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हाई कोर्ट की तल्ख टिप्पणी: सरकारी आवास है तो बहू को सास-ससुर के मकान में साझा घर के दावे का अधिकार नहीं

 

नई दिल्ली। हाईकोर्ट (High Court) ने स्पष्ट कर दिया कि यदि कोई महिला अपने पति को मिले सरकारी आवास (government House) में रहती है तो वह वैवाहिक विवाद मामले में अपने सास-ससुर के मकान में साझा घर के दावे के साथ रहने का अधिकार नहीं मांग सकती। हाईकोर्ट ने ऐसे ही एक मामले में सास को मकान बेचने के रोकने संबंधी बहू के तर्क को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।

बहू ने तर्क रखा था कि उसे इस मकान में रहने का हक है। वहीं अदालत (Court) ने कहा कि याची बहू हमेशा इंडियन एयर फोर्स (Indian Air Force) में कार्यरत्त पति के साथ ही उसे मिले अलग-अलग स्थानों पर र्क्वाटर में रही है। वह अपने सास-ससुर में साथ नियमित रूप से या लंबे अरसे तक उनके इस मकान में रही है। ऐसे में उसका इस मकान को साझा मकान का दावा करते हुए रहने का अधिकार नहीं बनता।

न्यायमूर्ति सुरेश कैत ने सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि बहू-बेटे के विवाद में बुजुर्ग माता-पिता को शांति से अपने मकान में रहने का हक है। उन्होंने बहू की निचली अदालत के फैसले के खिलाफ दायर याचिका खारिज करते हुए कहा कि उन्हें निचली अदालत के 3 मई 21 के फैसले में कोई कोई अवैधता नजर नहीं आ रही। उन्होंने कहा अदालत के समक्ष विचारार्थ प्रासंगिक प्रश्न उत्पन्न होता है कि क्या वृद्ध माता-पिता जो अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर अपनी संपत्ति को अपनी पसंद से बेचने के हकदार है या नहीं।

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क्या उन्हें ऐसी अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं। ऐसे में उनका तर्क है कि निचली अदालत का फैसला ठीक है। उन्होंने माना कि घरेलु हिंसा के मामलों में महिला को अपने ससुराल के घर में ही रहने का अधिकार मिला हुआ है लेकिन यह मामला अलग है याची कभी भी उनके साथ नहीं रही ऐसे में इसे साझा घर नहीं माना जा सकता।

दरअसल महिला का विवाह 12 दिसंबर 2013 को एयर फोर्स के अधिकारी के साथ हुआ था। दोनों हमेशा सेना की और से मिले र्क्वाटर में ही रहे और इसी औरान उनके बीच घरेलु विवाद हो गया। सास ने अपने पहाड़गंज स्थित फ्लैट का 18 फरवरी 21 में सौदा कर दिया जिसे बहु ने अदालत में चुनौती दी। मजिस्ट्रेट (Magistrate) ने 15 मार्च को फ्लैट बेचने पर रोक लगा दी जिसे सैशन कोर्ट ने तीन मई को खारिज कर दिया।

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