इंदौर न्यूज़ (Indore News)

INDORE : उसे अस्पताल पहुंचाता तब तक मौत पहुंच गई

जिंदगी की जंग से जूझते लोगों ने दिल दहला दिया
मुश्किल से अस्पताल में जगह करवाई, लेकिन उसने पहुंचने से पहले रिक्शा में दम तोड़ दिया
हादसे तो बहुत देखे, लेकिन इस घटना नेे झंझोडक़र रख दिया-एसपी जैन
इन्दौर। कोरोना (Corona)  की दूसरी लहर के दौरान अस्पतालों में जगह नहीं थी। इस दौरान हमारे एक आरक्षक का फोन आया कि उसकी चाची को देवास (dewas) से लेकर वह इंदौर स्टेशन (indore station) पर आया है और किसी अस्पताल (hospital) में बेड नहीं मिल रहा है। उसकी हालत नाजुक है। जैसे-तैसे प्रयास कर उसके लिए अरबिंदो अस्पताल में बेड की व्यवस्था की, लेकिन उसने अस्पताल पहुंचने से पहले रीगल के पास रिक्शा में दम तोड़ दिया। यह कहना है एसपी पश्चिम महेशचंद्र जैन (maheshchandra jain) का।
कोरोना (Corona)  के कहर के दौरान यदि कोई सडक़ों पर था तो कोरोना (Corona) से पीडि़त मरीज और उनके परिजन… लाकडाउन के दौरान मुसीबत में पड़े ऐसे सैकड़ों लोगों मदद के लिए भटक रहे थे… हमारे अपने विभाग के आरक्षक अपने परिजन के इलाज की उम्मीद लिए इँदौर तो आ गया लेकिन मरीजों का कारवां समेटे शहर के अस्पताल लबालब भरे थे… किसी अस्पताल में बेड नहीं मिल रहे थे… ऐसे नाजुक समय में अपने साथ काम करने वालों को राहत पहुंचाना हमारा फर्ज भी था और परीक्षा भी… अपने परिजन को इँदौर लेकर आए आरक्षक की आंखों में उम्मीद थी… परिजन की हालत बिगड़ती जा रही थी… इंदौर पहुंचे मरीज को अस्पताल पहुंचाने के लिए मैंने तत्काल कई फोन लगाए… स्टेशन पर पहुंचे आरक्षक के परिजन के लिए किसी अस्पताल में बेड नहीं मिल रहे थे… बड़ी मुश्किल से अरविंदो हास्पिटल में बेड की व्यवस्था करवाई और उन्हें रवाना किया था कि हालत बिगडऩे से रास्ते मेें ही उन्होंने दम तोड़ दिया… हादसे तो बहुत देखे लेकिन इस घटना ने मुजे झंझोडक़र रख दिया…


रात बारह बजे के पहले नहीं पहुंच पाते घर
जैन का कहना है कि कोरोना काल में पुलिस का काम कठिन है। वे सुबह घर से निकलते हैं तो कई बार रात बारह बजे घर पहुंचते है। यूं दिन में एक बार खाना खाने घर जाते हैं। इसके बाद भी गुस्सा तब आता है, जब रात को दो बजे कोई गैरजरूरी बात के लिए फोन लगा देता है। वहीं कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो इस दौर में शहर का माहौल खराब करने का प्रयास करते हैं। ऐसी तीन-चार घटनाएं हुईं। हालांकि पुलिस ने समय रहते उस पर काबू पा लिया।
खिचड़ी के 120 पैकेट बनाते थे, अब 60 लग रहे
जैन ने बताया कि यूं तो मैंने पुलिस के हर व्यक्ति को कहा है कि दिन में कम से कम एक व्यक्ति की मदद अवश्य करें। मैं खुद भी यह प्रयास करता हूं कि दिन में मेरे कारण दो-चार लोगों की किसी भी तरह की मदद हो जाए। इस कारोना काल में जब मेरे एक रिश्तेदार इंदौर में अस्पताल में भर्ती हुए तो उन्होंने खिचड़ी के लिए फोन किया। उनको खिचड़ी पहुंचाने के बाद मुझे लगा कि कई लोगों को इसकी आवश्यकता है। इसके चलते मैंने पत्नी से बात की। पत्नी ने कहा कि वह खुद यह मरीजों के लिए खिचड़ी बनाएंगी। इसके बाद पहले एमवाय और कुछ अस्पताल में रोजाना 120 के लगभग पैकेट पहुंचा रहे थे। यह सिलसिला 1 मई से जारी है, लेकिन अब हालात कुछ बेहतर हुए हैं। इसके चलते कुछ दिनों से 60 पैकेट पहुंचा रहे हैं।

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