उज्‍जैन न्यूज़ (Ujjain News)

100 करोड़ की जाल सेवा की भूमि तो मुक्त करा ली लेकिन 25 परिवारों को बेरोजगार किया, उनकी भी व्यवस्था करनी थी

  • 20 सालों से यहाँ रोजी रोटी चला रहे थे जिन्हें हटाया-1 लाख 77 हजार फीट जमीन है जिसे मुक्त कराया-प्रभावितों को वैकल्पिक स्थान दिया जाना चाहिए

उज्जैन। नगर निगम ने रविवार को 100 करोड़ रुपए की जमीन अतिक्रमण से मुक्त कराई। यह बेशकीमती भूमि अतिक्रमण से मुक्त हुई यह अच्छी बात है लेकिन नगर निगम और जिला प्रशासन गांधारी बना हुआ है और उसे यह नहीं दिखता कि दो-दो पीढ़ी से जो परिवार चला रहे हैं उन्हें हटाकर वह कौन समाजहित का काम कर रहा है। इन परिवारों को भी वैकल्पिक स्थान दिया जाना चाहिए। पूर्व में आगर रोड स्थित नरेश जीनिंग फेक्टरी और तकायमी जमीनी के अतिक्रमण हटाने में भी यही देखा गया। अधिकारी बाहर से आकर केवल यहाँ पर रौब गाठते हैं और वाहवाही लूटते हैं। छत्रीचौक से भी सैकड़ों ठेले वालों को बेरोजगार कर दिया गया जिससे अपराध बढ़ते हैं..। उल्लेखनीय है कि आजादी से पहले ग्वालियर स्टेट के समय उक्त भूमि नि:शुल्क रूप से दी गई थी। जिस पर जाल सेवा छात्रावास एवं अन्य प्रकल्प वर्षों तक संचालित किए जाते रहे। आवंटन के बाद जमीन के एक हिस्से में जाल सेवा निकेतन नाम से हायर सेकंडरी स्कूल भवन, मैदान बनाया गया। बाद में बालक-बालिका छात्रावास का निर्माण किया था। उक्त जमीन पर स्कूल संचालित होने के अलावा कई दुकानें शुरू हो गई और लोगों ने एक साइड वाल्मिकी कॉलोनी एवं दूसरी साइड मक्सी रोड पर कब्जा कर लिया।



नगर निगम द्वारा जमीन को लेकर न्यायालय में वाद दायर किया था, जिस पर फैसला नगर निगम के पक्ष में आया। न्यायालय से फैसला अपने पक्ष में आने के बाद नगर निगम ने जमीन पर कब्जा लेने की तैयारी शुरू कर दी है। इधर इस बात की जानकारी लगने पर कुछ दुकानदारों ने स्वेच्छा से अतिक्रमण हटाना शुरू कर दिया है। वर्तमान में जाल सेवा निकेतन की जमीन पर 7 से 8 परिवार निवासरत हैं, उन्हें भी जमीन खाली करवाने के लिए नोटिस जारी किया गया हैं। उक्त जमीन के कुछ हिस्से में नगर निगम ने सब्जी मंडी, सड़ी-गली सब्जियों से खाद और बिजली बनाने के लिए बायोमेथेनेशन प्लांट बनाया है। शेष रिक्त भूमि पर एक के बाद एक अवैध कब्जे बढ़ते चले गए। कब्जे स्वरूप टीन शेड की दुकानें किराए पर देकर राजनीतिक संरक्षण पाए कुछ लोगों ने बीते 20 सालों में करोड़ों रुपये कमा लिए। अब चूंकि न्यायालय ने जमीन नगर निगम की करार दे दी है तो इन किराएदारों के समक्ष विस्थापन की समस्य उत्पन्न हो गई है। अब सवाल यह है कि इतने वर्ष लोगों को सरकारी जमीन पर बसाकर हर माह किराया वसूलते रहे लोगों के खिलाफ कौन, क्या कार्रवाई करेगा। क्योंकि इस पूरे मामले में वो शख्स साफ बच निकले हैं, जिन्होंने सरकारी जमीन पर भोले-भाले लोगों से रुपया ऐंठकर उन्हें बसाया था। बताया गया है कि एक अभिभाषक के बेटे द्वारा मासिक किराए पर यहां जमीन, टीन शेड की करीब 25 दुकानें मुहैया कराई गई थी।

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