ब्‍लॉगर

नये भारत में सनातन परंपरा के एकीकरण का अभिनव प्रयास

– संजय तिवारी

यह नया भारत है। सनातन के महायोद्धा नरेन्द्र मोदी के सपनों का भारत। पिछले तीन दिनों से मोदी के संसदीय क्षेत्र और भगवान विश्वेश्वर की नगरी काशी में भारत की संत परंपरा के दर्शन हो रहे हैं। काशी में संस्कृति संसद-2023… अद्भुत है यह दृश्य। कश्मीर से कन्याकुमारी तक सनातन की गहरी जड़ों के प्राण तत्व संतों के सभी 127 संप्रदायों का प्रतिनिधित्व एक साथ एक मंच पर दिख रहा। यह वास्तव में सनातन भारत का आधार है। निमित्त हैं अखिल भारतीय संत समिति, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद, अखिल भारतीय गंगाहासभा और काशी विद्वतपरिषद। दंडी स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती का यह भगीरथ प्रयास। वास्तव में यह भारत को विश्वगुरु की भूमिका में खड़ा करने में प्रधानमंत्री मोदी को बहुत आशान्वित करने वाला है। ऐसे समय में जब कि अयोध्या में श्रीराम का भव्य मंदिर अब लोकार्पण की अवस्था में है, काशी से सनातन का यह संकल्प और उद्घोष बहुत गंभीर और आशानुकूल संदेश देने जा रहा है।

संस्कृति संसद के संयोजक और काशी विद्वतपरिषद के संगठन मंत्री गोविंद शर्मा बताते हैं कि ऐसा पहली बार हो रहा है कि उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक के सभी संप्रदायों के प्रमुख संत और महामंडलेश्वर एक साथ एक मंच पर हैं। संकल्प एक है, सनातन के विरुद्ध जहर उगलने वालों और साजिश करने वालों को अपनी शैली में प्रत्युत्तर देना और सनातन समाज को जागृत करना।


यदि राज्यवार विवरण पर गौर करें तो आंकड़ा भी बहुत संतोष देने वाला है। इससे यह आश्वस्ति होती है कि सनातन धर्म और संस्कृति के विरुद्ध कोई साजिश कामयाब नहीं हो पाएगी। इस समय काशी में इस आयोजन में ओडिशा से 91, पश्चिम बंगाल से 86, कर्नाटक से 14, तमिलनाडु से 43 , केरल से 26, झारखंड से 8, बिहार से 57, आंध्र प्रदेश से 19 और तेलंगाना से 4 बड़े संत, मंडलेश्वर और महामंडलेश्वर उपस्थित हैं। इनके अलावा उत्तर भारत और अन्य प्रांतों से लगभग डेढ़ हजार संत संस्कृति संसद में हिस्सा ले रहे हैं।

इस आयोजन की खास बात यह है कि सनातन के विरुद्ध जारी विश्वव्यापी षड्यंत्र, ग्लोबल डिसमेंटलिंग ऑफ हिंदुत्व , सनातन उन्मूलन जैसे अभियानों को भारत के संतों ने अब चुनौती के रूप में लेकर ऐसे सभी सनातन विरोधी साजिशों का भंडाफोड़ करने और उत्तर देने का संकल्प ले लिया है। अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती का मानना है कि सनातन हिंदू समाज को बांट कर रचे जाने वाले प्रत्येक कुचक्र का हम सामना करने और जवाब देने के लिए तैयार हैं।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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