- अपने ही नाविकों को पतवार थमाने से भाजपा को डर
- रूठों को समझाने और बिगड़ों को मनाने के लिए इंदौरियों पर भरोसा
इंदौर। भाजपा को अपनी वैतरणी पार करने में इस बार अपने नाविकों को ही पतवार थमाने में डर लग रहा है… इंदौर के सांवेर में जहां मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने तुरूप समझे जाने वाले अपने भरोसेमंद कैलाश विजयवर्गीय और रमेश मेंदोला को जिम्मा सौंपकर मुक्ति पा ली है, वहीं संभाग की नेपानगर की सीट पर विद्रोही अपना वजूद बताने के लिए सिर उठा रहे हैं। यहां से दो बार चुनाव लड़ीं मंजु दादू रूठी बैठी हैं, वहीं उनके समर्थक चेहरा दिखाने के अभियान में लगे हंै। इसी क्षेत्र के नेता और भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहे नंदू भैया सहित पूर्व मंत्री ब्रजमोहन मिश्र भी रूठे भाजपाइयों को समेटने में जुटे हैं। हालांकि नंदू भैया के समर्थक भी एक कांग्रेसी के भाजपाईकरण को लेकर नाराज हैं, वहीं भाजपा की दलबदलू प्रत्याशी सुमित्रा कासडेकर की हालत यह है कि वो समझ ही नहीं पा रही हैं कि कौन अपना है और कौन पराया। पुराने कांग्रेसी जो कभी उनके अपने सगे थे वो तो मुकाबले पर आ ही गए हैं और जो भाजपाई हैं वो भी कितना साथ देंगे यह वक्त के गर्भ में ही नजर आ रहा है।
नेताओं की भरमार… फिर भी गोपी नेमा की दरकार…
नेपानगर की रूठी मंडली को समझाने, मनाने और काम पर लगाने का जिम्मा पार्टी ने अपने वरिष्ठ नेता और निकाय चुनाव में इस इलाके के पहले कई बार प्रभारी रहे इंदौर के पूर्व विधायक गोपी नेमा को सौंपा है। गोपी नेमा नेताओं को जाजम पर बैठाने, पार्टी का भविष्य और स्वयं का हित समझाने के साथ ही सारी संभावनाओं की जोड़-तोड़ भिड़ाने में माहिर हैं। गोपी नेमा का मानना है कि पार्टी में रूठने जैसी स्थिति तो है, लेकिन बिखरने जैसी स्थिति नहीं है। पार्टी की पूर्व विधायक मंजु दादू दलबदलू कांग्रेसी को टिकट देने को लेकर खफा थीं, लेकिन गोपी नेमा का दावा है कि अब वह पूरे जोर-शोर से मैदान में हैं। उनका कहना है कि मंजु दादू का पूरा परिवार न केवल उच्च शिक्षित है, बल्कि पद का कोई मोह नहीं रखता है। मंजु दादू के पिता राजेन्द्र दादू के अवसान के बाद उनकी बड़ी डॉक्टर बहन को पार्टी ने उम्मीदवार बनाना चाहा तो उन्होंने चुनाव लडऩे से इनकार करते हुए स्वयं को अपने चिकित्सक पेशे के लिए ही समर्पित रखना चाहा। परिवार के अन्य सदस्य इंजीनियर और उच्च शिक्षित होकर कोई पद नहीं चाहते। मंजु दादू भी बड़ी मुश्किल से मनाने पर चुनाव लड़ीं और 42 हजार वोटों से जीतीं। इस क्षेत्र में पार्टी के ब्रजमोहन मिश्रा, नंदकुमारसिंह चौहान, अर्चना चिटनीस इतने प्रभावशाली हैं कि वो क्षेत्र के भाजपाइयों को एकजुट करने में सक्षम हैं इसके बावजूद गोपी नेमा को प्रभारी बनाए जाने का कारण यह है कि वे लगातार इस क्षेत्र में संगठन के लोगों से संपर्क में रहे हैं। पार्टी ने नगर परिषद के चुनाव में उन्हें जहां दो बार जिम्मेदारियां सौंपी, वहीं खंडवा और बुरहानपुर नगर निगम चुनाव का प्रभारी भी बनाया था। लंबे समय से क्षेत्र के नेताओं के संपर्क में रहने के कारण वो क्षेत्र के हर समीकरण से वाकिफ हैं।
बगावत पर उतरीं पूर्व विधायक और हारी प्रत्याशी मंजु दादू
नेपानगर सीट से पिछले चुनाव में सुमित्रा कासडेकर ने मंजु दादू को ही हराया था। हालांकि सुमित्रा की जीत भी केवल 1200 वोट से हुई थी। इससे पहले मंजु दादू अपने पिता राजेन्द्र दादू के निधन के बाद हुए उपचुनाव में 42 हजार वोटों से जीती थीं, लेकिन अगले चुनाव में सुमित्रा कासडेकर से गच्चा खा गईं। इस दौरान दोनों में जमकर अदावत हुई। सुमित्रा ने पानी पी-पीकर मंजु को कोसा और आज मंजु को सुमित्रा का झंडा उठाने की जिम्मेदारी सौंपी जाए तो सही भी है कि उनके हाथ यह वजन उठाने की इजाजत तो देंगे नहीं, इसलिए मंजु दादू बगावत पर आमादा हैं। उनका कहना है कि वे घोषित प्रत्याशी के पक्ष में काम नहीं कर सकतीं। उनका मुंह फुलाना जायज है। उन्हें मनाने की जिम्मेदारी ही जहां वरिष्ठ नेताओं की है, वहीं चुनाव के प्रभारी गोपी नेमा का भी दावा है कि उन्होंने मंजु दादू को वक्त और परिस्थितियों की नजाकत को समझने और पार्टीहित में काम करने के लिए मना लिया है।
नंदू भैया, अर्चना चिटनीस से लेकर कई कद्दावर नेता इलाके में
मंजु दादू के अलावा नेपानगर के पूर्व विधायक रामदास शिवहरे, ब्रजमोहन मिश्रा, अर्चना चिटनीस, नंदू भैया जैसे कई ऐसे-ऐसे तीस मारखां नेता हैं, जिन्हें भाजपा को साधना और समझाना होगा, ताकि उनकी नैया पार लग सके। हालांकि इनमें से कई नेता पार्टी के वरिष्ठ पदों और सरकार में शामिल रहे हैं, इसलिए वे वक्त और परिस्थिति की नजाकत को समझते हैं। उन्होंने यदि नाराजगी दिखाई भी तो सामयिक होगी।
कोरकू समुदाय के 70 हजार मतदाता
गोपी नेमा ने बताया कि नेपानगर विधानसभा में 300 पोलिंग बूथ हैं और हर पोलिंग बूथ के लिए उनके पास निष्ठावान कार्यकर्ताओं की बड़ी फौज है। आदिवासी बहुल चुनावी क्षेत्र में लगभग 70 हजार मतदाता कोरकू समुदाय से हैं और उनकी नेता मंजु दादू भी जहां इसी समुदाय से हैं, वहीं घोषित प्रत्याशी सुमित्रा कागदेकर भी आदिवासी बहुल क्षेत्र में बड़ा मुकाम रखती हैं।
अधिकारी नहीं बदले सरकार ने
प्रदेश में होने जा रहे 28 सीटों के उपचुनाव सरकार की स्थिरता तय करेंगे, इसीलिए सरकार ने भी हर पहलू पर नजर होने के बावजूद यहां पूर्व से काबिज अधिकारियों को नहीं बदला है। नेपानगर में वही कलेक्टर और एसपी अभी भी पदों पर हैं, जो कमलनाथ सरकार में थे।
देश के कई शहरों के लोग हैं यहां
नेपानगर में चूंकि देश का सबसे बड़ा कागज का कारखाना है, इसीलिए क्षेत्र में हजारों लोग बाहरी शहरों से आकर यहीं बस गए। इन लोगों में कागज मिल में काम करने वाले हर स्तर के व्यक्ति शामिल हैं। हालांकि मिल का संचालन अभी लगभग ठप-सी स्थिति में है।