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खजुराहो नृत्य समारोहः खजुराहो में नृत्य की भाव भंगिमाओं से सजा आनंद का कोलाज

भोपाल (Bhopal)। खजुराहो नृत्य महोत्सव (Khajuraho Dance Festival) में तबले और मृदंग की थाप, घुंघरुओं की झंकार (ringing bells) और सुघड़ भाव भंगिमाओं से लबरेज नृत्य की प्रस्तुतियां रोज देखने को मिल रही हैं। चंदेलों के बनाये वैभवशाली मंदिरों (Magnificent temples built by Chandelas) की आभा में जब घुंघरू रुनझुन करते हैं तो मंदिरों पर उत्कीर्ण पाषाण प्रतिमाएँ (stone sculptures on temples) जीवंत हो उठती हैं। यह सारा मंजर एक ऐसा कोला बनाता है जिसके सब रंग चटकीले होते हैं। नृत्य समारोह के छठें दिन शनिवार शाम को भी यह अदभुत आनंद पर्यटकों ने शिद्दत से महसूस किया। जननी मुरली के भरतनाट्यम, वैजयंती काशी और उनके साथियों के कुचिपुड़ी, निवेदिता पंड्या एवं सौम्य बोस की कथक ओडिसी जुगलबंदी और गजेंद्र कुमार पंडा एवं उनके साथियों की ओडिसी नृत्य प्रस्तुतियों ने समारोह को और ऊँचाई पर पहुँचा दिया।


समारोह में शनिवार की शाम का आगाज़ बैंगलुरू से आई जननी मुरली के भरतनाट्यम से हुआ। उनकी प्रस्तुति पौराणिक आख्यान पर आधारित थी। उन्होंने भगवान स्कन्द, जिन्हें हम कार्तिकेय के नाम से भी जानते हैं और भगवान कृष्ण की समानता को नृत्य के जरिये पेश किया। अरुल्ल यानि कृपा नाम की इस प्रस्तुति में जननी ने स्कन्द और कृष्ण के जन्म की कथा को बेहतरीन नृत्यभिनयों से पेश किया। दोनों ही योद्धा हैं। स्कन्द ने सूरपदनम का तो कृष्ण ने कंस का, बध किया और लोगों को उनके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई। स्कन्द ओंकार के उपदेशक हैं, तो कृष्ण गीता के। जननी ने अपने नृत्य में दोनों की समानता को अंग संचालन और नृत्य भावों से बड़े ही सलीके से पेश किया। इस प्रस्तुति में नटवांगम पर गुरु पद्मा मुरली, गायन पर आर. रघुराम, मृदंग पर कार्तिक विदात्री एवं बांसुरी पर राकेश दास ने साथ दिया। ताल और संगीत रचना हरि रंगास्वामी और नरसिम्हा मूर्ति की थी।

दूसरी प्रस्तुति कुचिपुड़ी नृत्य की रही। वैजयंती काशी और उनके साथी ने अदीबो अल अदीबा यानि “देखो उधर भी” नृत्य रचना से अपने नृत्य की शुरुआत की। इस प्रस्तुति में “देखो उधर भी” से आशय भगवान वेंकटेश्वर के सौंदर्य, श्रीदेवी भूदेवी के सौंदर्य और कृपा से है। नृत्य में वैजयंती और उनके साथियों ने अन्नामचारी की रचना हरिवासम पर अपने नृत्यभावों और पद संचालन से इस प्रस्तुति को बेजोड़ बनाया। वैजयंती ने अगली प्रस्तुति पूतना वध की दी और समापन तरंगम से किया। नृत्य संरचना खुद वैजयंती की थी, जबकि संगीत मनोज वशिष्ठ, पी रमा और कार्तिक का था। इन प्रस्तुतियों में प्रतीक्षा काशी, हिमा वैष्णवी, दीक्षा शंकर, अभिग्ना, गुरु राजू, नेहा और अश्विनी ने भी साथ दिया।

समारोह की तीसरी प्रस्तुति में कथक और ओडिसी की जुगलबंदी देखने को मिली। कलाकार थे निवेदिता पंडया और सौम्य बोस। निवेदिता कथक करती हैं और सौम्य ओडिसी। दोनों ने अपने नृत्य की शुरुआत कस्तूरी तिलकम से की। राग मधुवंती में कहरवा के भजनी ठेके पर काव्य रचना ” कस्तूरी तिलकम ललाट पटले वक्षस्थले कौस्तुभकम’ पर उन्होंने भगवान कृष्ण के श्रृंगारिक स्वरूप को नृत्यभावों से साकार करने का प्रयास किया। अगली प्रस्तुति में निवेदिता ने रायगढ़ शैली में कथक का शुद्ध स्वरूप पेश किया। इसमें उन्होंने तीन ताल में कुछ तोड़े टुकड़े, परनें, तिहाइयाँ, चक्करदार तिहाइयों की ओजपूर्ण प्रस्तुति दी। राग सरस्वती के नगमे पर यह प्रस्तुति और खिल उठी।

इसके बाद सौम्य ने ओडिसी में पल्लवी की प्रस्तुती दी। राग हंसध्वनि में एक ताल पर दी गई यह प्रस्तुति भी ओजपूर्ण थी। अगली प्रस्तुति में दोनों ने आदि शंकराचार्य कृत अर्धनारीश्वर की शानदार प्रस्तुति दी। राग और ताल मलिका से सजी यह नृत्य रचना केलुचरण महापात्रा की थी, जबकि संगीत भुवनेश्वर मिश्रा का था। नृत्य का समापन तीन ताल में कलावती के एक तराने से किया। इस प्रस्तुति में तबले पर मृणाल नागर, महदल पर एकलव्य मृदुली, सितार पर स्मिता बाजपेयी, वायलिन पर रामेशचंद्र दास और गायन पर विनोद विहारी पांडा ने साथ दिया।

सभा का समापन भुवनेश्वर के गजेंद्र कुमार पंडा और उनके साथियों के ओडिसी नृत्य से हुआ। उन्होंने गणनायक प्रस्तुति से अपने नृत्य की शुरुआत की। उन्होंने गणेश जी को साकार करने का प्रयास किया। राग सोहनी में एकताल की रचना- “जय जय हे जय जय हे गणनायक” पर उन्होंने बड़ा ही मनोहारी नृत्य पेश किया। अगली प्रस्तुति मान उद्धारण की थी। जगन्नाथ जी के भजन- “मान उद्धारण कर हे तारण” पर उन्होंने गज और द्रोपदी सहित भगवान के कई भक्तों के उद्धार की लीला को भावों में पिरोकर पेश किया। त्रिपटा ताल में यह एकल प्रस्तुति थी। समापन पर जोगिनी जोग रूपा नृत्य रचना पेश की। राग ताल मालिका में सजी इस प्रस्तुति में भगवान शिव और डिवॉन के नृत्य की कथा थी। गजेंद्र कुमार पंडा की यह प्रतुतियाँ बेहद पसंद की गई। (एजेंसी, हि.स.)

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