शहर के श्मशान के हाल बेहाल…पहले दिन अग्नि संस्कार तो दूसरे दिन ही अस्थि संचय के लिए लग रही भीड़
इंदौर। कोरोना (Corona) का इलाज कराते-कराते किसी को मौत हो रही है तो कोई इलाज न मिलने के कारण दम तोड़ रहा है। अस्पतालों (hospitals) और इंजेक्शन (Injection) की लाइन के बाद श्मशान (Cremation) में भी अपनों के दाह संस्कार के लिए लंबी लाइन लग रही है। श्मशान का कोई ऐसा कोना नहीं होगा, जहां चिता नहीं जलाई जा रही हो। हिन्दू रीति-रिवाज में तीसरे दिन अस्थि संचय (bone accumulation) की क्रिया होती है, लेकिन दिवंगतों के परिजनों को न चाहते हुए भी दूसरे ही दिन इस परंपरा को पूरा करना पड़ रहा है।
शहर में करीब 2 दर्जन से अधिक मुक्तिधाम हैं, जहां हिन्दू परिवारों के दिवंगतों का दाह संस्कार किया जा हरा है। भले ही प्रशासन कोरोना से मौत के पूरे आंकड़ें नहीं बता रहा हो, लेकिन जो हालात शहर में दिख रहे हैं, वो काफी भयानक है। ऐसा कोई दिन नहीं जा रहा है, जब मौत का आंकड़ा दो सौ से ढाई सौ तक नहीं पहुंच रहे हैं। अगर इन आंकड़ों की हकीकत देखना हो तो शहर के मुक्तिधाम में जाकर देखा जा सकता है, जहां दाह संस्कार के लिए बनाए गए प्लेेटफार्म के अलावा जहां जगह दिख रही है, वहां शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है। ताजा उदाहरण मालवा मिल मुक्तिधाम हैं। यहां प्लेटफार्म (platform) के अलावा उन स्थानों पर भी शवों का दाह संस्कार किया जा रहा है, जहां लोग बैठते हैं। हर कोई चाहता है कि अपने दिवंगतों का अंतिम संस्कार जल्द से जल्द हो, इसलिए चिता इतनी पास-पास सजा दी जाती है कि लोगों को निकलने तक की जगह नहीं बचती। यही हाल शहर के दूसरे मुक्तिधामों का भी हैं। यहां कर्मचारी कम होने के कारण भी चिता के लिए लकड़ी और अन्य व्यवस्थाएं करने में समय हो जाता है, जिससे कई बार शव लेकर आए लोगों का मुक्तिधाम की व्यवस्था देख रहे कर्मचारियों से विवाद हो जाता है। कई श्मशान में तो पैर रखने तक की जगह नहीं है और हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं।
अस्थियां संचय करने का समय सुबह 6 से 8
सभी मुक्तिधाम में बोर्ड लगा दिया गया है कि दाह संस्कार करने के बाद दूसरे दिन आकर परिजन अस्थियां ले जाएं, नहीं तो अस्थियां हटा दी जाएंगी। इसके लिए सुबह 6 से 8 बजे का समय दिया गया है। यही हाल अन्य मुक्तिधामों के भी हैं।