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नेपाल के नए पीएम प्रचंड के रुख पर टिकी भारत की निगाहें, कभी दोस्त तो कभी दुश्मन रहा यह देश

नई दिल्‍ली । पुष्प कमल दहल प्रचंड (Pushpa Kamal Dahal Prachand) के नेपाल (Nepal) के प्रधानमंत्री (Prime minister) बनने के बाद भारत (India) की निगाहें नई सरकार (new government) के भावी रुख पर टिकी हैं। अगर प्रचंड ने अपने पूर्ववर्ती केपी शर्मा ओली की तर्ज पर सीमा विवाद मामले को तूल दिया तो दोनों देशों के बीच नए सिरे से तकरार शुरू होगी। भारत के लिए राहत की बात यह है कि प्रचंड ने जिन दूसरे छह दलों के साथ सत्ता हासिल की है, उसमें ओली के यूएमएल को छोड़ कर शेष पांच दलों का रुख भारत विरोधी नहीं है।

सरकारी सूत्रों के मुताबिक, फिलहाल भारत की निगाहें प्रचंड पर टिकी हैं। प्रचंड का भारत के प्रति रुख में स्थायित्व नहीं रहा है। शुरुआती दौर में वह भारत विरोधी और चीन समर्थक थे, लेकिन बाद में भारत के प्रति उनका रुख नरम हुआ। देखने वाली बात है कि इस बार प्रचंड किस भूमिका में होते हैं।

चीन की कूटनीति आई काम
सरकारी सूत्र ने माना कि नेपाल में ओली और प्रचंड की दोस्ती कराने में चीन की भूमिका है। सरकार दूसरा पक्ष भी बना सकता था। जाहिर तौर पर अगर नेपाली कांग्रेस की अगुवाई में सरकार बनती तो यह भारत के हित में होता, लेकिन प्रचंड ने सत्ता हस्तांतरण और पहले ढाई साल खुद को पीएम बनाने की शर्त रखी। मतलब प्रचंड हर हाल में पीएम बनना चाहते थे और उनका ओली या नेपाली कांग्रेस के साथ मिलकर पीएम बनना दोनों ही स्थितियां हमारे अनुकूल नहीं थी।


तीन उप-प्रधानमत्रियों के साथ प्रचंड ने ली पीएम पद की शपथ
नेपाल में पुष्प कमल दहल प्रचंड ने सोमवार को प्रधानमंत्री के रूप में तीसरी बार शपथ ली। राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने शाम चार बजे उन्हें व तीन उपप्रधानमत्रियों और चार मंत्रियों को भी शपथ दिलाई। सीपीएन-माओइस्ट सेंटर के अध्यक्ष प्रचंड (68) के नेतृत्व में बनी नई सरकार ने देश के आर्थिक विकास के लिए भारत और चीन के साथ संबंधों में संतुलन बनाए रखने का संकल्प लिया है।

चीन समर्थक माने जाने वाले प्रचंड ने पिछले गठबंधन से नाता तोड़कर विपक्षी कम्युनिस्ट यूनिफाइड मार्क्सिस्ट-लेनिनवादी (यूएमएल) पार्टी और पांच अन्य छोटे समूहों के समर्थन से सरकार बनाई है।

कपा (एमाले) से विष्णु पौडेल, माओवादी केंद्र से नारायणकाजी श्रेष्ठ और राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी के अध्यक्ष रवि लामिछाने उपप्रधानमंत्री बनाए गए हैं। पौडेल को वित्त मंत्रालय, श्रेष्ठ को भौतिक पूर्वाधार, और लामिछाने को गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई है। एमाले से दामोदर भंडारी, ज्वालाकुमारी साह, राजेंद्र राय और जनमत पार्टी के उपाध्यक्ष अब्दुल खान को मंत्री बनाया गया है। ब्यूरो

…क्योंकि गठबंधन के सहारे है सरकार
सरकारी सूत्र का कहना है कि प्रचंड के लिए भारत विरोधी रुख अपनाना एकदम से आसान नहीं होगा। वह इसलिए कि नई सरकार महज ओली की पार्टी पर ही नहीं, पांच दूसरे छोटे दलों और निर्दलीयों पर निर्भर है। भारत के लिए राहत की बात है कि इनमें राष्ट्रीय स्वतंत्रता पार्टी, राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी, जनमत पार्टी, जनता समाजवादी पार्टी का रुख भारत विरोधी नहीं है।

कभी ठंडा तो कभी गरम रहा रिश्ता : भारत के साथ प्रचंड का रिश्ता कभी ठंडा तो कभी गरम रहा है। साल 2008 में पहली बार पीएम बनने के बाद प्रचंड ने अपनी पहली आधिकारिक यात्रा चीन से शुरू की। एक साल बाद सत्ता गंवाते ही उन्होंने भारत से संबंध बेहतर करना शुरू किया। इसी साल प्रचंड भाजपा के न्यौते पर भारत आए और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की।

दोनों पड़ोसियों से समानता के संबंध बनाए रखेंगे: श्रेष्ठ उपप्रधानमंत्री नारायणकाजी श्रेष्ठ ने कहा कि हम अपने दोनों पड़ोसी देशों के साथ समानता के संबंध बनाए रखेंगे। हमें तुरंत मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने, भंडार बनाए रखने, पूंजीगत व्यय बढ़ाने, व्यापार घाटे को कम करने पर ध्यान देना है।

तय थी उथल-पुथल
नेपाल में हुए इस चुनाव में नेपाली कांग्रेस का मुख्य गठबंधन प्रचंड की पार्टी माओवादी सेंटर से था, तो ओली की पार्टी यूएमल का गठबंधन मधेशी पार्टियों से। फिर चुनाव के समय से ही पीएम पद के लिए नेपाली कांग्रेस में कई नेताओं के बीच होड़ थी, जबकि ओली, प्रचंड खुद पीएम बनना चाहते थे। ऐसे में नाटकीय घटनाक्रम होना ही था।

सरकार की स्थिरता पर सवाल
नेपाल में सरकार बनाने के लिए प्रतिनिधि सभा में 138 सीटें चाहिए। प्रचंड की पार्टी माओवादी सेंटर, ओली की पार्टी यूएमएल के साथ आने के बावजूद बहुमत का आंकड़ा हासिल करने के लिए प्रचंड को पांच अन्य दलों और निर्दलीयों को साधना पड़ा है। फिर जल्द ही राष्ट्रपति और स्पीकर पद पर फैसला होना है। ऐसे में भविष्य में किसी भी मुद्दे पर तकरार से सरकार की स्थिरता प्रभावित हो सकती है।

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