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विदेश नीति अब रक्षा नीति का कर रही अनुसरण, 2014 के बाद आया बड़ा बदलाव : मोहन भागवत

नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत (RSS Sarsanghchalak Mohan Bhagwat) ने मंगलवार को कहा कि वर्ष 2014 के बाद से देश में राष्ट्रीय सुरक्षा (national security in the country) को सर्वोच्च प्राथमिकता (Top priority) दी जा रही है तथा इस समय विदेश नीति देश की रक्षा नीति का अनुसरण कर रही है। इसके पहले होता था कि देश की रक्षा नीति हमारी विदेश नीति के पीछे चलती थी। सरकार के फैसले इस आधार पर तय होते थे कि दुनिया हमारे बारे क्या सोचेगी और क्या कहेगी।


संघ प्रमुख ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार का नाम लेकर उल्लेख नहीं किया लेकिन कहा कि वर्ष 2014 के बाद आए बदलाव के पीछे वीर सावरकर के विचार और आदर्श हैं। इसलिए मौजूदा दौर को ‘सावरकर युग’ कहना गलत नहीं होगा। उन्होंने कहा कि यह युग देशभक्ति का युग है। यह युग राष्ट्रीय गौरव और देश की असली पहचान के गुणगान का युग है। यह कालखंड इस बात की उद्घोषणा है कि धर्म, भाषा, जाति, पंथ के मतभेदों से ऊपर उठकर सभी देशवासी अधिकार और कर्तव्य के बराबर के सहभागी हैं।

मोहन भागवत ने आज वरिष्ठ पत्रकार उदय माहुरकर और चिरायु पंडित की पुस्तक ‘वीर सावरकर- द मैन हू कुड हैव प्रिवेंटेड पार्टिशन – वीर सावरकर’ पुस्तक के विमोचन अवसर पर कही। इस अवसर पर भागवत ने कहा कि सावरकर बहुआयामी व्यक्तित्व वाले दूरदृष्टा थे। देश की आजादी के बाद ही उन्होंने देश के युवाओं को सैन्य प्रशिक्षण दिए जाने पर जोर दिया था। यह वह समय था जब सरकार में बैठे कुछ लोग यह दलील दे रहे थे कि सेना को कलकारखाने चलाने के काम में लगाया जाना चाहिए। लेकिन 1962 के चीन युद्ध में लोगों की आंखे खोल दी। देश की रक्षा के बारे में सावरकर ने चिंता आखिरकार सही साबित हुई।

डॉ भागवत ने कहा कि वीर सावरकर की आलोचना और विरोध भारत की राष्ट्रीयता के खिलाफ सुनियोजित अभियान है। उन्होंने कहा कि आलोचकों की सोच बहुत ओछी है। (एजेंसी, हि.स.)

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