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अगर हड्डियां मजबूत करना है और कोलेस्ट्रॉल घटाना तो भोजन में शामिल करें राजमा

भारतीय व्यंजनों में राजमा-चावल (rice and beans) एक ऐसी डिश है जो किसी भी भारतीय के मुंह में पानी ला सकती है और खाने के बाद उसके दिल-दिमाग, पेट को तृप्त कर सकती है। जायकेदार व्यंजनों (Flavorful Recipes) की दुनिया में राजमा अहम स्थान रखता है। इसे बीन्स की श्रेणी में रखा जाता है और विश्व भर में इसका सेवन किया जाता है।

अगर भारत की बात करें, तो यहां राजमा-चावल के शौकीन लोगों की कमी नहीं है। राजमा-चावल का नाम सुनते ही मुंह में पानी आ जाता है। यह तो रही राजमा के स्वाद की बात, वहीं अगर इसके गुणों की बात करें, तो यह कई बीमारियों में हमारी मदद कर सकता है। इस लेख में जानिए स्वास्थ्य के लिए राजमा के फायदे और इसके सेवन के विभिन्न तरीकों के बारे में।

असल में राजमा शरीर के लिए बेहद लाभकारी है। यह शरीर को तो मजबूती देता ही है, साथ ही पाचन सिस्टम को भी सुधारे रखता है। राजमा को नॉनवेज का बेहतर विकल्प भी माना जाता है। उसका कारण यह है कि इसमें आम सब्जियों या दालों के मुकाबले अधिक मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है।



विश्वभर में खाया जाता है राजमा
राजमा-चावल एक ऐसी डिश है जो अब पूरे विश्व में खाई जा रही है। मसाले में बनी राजमा की गाढ़ी ग्रेवी के साथ चावल अंग्रेजों से लेकर अफ्रीकी लोगों तक को पसंद आ रहे हैं. असल में यह फलियों से निकले एक तरह के बीज है, जो सब्जी के रूप में प्रयोग होते हैं। पत्थर की तरह सख्त राजमा जब पकाया जाता है तो अंदर से यह एकदम मक्खन की तरह मुलायम हो जाता है। इसकी यही मुलायमियत इसे विश्व में प्रसिद्ध कर रही है। भारत में तो इसकी सबसे अधिक खपत होती है तो अन्य देशों में इसका उपयोग नमकीन व मीठे दोनों तरह के व्यंजन बनाने के लिए किया जा रहा है। पूरे विश्व में राजमा की कई वैरायटी हैं लेकिन सबसे ज्यादा खाया जाने वाला चकत्तेदार लाल व सफेद राजमा ही है। राजमा की कुछ फलियों का उपयोग जानवरों को चारे के लिए भी होता है।

7,000 साल से हो रही है इसकी खेती
राजमा का इतिहास हजारों साल पुराना है। भारत में भी यह हजारों सालों से खाया जा रहा है, लेकिन इसका उत्पत्ति स्थल भारत नहीं है। पूसा इंस्टिट्यूट में वरिष्ठ वनस्पति विज्ञानी डॉ. बिश्वजीत चौधरी ने अपनी पुस्तक Vegetables में बताया है कि राजमा दक्षिण व मध्य अमेरिका की मूल उत्पत्ति है और वहां ये हजारों साल पहले से ही उगना शुरू हो गया था। एक अन्य जानकारी के अनुसार करीब 7,000 साल पहले दक्षिणी मेक्सिको और पेरू में इसकी खेती की गई. बाद में इसकी वैरायटी बढ़ती चली गई।

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