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28 साल पुराने NDPS मामले में पूर्व IPS संजीव भट्ट को 20 साल की जेल

नई दिल्ली: पालनपुर के 1996 एनडीपीएस मामले (1996 NDPS cases of Palanpur) में पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को आज कोर्ट ने सजा सुना दी. पालनपुर के द्वितीय अतिरिक्त सत्र न्यायालय (Second Additional Sessions Court of Palanpur) ने पालनपुर के 1996 के एनडीपीएस मामले में पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को 20 साल के कठोर कारावास और 2 लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है. इसके बाद संजीव भट्ट को पुलिस हिरासत में पालनपुर उप जेल ले जाया गया.

पालनपुर कोर्ट ने एनडीपीएस मामले में बुधवार को दोषी करार दिया था. उन्हें गुरुवार को सजा सुनाए जाने के लिए पालनपुर सेशन कोर्ट में पेश किया गया था. इस दौरान संजीव भट्ट की पत्नी श्वेता भट्ट भी वहां मौजूद थीं. सजा का ऐलान होने के बाद उन्होंने कहा कि हम इस केस में कहीं थे भी नहीं. यह पूरी तरह गलत है. पिछले साढ़े 5 साल से केस चल रहा है.

ये मामला सुमेर सिंह राजपुरोहित की गिरफ्तारी के बाद सामने आया था. केस पालनपुर के होटल लाजवंती में लाई जा रही दवाओं के बारे में मिली जानकारी, छापेमारी और ड्रग्स की बरामदगी से जुड़ा है. संजीव भट्ट पर आरोप है कि उन्होंने इस मामले में राजस्थान के एक वकील को गलत तरीके से फंसाया था. उस केस में वह साल 2018 से जेल मे बंद हैं.

संजीव भट्ट इन दिनों जेल में बंद हैं. बताते चलें कि इससे पहले जामनगर कस्टोडियल डेथ केस में भी भट्ट को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. साल 1990 के हिरासत में मौत मामले में पूर्व आईपीएस अफसर संजीव भट्ट और अन्य पुलिस अफसर प्रवीण सिंह जाला को जामनगर जिला अदालत ने दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी. कोर्ट ने प्रवीण सिंह झाला और भट्ट को आईपीसी की धारा 302 के तहत दोषी करार दिया था. इस केस में आठ पुलिसकर्मियों के खिलाफ केस दर्ज किया गया था.

अन्य दोषी पुलिसकर्मियों को कोर्ट ने आईपीसी की धारा 323 और 506 के तहत दोषी करार दिया था. यह मामला साल 1990 का है. उस वक्त संजीव भट्ट जामनगर में एडिशनल सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस के पद पर तैनात थे. बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी द्वारा निकाली गई रथ यात्रा के वक्त जमजोधपुर में संप्रदायिक दंगों के दौरान उन्होंने 150 लोगों को हिरासत में लिया. इनमें से एक शख्स प्रभुदास वैष्णानी की कथित टॉर्चर के कारण रिहा होने के बाद अस्पताल में मौत हो गई. वह अप्रैल 2011 में उस वक्त चर्चा में आए थे, जब उन्होंने 2002 के गुजरात दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के शामिल होने का आरोप लगाया था. इसे लेकर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा भी दायर किया था.

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