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मनुष्य के साहस व संकल्प के सामने बड़े-बड़े पर्वत तक टिक नहीं पाते:  साध्वी ऋतम्भरा

नई दिल्ली। ‘हम जीतेंगे-पाज़िटीविटी अनलिमिटेड’ श्रृंखला के चौथे दिन श्री पंचायती अखाड़ा – निर्मल के पीठाधीश्वर महंत संत ज्ञान देव सिंह (Peethadheeshwar Mahant Saint Gyan Dev Singh) जी एवं पूज्य दीदी माँ साध्वी ऋतंभरा,(Worshiped Sister Mother Sadhvi Ritambhara,) वात्सल्य ग्राम, वृंदावन ने अपने उद्बोधन में इस बात पर बल दिया कि भारत की समृद्ध आध्यात्मिक परंपरा का पालन कर समाज आंतरिक शक्ति जागृत कर कोरोना संकट का सामना सफलतापूर्वक करने में सफल होगा. उन्होंने कहा प्रतिकूल परिस्थितियों में असहाय महसूस करने के बजाय मजबूत मन के साथ संकल्प करने से ही इस चुनौती पर विजय प्राप्त होगी. पांच दिवसीय व्याख्यानमाला (Lecture hall) का आयोजन ‘कोविड रिस्पॉन्स टीम’ द्वारा किया गया है, जिसमें समाज के सभी क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व है.

साध्वी ऋतंभरा जी ने अपने उद्बोधन में कहा, ”विपरीत परिस्थितियों में ही समाज के दायरे के धैर्य की परीक्षा होती है. इन विपरीत परिस्थितियों में जबकि हमारा पूरा देश एक विचित्र महामारी से जूझ रहा है, ये वो समय है, जब हमें अपनी आंतरिक शक्ति को जागृत करना है.”



उन्होंने कहा, ”मनुष्य के साहस व संकल्प के सामने बड़े-बड़े पर्वत तक टिक नहीं पाते. नदी का प्रवाह जब प्रवाहित होता है तो वो बड़ी-बड़ी चट्टानों को रेत में परिवर्तित करने का सामर्थ्य रखता है. इसलिए इस विकट परिस्थिति में असहाय होने से समाधान नहीं होगा, अपनी आंतरिक शक्ति को जागृत करना होगा.”

उन्होंने कहा हर संकट का समाधान है, लेकिन समाधान तब होता है, जब मनुष्य को अपने पर भरोसा होता है, जब मनुष्य अपने आराध्य और इष्ट पर भरोसा करता है. इस विश्वास के साथ हम इस महामारी से पार जाएंगे.

उन्होंने कहा, ”मैं समस्त भारतवासियों को निवेदन करना चाहती हूं कि दोषारोपण के बजाय सभी अपने आत्मबल, आत्म संयम को और आत्म संकल्प को जागृत करें…इन सारी परिस्थितियों के बीच में अगर हमारी शक्ति मात्र नकारात्मक चिंतन में लग जाएगी तो कर्म करने का सामर्थ्य और कुछ नया सोचने का सामर्थ्य समाप्त हो जाएगा.”

संत ज्ञानदेव जी महाराज ने अपने उद्बोधन में कहा, ”केवल भारतवर्ष में नहीं संपूर्ण विश्व में जो यह संक्रमण काल चल रहा है, इससे घबराने की आवश्यकता नहीं है, मनोबल गिराने की आवश्यकता नहीं है. जो भी वस्तु संसार में आती है, वह सदा स्थिर नहीं रहती. दुःख आया है, वह चला जाएगा. इसलिए घबराने की आवश्यकता नहीं है.”

उन्होंने कहा, ”यदि कोई संक्रमित हो जाता है तो वो परमात्मा का चिंतन करे, गीता का पाठ करे, गुरूवाणी का पाठ करें. अपने शरीर को स्वस्थ रखें, मन को स्वस्थ रखे. मन जीते जग जीत. यदि आपका मन स्वस्थ है तो आप स्वस्थ रहेंगे, आप पर कोई प्रभाव नहीं होगा.”

उन्होंने कहा भारत की परंपरागत जीवनशैली में वे सभी तत्व पहले से मौजूद रहे हैं, जिनका पालन करने के लिए हमें आज चिकित्सक कह रहे हैं. इस समृद्ध सांस्कृतिक व आध्यात्मिक परंपरा का पालन कर हम सभी स्वस्थ रह सकते हैं. इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि हम अपनी इन समृद्ध परंपराओं की पहचान कर उन्हें व्यवहार में लाएं.

इस व्याख्यानमाला का प्रसारण 100 से अधिक मीडिया प्लेटफॉर्म पर 11 मई से 15 मई तक प्रतिदिन सायं 4:30 बजे से किया जा रहा है. 15 मई को इस व्याख्यानमाला में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी का उद्बोधन होगा.

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