इंदौर। मेट्रो का संचालन अधिकांश शहरों में घाटे का ही सौदा है, क्योंकि इतनी महंगी परियोजना को चलाने उतना यात्रियों से राजस्व नहीं मिलता, क्योंकि टिकटों की दर भी अधिक नहीं रखी जा सकती। इंदौर मेट्रो में भी 20 फीसदी राजस्व खर्च की तुलना में मिलने का अनुमान लगाया गया है, जिसके चलते राजस्व अन्य तरीकों से मेट्रो कॉर्पोरेशन कैसेअर्जित कर सके, उस पर भी इन दिनों विचार-विमर्श चल रहा है। दिल्ली मेट्रो की तर्ज पर इंदौर-भोपाल के स्टेशनों की भी नीलामी की जाएगी, जिसमें निजी कम्पनी बोली लगाकर इन स्टेशनों को अपने नाम करवा सकती है और प्रचार-प्रसार उद्घोषणा में संबंधित कम्पनी के नाम का प्रचार-प्रसार होगा। टीओडी, विज्ञापन बोर्ड सहित अन्य उपायों से भी राजस्व अर्जित करेंगे।
अभी इंदौर मेट्रो प्रोजेक्ट का काम गांधी नगर से लेकर सुपर कॉरिडोर, एमआर-10 होते हुए विजय नगर, रेडिसन से लेकर रोबोट चौराहा तक चल रहा है। वहीं 6 किलोमीटर के प्रायोरिटी कॉरिडोर पर भी जल्द मेट्रो का व्यवसायिक संचालन शुरू किया जाना है। हालांकि यात्रियों का फिलहाल टोटा रहेगा। मगर मेट्रो कॉर्पोरेशन के अधिकारियों का मानना है कि इससे व्यवसायिक कठिनाइयां भी पता लगेगी और 6 किलोमीटर के व्यवसायिक संचालन से ट्रायल भी हो जाएगा।
इंदौर मेट्रो एयरपोर्ट से लेकर एयरपोर्ट तक लगभग साढ़े 32 किलोमीटर चलना है, जिसमें 30 से अधिक स्टेशन रहेंगे, वहीं 6 किलोमीटर के प्रायोरिटी कॉरिडोर को पहले तैयार किया जा रहा है। उसके साथ ही इंदौर-भोपाल मेट्रो के घाटे को कैसे कम किया जाए और आय के नए स्त्रोत भी तलाशे जा रहे हैं, जिसके चलते दिल्ली की तरह ही मेट्रो स्टेशनों की नीलामी भी की जाएगी। 10 साल या उससे अधिक समय के लिए यह नीलामी होगी, जिसमें अधिक कीमत पर बोली लगाने वाली निजी कम्पनी या संस्था का नाम, पहचान, लोगो आदि का इस्तेमाल स्टेशनों पर होगा ही, साथ ही स्टेशन के नामकरण के पहले भी कम्पनी या संस्था अथवा सर्वाधिक बोली लगाने वाली एजेंसी का नाम रहेगा। इसके साथ ही स्टेशन पर डिजीटल होर्डिंग भी लगेंगे और मेट्रो की बोगी यानी कोच के अंदर और बाहर भी विज्ञापन किए जा सकेंगे।
इसी तरह मेट्रो कॉरिडोर के दोनों तरफ 500-500 मीटर में टीओडी पॉलिसी यानी ट्रांजिट ओरिएटेंड डवलपमेंट प्लान भी बनाया जा रहा है, जिसमें दोनों तरफ बनने वाली बिल्डिंगों को अतिरिक्त एफएआर के साथ अन्य सुविधाएं दी जाएगी और इसका एक या दो प्रतिदशत मेट्रो उपकर के रूप में वसूल किया जाएगा। मेट्रो कॉरिडोर के आसपास की सरकारी जमीनों की भी नीलामी की जाएगी। साथ ही मेट्रो कॉर्पोरेशन अपनी खुद की भी लिंक बसें चलाएगा, जो कि बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन से लेकर शहर की प्रमुख व्यवसायिक, बाजारों, कॉलोनियों, टाउनशिप से भी मेट्रो स्टेशन तक यात्रियों को लाने-ले जाने का काम करेगी। वहीं स्टेशनों के आसपास पार्किंग स्लॉट भी विकसित किए जाएंगे और इस पर पार्किंग का ठेका मेट्रो कॉर्पोरेशन द्वारा दिया जाएगा, ताकि मेट्रो में सफर करने वाले लोग अपने दो पहिया, चार पहिया वाहन इन पार्किंग स्थलों पर रख सकें। जिस तरह दिल्ली मेट्रो का इस्तेमाल किया जाता है, क्योंकि सडक़ से जाने में समय लगता है। इसकी बजाय मेट्रो से जल्दी पहुंचा जा सकता है। इस तरह के कई रेवेन्यू मॉडल पर इन दिनों काम किया जा रहा है।
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