- समर्थन मूल्य पर खरीदी में संकट
- केंद्रों पर 3 दिन से तुलाई के इंतजार में किसान
- अनाज का परिवहन नहीं होने से किसानों का भुगतान अटका
भोपाल। शासन और प्रशासन कोरोना (Corona) महामारी से निपटने में व्यस्त है। ऐसे में समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीदी में मनमानी चल रही है। बारदाना खत्म होने और खरीदे गए गेहूं (Wheat) का उठाव न होने के कारण प्रदेश के अधिकतर केंद्रों पर खरीदी बंद है। तुलाई के इंतजार में सैकड़ों किसान तीन-तीन दिन से केंद्रों पर पड़े हैं। उधर खरीदे गए अनाज का परिवहन नहीं होने से किसानों का भुगतान (Payment) अटका हुआ है।
गौरतलब है कि इस बार प्रदेश में 135 लाख मीट्रिक टन गेहूं (Metric ton wheat) खरीदने का लक्ष्य रखा गया है। लेकिन कोरोना संक्रमण (Corona infection) के कारण खरीदी की रफ्तार धीमी है। वहीं खरीदी केंद्रों पर किसानों के साथ मनमानी की जा रही है। इससे किसान परेशान है। आलम यह है कि किसान घर से खाना मंगा लेते हैं और वहीं बैठकर खाते हैं। आस सिर्फ इतनी कि तुलाई शुरू हो तो उनका गेहूं भी सरकारी दाम पर तुल जाए।
केंद्र पर ही दिन-रात गुजार रहे लोग
प्रदेश के कई खरीदी केंद्रों पर किसानों की भीड़ इस कदर उमड़ रही है कि उन्हें रात भी केंद्र पर ही गुजारनी पड़ रही है। इसकी एक वजह यह है कि कई खरीदी केंद्रों पर बरदाना समाप्त हो गया है। इस कारण खरीदी बंद है। ऐसे में अपनी उपज बेचेन पहुंचे किसानों को रात-दिन खरीदी केंद्र पर ही गुजारनी पड़ रही है।
भुगतान में भी देरी
उपज बेचने के साथ ही किसानों को भुगतान के लिए भी इंतजार करना पड़ रहा है। खरीदी केंद्रों पर सप्ताह में पांच दिन खरीदी हो रही है, वहीं दो दिन शनिवार और रविवार सिर्फ गेहूं का उठाव होता है। इसके अलावा बाकी पांच दिन भी खरीदी के साथ-साथ उठाव चलता रहता है। फिर भी उठाव में देरी हो रही है। इसका सीधा असर भुगतान पर पड़ रहा है।
28 दिन बाद भी गेहूं खरीदी का भुगतान नहीं
कोरोना महामारी व लाकडाउन के कारण प्रदेशभर में मंडिया बंद हैं और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर भी गेहूं खरीदी का कार्य धीमी गति से चल रहा है। जिन किसानों ने समर्थन मूल्य पर अपना गेहूं सहकारी समितियों को बेचा है, उनका भुगतान भी अब तक नहीं हो पाया है। गेहूं बेचने के 28 दिन बाद भी किसानों के बैंक खाते में भुगतान नहीं पहुंचा है। ऐसे में किसानों को अल्पकालीन खरीफ सीजन-2020 में लिया गया ऋण भरने की चिंता सता रही है। प्राथमिक कृषि साख समितियों द्वारा किसानों को जो 0 प्रतिशत ब्याज पर ऋण दिया जाता है। ऋण भरने की तारीख शासन द्वारा 30 अप्रैल निर्धारित की गई है लेकिन किसानों के पास अब तक उपज का पैसा नहीं पहुंचा है। हालात देखते हुए किसानों ने कर्ज भरने की समयावधि बढ़ाकर जून माह किए जाने की मांग की है।
किसानों को नुकसान ही नुकसान
किसानों का कहना है कि पिछले साल भी लाकडाउन के कारण किसान की कमर टूट चुकी थी। कोरोना महामारी के बीच हरी सब्जियां, फल और फूल खेतों में ही खराब हो जाने से काफी नुकसान झेलना पड़ा था। इसके बाद सोयाबीन के साथ खरीफ सीजन की फसलें भी कीट प्रकोप के चलते पूरी तरह से नष्ट हो गई थी। किसान नेता बबलू जाधव का कहना है कि अल्पकालीन फसल ऋण की तारीख 30 अप्रैल से बढ़ाकर 30 जून की जानी चाहिए। इससे किसान को कुछ महीनों की राहत मिल सकेगी। इस समय महामारी का प्रकोप चल रहा है। प्रकोप के चलते प्रदेश भर में लाक डाउन से फसली मंडियां बंद पड़ी हैं और किसान अपनी फसल नहीं बेच पा रहे हैं। एक साल पहले भी किसानों को लाकडाउन के कारण काफी नुकसान उठाना पड़ा था और शासन द्वारा कोई राहत राशि मदद के तौर पर नहीं दी गई।