ब्‍लॉगर

विदेशियों के बहकावे में न आए भारतीय समाज

– सुरेश हिंदुस्थानी

भारत सबको समभाव की दृष्टि से देखने का संदेश प्रसारित करता रहा है। इसका मूल कारण यह है कि भारत के आध्यात्मिक संतों ने अपनी वाणी से, अपने शब्दों से जो संदेश दिया, उसमें संकुचन नहीं था। और इसीलिए वे जगद्गुरु कहलाए गए। उस समय का इतिहास उठाकर देखा जाए तो भारत का एक भी जगद्गुरु ऐसा नहीं था, जिसने मेरा और तेरा का भाव दिया हो, बल्कि हमारे जगद्गुरु ने मैं ही तू है, का संदेश दिया। भारत का दर्शन सर्वधर्म समभाव की बात कहता है। लेकिन आज देश को क्या हो गया है? ऐसा लगता है कि भारतीय संस्कृति उन देशों को खटकने लगी है, जो भारत की प्रगति को रोकना चाहते हैं। अभी देश में जो कुछ चल रहा है, उसे भारतीय दर्शन के हिसाब से उचित नहीं कहा जा सकता। आज भारतीय आराध्यों और हिन्दुओं की भावनाओं पर कुठाराघात करने का षड्यंत्र चलता दिखाई दे रहा है। यह सब विदेशियों के संकेत पर ही हो रहा है। भारत के व्यक्तियों को समझना चाहिए कि वे विदेशियों के बहकावे में न आकर अपने देश को सुरक्षित रखें।

विभिन्न संस्कृतियों को समेटे, सर्वधर्म सद्भाव एवं सबसे बड़े लोकतांत्रिक व्यवस्था के नाम से जाने जाने वाले देश भारत के हिंदू बाहुल्य होते हुए भी उनके आराध्य देवी देवताओं का जानबूझकर मजाक उड़ाया जा रहा है। इसके पीछे वामपंथी मानसिकता और कांग्रेस की नापाक शक्तियों का हाथ है जो सिर्फ एक वर्ग विशेष के तुष्टिकरण के लिए इस तरह के कार्यों को समर्थन दे रहे हैं। जो वास्तव में मुसलमान है, वह अपने धर्म के अनुसार ही जीवनयापन करता रहा है। लेकिन हमारे देश के कुछ राजनेताओं ने अपनी स्वार्थी राजनीति की खातिर उनको भ्रमित करने का काम किया है। कांग्रेस नेता और पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन के बारे में कहा जाता है कि उनका रिमोट कांग्रेस मुखिया सोनिया गांधी के हाथ में था, इसलिए उन्होंने एक बार सार्वजनिक रूप से यह बयान दिया था कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। लेकिन देश के मुसलमानों को समझना चाहिए कि क्या यह बयान सच था, या राजनीतिक था। कांग्रेस की ओर से दिया गया यह बयान मुसलमानों का वोट प्राप्त करने का एक ऐसा तीर था, जो निशाने पर लग गया। आज कई मुसलमानों के मन में यह भाव पैदा हो गया है कि यह देश केवल उनका ही है। ऐसा करने के पीछे कांग्रेस ही पूरी तरह से दोषी है। इसी कारण आज देश में विवाद बढ़ता ही जा रहा है। जिसमें हिंदू भावनाओं का खुलेआम अपमान किया जा रहा है।

अब लीना मणिमेकलई की विवादित डॉक्यूमेंट्री काली के पोस्टर को लेकर शुरू हुआ विवाद बढ़ता ही जा रहा है। तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने देवी काली को लेकर एक ऐसा विवादित बयान दे दिया, जिसे लेकर उनके खिलाफ कई जगह प्राथमिकी दर्ज कराई गई है। इसके साथ ही फिल्म निर्माता लीना के खिलाफ भी लुक आउट नोटिस जारी किया गया है। जिस देश में धर्मनिरपेक्षता के कारण सभी धर्मों का आदर किया जाता है, वहां एक धर्म के प्रति इस तरह का अनादर दूसरे देश में नहीं मिलेगा। देवी-देवताओं का अनादर हो या उदयपुर कांड, इस पर वाम दल और कांग्रेसियों के मुंह सिले हुए हैं। वह चुपचाप तमाशा देखने की स्थिति में हैं। वहीं तृणमूल कांग्रेस ने इसे महुआ का निजी बयान बताया है। मां काली के पोस्टर को लेकर ममता बनर्जी की पार्टी की सांसद महुआ मोइत्रा के विवादित बयान ने देशभर में विरोध की आग पैदा कर दी है, जिसे लेकर भाजपा ने कोलकाता में विरोध-प्रदर्शन किया। इतना ही नहीं भाजपा की ओर से महुआ के खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज कराई गई है। विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने कहा है कि पुलिस अगर 10 दिनों के भीतर महुआ पर कार्रवाई नहीं करती तो 11वें दिन हमें न्यायालय जाना पड़ेगा। दूसरी ओर महुआ के बयान से तृणमूल कांग्रेस ने किनारा कर लिया है। तृणमूल कांग्रेस की ओर से ट्वीट में लिखा गया है कि महुआ का बयान निजी है। इससे तृणमूल कांग्रेस का कोई लेना-देना नहीं है। इस बयान के बाद महुआ मोइत्रा ने भी तृणमूल कांग्रेस का ट्विटर अकाउंट अनफॉलो कर दिया है। जबकि तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने भी महुआ के बयान पर कहा है कि हमें सबकी भावनाओं को समझना होगा। हाल ही में एक इवेंट के दौरान महुआ मोइत्रा ने पोस्टर का समर्थन करते हुए कहा कि काली के कई रूप हैं। मुझे इस पोस्टर को लेकर कोई दिक्कत नहीं है। कई जगह देवताओं को तो शराब तक चढ़ाई जाती है। मेरे नजर में देवी काली एक मांस खाने वाली और शराब पीने वाली देवी के रूप में है।

फिल्म मेकर लीना मणिमेकलई की इस डॉक्यूमेंट्री के पोस्टर में मां काली को सिगरेट पीते हुए दिखाया गया है। साथ ही काली बनी महिला के हाथ में एलजीबीटीक्यू का झंडा भी नजर आ रहा है। इस पोस्टर के सामने आने के बाद न सिर्फ इसकी कड़ी निंदा की जा रही है, बल्कि इसे प्रतिबंध करने की मांग भी उठ रही है। इसके अलावा फिल्म की निर्देशक लीना मणिमेकलई पर कई जगह प्राथमिकी भी दर्ज हो चुकी है। वैसे काली के पहले भी हिंदू देवी-देवताओं के अपमान की कई फिल्में-सीरीज सामने आती रही हैं। ओटीटी पर रिलीज हुई अनुराग बसु की फिल्म लूडो के एक सीन पर लोगों ने धार्मिक भावनाओं पर चोट पहुंचाने का आरोप लगाया था। फिल्म के एक दृश्य में नाटक करने वाले तीन लोग ब्रह्मा, विष्णु, महेश की वेशभूषा में सड़क पर नाचते-कूदते दिखाए गए थे। यही नहीं एक दृश्य में भगवान शंकर और महाकाली गाड़ी को धक्का लगाते दिखाए गए थे। सैफ अली खान स्टारर वेब सीरीज तांडव में भी हिंदू देवी-देवताओं का अपमान किया गया था। इस सीरीज में दिखाए गए दृश्य पर जमकर बवाल हुआ था। सीरीज के एक दृश्य में कुछ लोग कॉलेज प्ले में भगवान शिव का किरदार निभाते नजर आ रहे हैं। लेकिन इस प्ले के दौरान भगवान का किरदार निभाने वाले कलाकारों की वेशभूषा और उनकी बातचीत पर लोगों से कड़ी आपत्ति जताई थी। साथ ही हिंदू देवी-देवताओं का अपमान करने के लिए इसे प्रतिबंधित करने की भी मांग की थी।

वर्ष 2014 में आई आमिर खान और अनुष्का शर्मा स्टारर फिल्म पीके पर भी उस समय जमकर विवाद खड़ा हुआ था। इस फिल्म पर भी हिंदू-देवी देवताओं का मजाक उड़ाने का आरोप लगा था। फिल्म के एक दृश्य में भगवान शंकर का रूप लिए एक व्यक्ति को डर के मारे टॉयलेट में इधर-उधर भागते हुए दिखाया गया था। वेब सीरीज ए सूटेबल ब्वॉय भी विवादों में फंसी थी। दरअसल, सीरीज के एक सीन में मंदिर प्रांगण में अश्लील दृश्य फिल्माया गया था, जिसके बाद इस दृश्य पर लव जिहाद को बढ़ावा देने का आरोप लगा था। इस सीरीज का हिंदू संगठनों ने जमकर विरोध किया था। कुल मिलाकर हिंदू-देवी देवताओं का एक वर्ग विशेष के लोगों और फिल्म के क्षेत्र में अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए विवादित दृश्य फिल्माये जाते रहे हैं ताकि हिंदुओं की भावनाएं भड़काने का काम किया जा सके। इसके विपरीत मुस्लिम और ईसाई धर्म की आशाओं पर कभी इस तरह की छूट नहीं की जाती। वामपंथ और कांग्रेस द्वारा तो देवी-देवताओं के अपमान पर कभी कोई टिप्पणी भी नहीं की जाती। इससे स्पष्ट है कि यह दल किस तरह तुष्टीकरण नीति को बढ़ावा देकर हिंदुओं का अपमान करने को तैयार हैं।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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