईडब्ल्यूएस कोटे को असंवैधानिक बताया था, वहीं केंद्र का पक्ष रख रहे (तत्कालीन) अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इसका बचाव किया था. शिक्षाविद मोहन गोपाल ने इस मामले में 13 सितंबर को पीठ के समक्ष दलीलें रखी थीं और ईडब्ल्यूएस कोटा संशोधन का विरोध करते हुए इसे ‘पिछले दरवाजे से’ आरक्षण की अवधारणा को नष्ट करने का प्रयास बताया था. याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले कानूनी विद्वान मोहन गोपाल ने तर्क दिया कि सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग एक श्रेणी है, जो सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक पिछड़ेपन के आधार पर सभी श्रेणियों को पिछड़े वर्गों के रूप में एकजुट करती है. उन्होंने तर्क दिया कि वर्गों का विभाजन, आरक्षण देने के लिए एक पूर्वापेक्षा के रूप में आगे बढ़ने की गुणवत्ता संविधान के मूल ढांचे का विरोध करती है.


इससे पहले मोहन गोपाल ने तर्क दिया था कि, ‘103वां संशोधन संविधान के साथ धोखा है. जमीनी हकीकत यह है कि यह देश को जाति के आधार पर बांट रहा है. संशोधन सामाजिक न्याय की संवैधानिक दृष्टि पर हमला है. मेरे राज्य में, जो केरल है, मुझे यह कहते हुए खुशी नहीं है कि सरकार ने ईडब्ल्यूएस के लिए एक आदेश जारी किया और शीर्षक जाति था. वे सभी देश की सबसे विशेषाधिकार प्राप्त जातियां थीं.’ वरिष्ठ अधिवक्ता पी. विल्सन ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 15(4) और 16(4) आरक्षण प्रदान करने के प्रावधानों को सक्षम कर रहा है, जो सदियों से चले आ रहे सामाजिक भेदभाव को दूर करने और समानता को बढ़ावा देने के लिए सकारात्मक कार्रवाई है. उन्होंने कहा कि 103वां संशोधन अनुच्छेद 15(4) और 16(4) द्वारा हासिल की जाने वाली वास्तविक समानता को समाप्त और नष्ट कर देता है और समाज में एससी/एसटी/ओबीसी को पूर्व-संविधान स्थिति में वापस ले जाता है. एक वरिष्ठ वकील ने तर्क दिया कि केंद्र ने आरक्षण और गरीबी के बीच गठजोड़ प्रदान नहीं किया. एक अन्य वकील ने वर्गों के विभाजन के खिलाफ तर्क दिया और कहा कि 50 प्रतिशत की सीमा सही थी और इसका उल्लंघन करना मूल संरचना का एक चौंकाने वाला उल्लंघन होगा.

ईडब्ल्यूएस को 10% कोटा के पक्ष में दलीलें
केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले तत्कालीन अटॉर्नी जनरल के.के वेणुगोपाल ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण के पक्ष में तर्क दिया था कि एससी और एसटी को सकारात्मक कार्रवाई के माध्यम से लाभ दिया गया है- सरकारी नौकरियों, विधायिका, पंचायत और नगर पालिकाओं में पदोन्नति में आरक्षण दिया गया है- और ईडब्ल्यूएस कोटा संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है. उन्होंने 103वें संविधान संशोधन का बचाव किया. उन्होंने कहा कि 10 फीसदी ईडब्ल्यूएस आरक्षण, रिजर्वेशन के 50 फीसदी कोटा में दखल डाले बिना दिया गया है, जो सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) के लिए है. एजी ने कहा कि एससी, एसटी और ओबीसी सहित पिछड़े वर्गों में से प्रत्येक में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग शामिल हैं, और सामान्य श्रेणी में भी आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग शामिल हैं, जो बेहद गरीब हैं. उन्होंने तर्क दिया कि एससी, एसटी और ओबीसी कोटा पिछड़ेपन का स्व-निहित वर्ग है और ईडब्ल्यूएस कोटा अलग है.

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