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किसान की फसल की खुलेआम हो रही लूट, मुख्यमंत्री को गम्भीरता से नहीं ले रहे अफसर: अखिलेश

लखनऊ। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि उत्तर प्रदेश में अन्नदाता किसान भाजपा सरकार की कुनीतियों के कारण घोर संकट में है। किसान की फसल की खुलेआम लूट हो रही है। मुख्यमंत्री जी के सत्ता में चार वर्ष होने को हैं। लेकिन, अभी तक उनको यह एहसास नहीं है कि अधिकारी उन्हें गम्भीरता से नहीं ले रहे हैं।

अखिलेश ने कहा कि किसानों के लिए की गई तमाम घोषणाएं फाइलों में धूल खा रही हैं। सभी किसानों की कर्जमाफी का वायदा पूरा नहीं हुआ। फसल बीमा का लाभ बीमा कम्पनियों के हिस्से में गया है। आय दोगुनी होने की सम्भावना दूर-दूर तक नहीं। सस्ते कर्ज और लागत से ड्योढ़े मूल्य की अदायगी का इंतजार करते-करते किसानों की आंखें पथरा गई हैं।

उन्होंने कहा कि जब कृषि अध्यादेशों को अधिनियम बनाया जा रहा था तभी यह आशंका थी कि इससे किसानों का ज्यादा अहित होगा। किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य से वंचित होना पड़ेगा। राज्य में धान खरीद की शुरुआत के साथ किसानों की तबाही के दिन शुरू हो गए हैं। सरकारी दावों के बावजूद कितने धान खरीद केन्द्र खुले हैं या खरीद कर रहे हैं इसकी तो अलग से जांच होनी चाहिए। राजधानी लखनऊ के ही एक क्षेत्र में ही एडीएम और एकाधिक लेखपाल घंटों धान क्रय केन्द्र की तलाश में घूमते रहे तब कहीं एक केन्द्र ढूंढ पाएं वहां भी खरीद नहीं हो रही थी।

उन्होंने कहा कि एक तो किसान को ऑनलाइन पंजीकरण में ही मुश्किल होती है, दूसरे वहां भी वसूली का खेल शुरू हो गया है। ऑनलाइन बुकिंग के नाम पर किसान से 50 रुपये से लेकर 100 रुपये तक वसूले जा रहे हैं। धान क्रय केन्द्रों पर किसान अपनी फसल लिए तीन-चार दिन तक पड़ा रहता है। उसके लिए इन केन्द्रों पर आवश्यक सुविधाओं तक की व्यवस्था नहीं है। कभी तौल के लिए मजदूर न होने का बहाना होता है तो कभी डस्टर की कमी का रोना होता है। इसके आगे धान क्रय केन्द्र पर किसानों को धान के मानक अनुकूल न होने का ज्ञान देकर लौटा दिया जाता है।

सपा अध्यक्ष ने कहा कि धान क्रय केन्द्रों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य 1888 रुपये प्रति कुंतल अदा करना होता है। यहां केन्द्र प्रभारियों और बिचैलियों की साठगांठ की साजिशें शुरू होती है। क्रय केन्द्रों पर खरीद न होने से परेशान किसान को अपनी फसल 1000 या 1100 रुपये प्रति कुंतल बेचने को मजबूर है। धान खरीद में अनियमितता और लापरवाही के ये मामले कोई इसी वर्ष के नहीं है, यही कहानी साढ़े तीन साल से दुहराई जा रही है। मुख्यमंत्री लाख कहें अधिकारी उसे अनुसुना कर देते हैं। (एजेंसी, हि.स.)

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