मैं तो पहले ही कह चुका हूं मुझे चुनाव नहीं लडऩा… पार्टी जिसे चाहे टिकट दे दे… मैं कार्यकर्ता बनकर काम कर लूंगा
केवल तीन ही नेता इस सीट पर चुनाव जीत सकते हैं…
इंदौर। बाबा के नाम से अपने इलाके में जाने जाने वाले चार बार के विधायक महेंद्र हार्डिया के खिलाफ कुछ लोगों ने मैदान पकड़ रखा है। इस पर सहज स्वभाव रखने वाले बाबा का कहना है कि जो विरोध कर रहे हैं, वो भी मेरे अपने हैं… वे क्यों मेहनत कर रहे हैं… मैं तो पहले ही कह चुका हूं कि मुझे चुनाव नहीं लडऩा… पार्टी जिसे चाहे टिकट दे दे, लेकिन जो लोग इसे हलवा समझकर गप करना चाहते हैं, उन लोगों को समझना होगा कि मेरी विधानसभा में जीत इतनी आसान नहीं है। इस इलाके में तीन ही लोग चुनाव जीत सकते हैं… पहला नाम कैलाश विजयवर्गीय (Kailsh Vijayvargiya) का है, दूसरा रमेश मेंदोला (Ramesh Mendola) और तीसरा मैं खुद… पार्टी चाहे जिसे आजमाए, मुझे टिकट नहीं मिला तो मैं कार्यकर्ता बनकर काम करूंगा…
विरोध करने वाले कौन लोग हैं?
विरोध की जो भी आवाज है, वो नीचे के लोगों की आवाज है। पार्टी में गंभीर चिंतन वाले लोग बैठे हैं, जो एक-एक सीट की जीत-हार के आंकड़े लिए बैठे हैं। फैसला ऊपर से ही होगा और जो भी होगा, उसे हम स्वीकार करेंगे।
विरोध का कारण क्या है?
जिन्हें पार्षद का टिकट नहीं मिला, वे विधानसभा का टिकट चाहते हैं। पूर्व पार्षद दिलीप शर्मा अगुवाई कर रहे हैं। मैं पहले ही कह चुका हूं कि अगर दिलीप को भी टिकट मिलेगा तो मैं उसके लिए काम करूंगा।
गौरव रणदिवे की भी दावेदारी है?
पहले गौरव राऊ क्षेत्र से टिकट के लिए प्रयास कर रहे थे, लेकिन वहां से मधु वर्मा का टिकट घोषित होने के बाद उनकी निगाहें इस क्षेत्र पर आ टिकीं। टिकट उन्हें भी मिलता है तो जीत आसान नहीं होगी। हमें अपने बारे में नहीं, पार्टी के बारे में सोचना चाहिए और गौरव तो नगर अध्यक्ष हैं।
हार-जीत का अंतर क्यों बदला?
यह विधानसभा क्षेत्र शुरू से ही बेहद कठिन रहा है। पहला चुनाव मैं 22 हजार वोटों से कांग्रेस नेता शोभा ओझा से जीता था। इसके बाद क्षेत्र के परिसीमन से स्थिति बदली, इस कारण दूसरा चुनाव शोभा ओझा से 5 हजार वोटों से जीत पाया, लेकिन तीसरा चुनाव सबसे कठिन था। उसमें पंकज संघवी से मुकाबले में 14 हजार वोटों से मेरी जीत हुई। हालांकि पिछले चुनाव मेें सत्यनारायण पटेल को 1100 वोटों से हरा पाया। उसका कारण वोटों का ध्रुवीकरण रहा।
विधानसभा में कठिनाई क्या है?
इस क्षेत्र में सर्वाधिक 1 लाख मुस्लिम मतदाता हैं, वहीं एक 1 लाख अनुसूचित जाति, जनजाति, ईसाई, बैरवा, रायकवार समाज के लोग हैं तो डेढ़ लाख ओबीसी और सामान्य वर्ग के हैं। इनमें से कई मतदाता भाजपा के परंपरावादी वोटर नहीं हैं, लेकिन लगातार संपर्क के कारण वे व्यक्तिगत रूप से मुझे वोट देते आ रहे हैं, इसलिए चुनाव में जीत मिलती रही। अब यदि इसे कोई परंपरागत सीट मान ले तो यह उसकी अपनी सोच होगी।
विरोधियों को क्या जवाब है?
मैं पहले ही कह चुका हूं कि मेरा विरोध करने से कोई फायदा नहीं। तुम लोग एक नाम तय कर लो, मैं खुद जाकर उनके नाम का समर्थन कर दूंगा और जिसे टिकट मिलेगा, उसके लिए कार्यकर्ता बनकर काम करूंगा, लेकिन फिर भी कहता हूं कि यह आसान सीट नहीं है। यहां केवल तीन ही लोग जीत सकते हैं। पहला नाम कैलाश विजयवर्गीय का है तो दूसरा रमेश मेंदोला का और तीसरा मैं खुद, क्योंकि हम तीन लोगों ने ही व्यक्तिगत चाहत पैदा की है।
मेरे विकास भुना लोगे… मेरा व्यवहार कहां से लाओगे…
मेरी लगातार जीत के दो कारण रहे- व्यवहार और विकास… मैंने मतदाताओं को अपना परिवार समझा, सतत उनके संपर्क मेें रहा… सहज भाव से मिला। जो बन सका किया… लगातार जीत से पार्टी में स्थापित हुई जगह के कारण सर्वाधिक विकास के काम अपने क्षेत्र में करा पाया। मेरे क्षेत्र में तीन ब्रिज बन गए। खजराना और मूसाखेड़ी के दो ब्रिज प्रोसेस में हैं… पुष्प विहार और अयोध्यापुरी में प्लाटों के लिए बरसों से तरस रहे लोगों को उनका हक दिलाने के लिए किए गए प्रयास सफलता की ओर हैं। कई पानी की टंकियां बनवाकर जल समस्या से निजात दिलाई। बिजली की समस्याएं समाप्त हो चुकी हैं। पूरे क्षेत्र में सीमेंटीकरण हो चुका है… मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री योजना का सर्वाधिक लाभ क्षेत्र के लोगों को दिलवाया… मुस्लिम मतदाताओं से भी मेरे व्यक्तिगत संबंध हैं… मेरे द्वारा किए गए विकास कोई भी प्रत्याशी भुना लेगा, लेकिन मेरा व्यवहार मेरी व्यक्तिगत पूंजी है, वो कोई कहां से लाएगा..
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