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कैसे होते हैं रासायनिक और जैविक हथियार, India-US स्पेशल फोर्स ले रही हैं ट्रेनिंग?

नई दिल्‍ली (New Delhi)। इस समय रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia Ukraine War) युद्ध चल रहा है। जिसमें कई देश आरोप लगा रहे हें कि रूस युक्रेन में रासायनिक और जैविक हथियारों का उपयोग कर रहा है, लेकिन रूस से सिरे का खारिज कर रहा है। रासायनिक हथियारों (Chemical weapons) को लेकर खूब चर्चा हुई। दोनों देशों में बायोलोजिकल युद्ध ने दुनिया को परेशान किया था। ऐसे में भारत और अमेरिका (India and America) ने मिलकर ऐसे चुनौतियों का सामना करने की तैयारी शुरू कर दी है।

जानकारी के लिए बता दें कि वर्तमान में पूरी दुनिया के लिए आतंकवाद बहुत बड़ी चुनौती बन गया है। आतंकवादी संगठन हर रोज नए-नए तरीके से इंसानियत को जख्मी कर रहे हैं। तकनीकी हुनर के साथ-साथ अब आतंकवादी साइंस के वो नुस्खे भी सीख चुके हैं, जो बहुत खतरनाक हो सकते हैं। इन्हीं खतरों को ध्यान में रखते हुए अब अमेरिका और भारत ने भी रासायनिक और जैविक हमलों से निपटने के लिए खुद को तैयार करना शुरू कर दिया है।



आतंकवादियों के रासायनिक हमलों से निपटने के लिए भारत का नेशनल सिक्योरिटी गार्ड (NSG) और अमेरिका का स्पेशल ऑपरेशन्स फोर्स (SOF) ने अपने छठे संयुक्त आतंकरोधी अभ्यास तरकश में पहली बार केमिकल, बायोलॉजिकल, रेडियोलॉजिकल और न्यूक्लियर हमलों (CBRN) से निपटने और उन्हें विफल करने की ट्रेनिंग दी जा रही है।
इस अभ्यास की शुरुआत 16 जनवरी 2023 को हुई थी और आज यानी 14 फरवरी को इसका समापन हो रहा है। वर्तमान में सेना इसकी ट्रेनिंग चेन्नई में ले रहे हैं। चार हफ्तों तक चल रहे इस अभ्यास में सेना को रासायनिक हमलों से निपटने के लिए क्या-क्या करना है इसकी खास तौर पर तैयारी की गई है।

CBRN का मतलब केमिकल, बायलॉजिकल, रेडियोलॉजिकल और न्यूक्लियर. वहीं, अब अगर CBRN हथियार की बात करें, तो ये बड़े पैमाने पर तबाही मचाने वाला हथियार है। इसके इस्तेमाल से एक ही बार में बड़े पैमाने पर लोगों को निशाना बनाया जा सकता है। यही वजह है कि इसे ‘वेपन ऑफ मास डिस्ट्रक्शन’ यानी सामूहिक विनाश के हथियारों के तौर पर देखा जाता है।2005 की एक स्टडी के मुताबिक, इन हथियारों की रेंज बहुत ज्यादा होती है। CBRN केमिकल हथियारों में मस्टर्ड गैस और नर्व एजेंट शामिल है। मस्टर्ड गैस त्वचा, फेफड़े और आंखों को नुकसान पहुंचाने का काम करता है, वहीं, नर्व एजेंट इंसान को बेहोश करने वाला होता है. इससे पीड़ित व्यक्ति को सांस लेने में दिक्कत भी होती है। कई बार इंसान की मौत भी हो जाती है।

इस ट्रेनिंग में पहली बार रासायनिक, जैविक, रेडियोलॉजिकल और परमाणु (CBRN) आतंकवादी प्रतिक्रिया मिशन के लिए एक वेलिडेशन एक्सरसाइज की. इसमें किए मॉक ड्रिल में आतंकी इंटरनेशनल समिट को निशाना बनाते हैं। इस मॉक ड्रिल में आतंकी अपने साथ रासायनिक हथियार लेकर आते हैं।

वहीं एनएसजी और एसओएफ के जवान न सिर्फ आतंकियों को हरा कर रासायनिक हथियार को नाकाम करते हैं बल्कि वहां उपस्थित लोगों को सुरक्षित बाहर भी निकालते हैं। इस मॉक ड्रिल का उद्देश्य आतंकवादियों को तेजी से बेअसर करना था, बंधको छुड़ाना और आतंकवादियों द्वारा लाए गए रासायनिक हथियारों को निष्क्रिय करना था।
मॉक ड्रिल इस बात का पूरा प्रदर्शन है कि आपदा आने पर कैसे प्रतिक्रिया दी जाए यह संभावित त्रुटियों और जोखिमों की पहचान करता है। विभिन्न आपदा नियंत्रण विभागों के बीच समन्वय में सुधार करता है। यह दिखाता है कि ऊंची मंजिलों, इमारतों में फंसे लोगों को कैसे बचाया और बचाया जाए।

रासायनिक हथियारों में रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है। रासायनिक हमले सबसे पहले इंसान के नर्वस सिस्टम (तंत्रिका तंत्र) और श्वसन तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं। आम तौर पर यह जानलेवा होते हैं। नर्व एजेंट- इसे सबसे खतरनाक रासायनिक हथियार माना जाता है। ये लिक्विड या गैसीय अवस्था में हो सकते हैं और इन्हें सांस या त्वचा के जरिये शरीर में पहुंचाया जाता है. इस हथियार से हमला करने पर इंसान के नर्वस सिस्टम को भारी क्षति पहुंचती है और उसकी जान भी जा सकती है।

ब्लिस्टर एजेंट- रासायनिक हथियार के इस प्रका को गैस, एयरोसॉल या तरल अवस्था में इस्तेमाल किए जाते हैं. इसके इस्तेमाल से इंसान की त्वचा बुरी तरह जल जाती है और बड़े छाले पड़ जाते हैं. अगर यह सांस के रास्ते शरीर में जाए तो श्वसन तंत्र बुरी तरह प्रभावित होता है. सल्फर मस्टर्ड, नाइट्रोजन मस्टर्ड और फॉसजीन ऑक्सीमाइन इसके कुछ उदाहरण हैं।
रॉयट एजेंट- आंसू गैस का गोला रॉयट एजेंट की श्रेणी में आता है। इनके इस्तेमाल से आंखें जलती हैं और लोगों को सांस लेने में तकलीफ होती है। पुलिस या सुरक्षाबल कई देशों में प्रदर्शनकारियों को काबू करने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं।
अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुसार केमिकल और बायोलॉजिकल हथियारों का इस्तेमाल करने पर प्रतिबंध लगाया गया है. साल 1925 में जिनेवा प्रोटोकॉल में ये तय किया गया था कि किसी भी अंतरराष्ट्रीय सैन्य गतिरोध या दो देशों के बीच चल रहे युद्ध में रासायनिक या जैविक हथियारों का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा. हालांकि इस प्रतिबंध के पहले और बाद में भी केमिकल हथियारों का इस्तेमाल होता रहा है।

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