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IRCTC होटल घोटाले में लालू और तेजस्वी यादव की फिर बढ़ीं मुश्किलें, CBI को मिली बहस करने की इजाजत

नई दिल्‍ली। बिहार में चल रही सियासत के बीच राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद (Lalu Prasad) की मुकिश्‍लें एक बार फिर बढ़ने जा रही है। इस बार वे अकेले नहीं है, बल्कि उनके साथ उनकी पत्नी राबड़ी देवी, बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव (Deputy Chief Minister Tejashwi Yadav) समेत 11 अन्य आरोपी है, क्‍योंकि आईआरसीटीसी (IRCTC) होटल घोटाले में दिल्ली हाईकोर्ट ने अपना वर्चुअल स्टे हटा लिया है। हाईकोर्ट ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को निचली अदालत में आरोपी के खिलाफ आरोप तय करने पर बहस शुरू करने की मंजूरी दे दी है।
बता दें कि 2019 में आरोपी विनोद कुमार अस्थाना की दलील सुनने के बाद सुनवाई को टाल दी गई थी लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट ने पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद, उनकी पत्नी राबड़ी देवी, बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव और 11 अन्य आरोपियों से जुड़े आईआरसीटीसी होटल घोटाले में मुकदमे पर से अपना वर्चुअल स्टे हटा लिया है। हाईकोर्ट ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को निचली अदालत में आरोपी के खिलाफ आरोप तय करने पर बहस शुरू करने की मंजूरी दे दी है।



मामला यह है कि सीबीआई की एक विशेष अदालत ने जुलाई 2018 में लालू प्रसाद और अन्य के खिलाफ सीबीआई द्वारा दायर आरोपपत्र पर संज्ञान लिया था, लेकिन आरोप तय करने को लेकर बहस शुरू नहीं हुई। फरवरी 2019 में एक आरोपी ने चार्जशीट पर संज्ञान लेने के विशेष अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी। हाईकोर्ट ने याचिका पर संज्ञान लेते हुए आरोपी विनोद कुमार अस्थाना को निचली अदालत के समक्ष पेश होने से छूट दे दी। दो अन्य आरोपियों ने भी निचली अदालत के समक्ष इसी तरह के आवेदन दायर किए थे। इन घटनाक्रमों ने मुकदमे को एक तरह से रोक दिया और आरोप तय करने पर आज तक कोई बहस नहीं हुई।

विदित हो कि सीबीआई ने जुलाई 2017 में लालू प्रसाद यादव और अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया था। लगभग एक साल की लंबी जांच के बाद एजेंसी ने अप्रैल 2018 में अपनी चार्जशीट दायर की। दिल्ली हाईकोर्ट के फरवरी 2019 के आदेश के बाद सीबीआई ने मार्च 2020 में अस्थाना की याचिका के जवाब में एक स्टेटस रिपोर्ट दायर किया था।
वहीं सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि उसने जुलाई 2018 में एक आरोपी के खिलाफ अभियोजन की मंजूरी मांगी थी। तत्कालीन रेल मंत्री प्रसाद और चार अन्य सरकारी कर्मचारियों को अपने आधिकारिक पद का दुरुपयोग करते हुए पाया गया था। आरोप पत्र दाखिल करने के समय वे नौकरी में नहीं थे, इसलिए उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी तत्कालीन भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के प्रावधानों के तहत आवश्यक नहीं थी।

सीबीआई की रिपोर्ट में राबड़ी देवी, तेजस्वी यादव और अन्य आरोपियों को लेकर कहा गया कि उनके खिलाफ भी मुकदमा चलाने की मंजूरी को आवश्यक नहीं माना गया है। सीबीआई ने अपने रुख का समर्थन करने के लिए मार्च 2020 में अटॉर्नी जनरल से कानूनी राय मांगी थी कि आरोपियों के खिलाफ अभियोजन मंजूरी की आवश्यकता नहीं है। इसके बावजूद, मुकदमे में देरी न हो इसके लिए सक्षम प्राधिकारी ने जून 2020 में मामले में शामिल अस्थाना और अन्य सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ केस चलाने की मंजूरी दे दी थी, लेकिन एक बार फिर

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