ब्‍लॉगर

परीक्षाओं का मौसम है, पढ़ने के साथ खेलकूद भी जरूरी

– योगेश कुमार गोयल

दसवीं तथा 12वीं कक्षा की बोर्ड की वार्षिक परीक्षाएं शुरू हो चुकी हैं। यही वह समय होता है, जब विद्यार्थियों की सालभर की पढ़ाई का मूल्यांकन होना होता है। इसी परीक्षा की बदौलत उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए आधार मिलता है। इसलिए बहुत जरूरी है कि एकाग्रचित्त होकर इन परीक्षाओं की तैयारी की जाए। कुछ छात्र परीक्षा की तैयारी के लिए अपना कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं कर पाते और लक्ष्य निर्धारित नहीं होने के कारण एकाग्रचित्त होकर परीक्षा की तैयारी नहीं कर पाते। ऐसे में परीक्षा को लेकर उनका चिंतित और तनावग्रस्त होना स्वाभाविक ही है। किन्तु परीक्षा के दिनों में जरूरत से ज्यादा तनावग्रस्त रहना निश्चित रूप से हानिकारक साबित होता है। तनावग्रस्त रहने के कारण लाख कोशिश के बाद भी पढ़ाई में मन नहीं लग सकता। अतः यह अत्यंत आवश्यक है कि वे शुरू से ही पढ़ाई के प्रति रुचि बनाए रखें। अपना लक्ष्य निर्धारित करें, ताकि ऐसी परिस्थितियां ही उत्पन्न न होने पाएं, जिनके कारण परीक्षा को हौवा मानकर उन्हें तनावग्रस्त रहना पड़े।


कुछ छात्र वार्षिक परीक्षाओं की तैयारी में रात-दिन इस कदर जुट जाते हैं कि उन्हें अपने खाने-पीने की भी सुध नहीं रहती। कुछ मामलों में तो स्थिति यह हो जाती है कि खानपान के मामले में निरंतर लापरवाही बरतने के कारण छात्रों का स्वास्थ्य गिरता जाता है, जिसका सीधा-सीधा प्रभाव उनकी स्मरण शक्ति पर पड़ता है और नतीजा, परीक्षा की भरपूर तैयारी के बावजूद उन्हें आशातीत सफलता नहीं मिल पाती। एक छात्र के साथ भी पिछले साल 12वीं की परीक्षा में यही हुआ। वह अपनी कक्षा का होनहार छात्र था और जी-जान से परीक्षा की तैयारी में जुटा था। पढ़ाई में वह इस कदर मग्न था कि उसे अपने खाने-पीने का भी ध्यान न रहता। परिणामस्वरूप उसका स्वास्थ्य गिरता गया और परीक्षा के दिनों में वह बीमार पड़ गया। बीमारी की हालत में ही उसे परीक्षा देनी पड़ी। जब वह परीक्षा देने बैठा, तब शारीरिक और मानसिक अस्वस्थता की दशा में वह याद किए गए प्रश्नों के उत्तर भी भूल गया। इसका परिणाम यह रहा कि वह कामचलाऊ अंकों से ही परीक्षा उत्तीर्ण कर सका।

कहने का तात्पर्य यही है कि परीक्षा के दिनों में खूब मन लगाकर पढ़ाई करना और कड़ी मेहनत करना तो जरूरी है ही लेकिन पढ़ाई के साथ-साथ अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी बेहद जरूरी है क्योंकि यदि आपका शरीर ही स्वस्थ नहीं होगा तो आप परीक्षा की तैयारी बेहतर ढंग से मन लगाकर कैसे कर पाएंगे? परीक्षा में सफलता-विफलता को लेकर भी बहुत से छात्र परीक्षाओं के शुरू होने से पहले ही तनावग्रस्त हो जाते हैं और उनके मन में परीक्षा नजदीक आते ही बेचैनी सी छा जाती है। दरअसल कुछ छात्र ऐसे होते हैं, जो पूरे साल का समय तो मौजमस्ती में ही गुजार देते हैं और जब परीक्षाएं नजदीक आती हैं तो परीक्षाओं को हौवा मानकर घबराने लगते हैं। समय सारिणी बनाकर नियमित अध्ययन न करना भी छात्रों के तनावग्रस्त होने का प्रमुख कारण होता है। वैसे प्रायः वही छात्र परीक्षाओं को हौवा मानते हैं, जो सालभर तो मौजमस्ती करते घूमते फिरते हैं और परीक्षाओं के ऐन मौके पर उन्हें किताबों की सुध आती है। तब उन्हें समझ ही नहीं आता कि परीक्षा की तैयारी कैसे और कहां से शुरू की जाए। इसी हड़बड़ी तथा तनाव के चलते अकसर वे परीक्षा में पिछड़ जाते हैं। यदि किसी छात्र ने सालभर नियमित रूप से मन लगाकर पढ़ाई की है तो कोई कारण नहीं, जो परीक्षा से उसे किसी प्रकार का भय सताए।

यदि आप समय सारणी बनाकर अध्ययन-मनन करें तो कठिन से कठिन हर विषय भी आपको आसानी से समझ में आ सकता है। समय सारिणी बनाते समय इसमें केवल अपने मनपसंद विषय को ही वरीयता न दें बल्कि सभी विषयों पर बराबर ध्यान देने का प्रयास करें बल्कि जिस विषय में आप स्वयं को कमजोर पाते हैं, उस पर कुछ ज्यादा ध्यान केन्द्रित करने का प्रयास करें। जो भी कुछ पढ़ें या याद करें, उस पर पूरा ध्यान केन्द्रित करते हुए उसे दोहराते रहें ताकि वह लंबे समय तक याद रह सके। प्रत्येक विषय के संक्षिप्त नोट्स अवश्य बनाएं, जिससे परीक्षा की तैयारी में बहुत मदद मिलेगी। जो विषय अथवा प्रश्न समझ नहीं आ रहा हो, वह अपने शिक्षक अथवा मित्र से पूछने में संकोच न करें। परीक्षा के दिनों में भी पर्याप्त नींद लें। रात-रात भर जागकर पढ़ना स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं। जिस दिन आपको परीक्षा देनी है, उस रात भरपूर नींद लें वरना कहीं ऐसा न हो कि परीक्षा देते समय आपको आलस्य सताने लगे और आप चाहकर भी सही ढंग से परीक्षा न दे पाएं। अपनी लिखावट साफ-सुथरी और लिखने की गति तेज बनाएं ताकि प्रश्नपत्र हल करते समय आपको समय की कमी का रोना न रोना पड़े।

घर का वातावरण तथा अभिभावकों की सजगता भी वार्षिक परीक्षाओं में छात्रों की सफलता-विफलता का निर्धारण करने में अहम भूमिका निभाती है। परीक्षा की तैयारी के दिनों में छात्र को सर्वाधिक जरूरत होती है अपने अभिभावकों के मोरल सपोर्ट की। अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों को उचित मार्गदर्शन, सकारात्मक सहयोग और अपेक्षित समय देते हुए प्रोत्साहन भरे दृष्टिकोण से उनका मनोबल बढ़ाएं। अभिभावक उनके खानपान का पूरा ध्यान रखें।

मन लगाकर परीक्षाओं की तैयारी करने के साथ-साथ यह भी जरूरी है कि हर समय किताबों से चिपके रहने के बजाय कुछ समय खेलकूद अथवा मनोरंजन इत्यादि क्रियाकलापों के लिए भी निकालें। लगातार पढ़ाई करते रहने से मस्तिष्क पर भारी दबाव पड़ता है, जिससे मानसिक थकान होने के साथ-साथ एकाग्रता भी भंग होती है। इसलिए कई-कई घंटों तक निरन्तर अध्ययन करने के बजाय बीच-बीच में 5-10 मिनट आराम करें और भले ही दिनभर में थोड़े समय के लिए ही सही, मनोरंजन, खेलकूद इत्यादि गतिविधियों में अवश्य हिस्सा लें। मस्तिष्क की एकाग्रता बनाए रखने के लिए व्यायाम एवं योगाभ्यास करना भी जरूरी है।

(लेखक,स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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