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Lok Sabha Elections : भाजपा को कांग्रेस से ज्यादा क्षेत्रीय दलों से मिलेगी चुनौती

नई दिल्ली। अगले लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) में भाजपा (BJP) को प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस (Congress) से ज्यादा चुनौती विभिन्न राज्यों के क्षेत्रीय दलों (regional parties of states) से मिल सकती है। देश के लगभग एक दर्जन राज्यों में लगभग 350 लोक सभा सीटें ऐसी हैं, जहां पर भाजपा को इन दलों से मुकाबला करना पड़ सकता है। इनमें कुछ दलों को राष्ट्रीय दल की मान्यता प्राप्त है, लेकिन उनकी भूमिका राज्यों तक ही सीमित है। इनमें सपा, बसपा, सीपीआई, सीपीएम, तृणमूल कांग्रेस, वाईएसआरसीपी, राजद, जदयू, शिवसेना, बीजद, बीआरएस, एनसीपी, शिवसेना, जेएमएम, एनसीपी और आम आदमी पार्टी प्रमुख है।

अगले साल 2023 में नौ राज्यों के विधानसभा चुनाव (Assembly elections in nine states) होने हैं, लेकिन इन राज्यों की रणनीति में लोकसभा की रणनीति भी शामिल रहेगी। चूंकि 2024 के अप्रैल-मई महीने में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए अब ज्यादा समय नहीं बचा है। वैसे भी भाजपा ने उन राज्यों में भी लोकसभा की रणनीति को अमलीजामा पहनाना भी शुरू कर दिया है, जहां विधानसभा चुनाव नहीं होने हैं। खासकर संगठन के स्तर पर तैयारियां की जा रही हैं और विभिन्न केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों के लगातार दौरे किए जा रहे हैं।


पिछले 2019 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को कांग्रेस से ज्यादा कड़ी चुनौती विभिन्न क्षेत्रीय दलों से मिली थी। तब कांग्रेस लोकसभा की 543 सीटों में से केवल 52 ही जीत पाई थी। जबकि क्षेत्रीय दलों ने उससे ज्यादा सीटें जीतकर अपनी मजबूती को जाहिर किया था। ऐसे में भाजपा 2024 की अपनी रणनीति को कांग्रेस से ज्यादा क्षेत्रीय दलों से मुकाबले पर केंद्रित कर रही है।

इन राज्यों में क्षेत्रीय दल हावी
सूत्रों के अनुसार भाजपा की रणनीति में तमिलनाडु में द्रमुक, आंध्र प्रदेश में वाईएसआरसीपी और तेलुगू देशम, बिहार में राजद और जदयू, उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा, ओडिशा में बीजद, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी, तेलंगाना में बीआरएस, जम्मू-कश्मीर में पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस, झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा, दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी और अकाली दल प्रमुख है।

बीते लोकसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो तमिलनाडु की 39 सीटों में द्रमुक को 24, आंध्र प्रदेश में 25 सीटों में वाईएसआरसीपी को 22 व टीडीपी को 3, बिहार में 40 सीटों में जदयू को 16, उत्तर प्रदेश में 80 सीटों में बसपा को 10 व सपा को 5, पश्चिम बंगाल में 42 सीटों में तृणमूल कांग्रेस को 22, महाराष्ट्र में 48 सीटों में शिवसेना को 18 व एनसीपी को 5, ओडिशा में 21 सीटों में बीजद को 12, तेलंगाना में 17 सीटो में टीआरएस को 9, झारखण्ड में 14 सीटों में जेएमएम को 1, पंजाब में 13 सीटों में आम आदमी पार्टी को 1 व शिरोमणि अकाली दल को 2, जम्मू-कश्मीर में 6 सीटों में नेशनल कॉन्फ्रेंस को 3 सीटें मिली थी। इनके अलावा इन राज्यों में कुछ और छोटे दल भी चुनाव जीते थे।

कांग्रेस तेजी से घटी, क्षेत्रीय दल बढ़े
दरअसल कांग्रेस पार्टी का राष्ट्रीय स्वरूप 2014 के बाद तेजी से घटा है और पूर्वोत्तर तो उसके हाथ से पूरी तरह ही निकल गया है। इसकी मुख्य ताकत अभी केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड, गुजरात, तेलंगाना जैसे राज्यों में है, लेकिन चुनावी नतीजों में उतार-चढ़ाव होता रहता है।

गौरतलब है कि देश में अभी जिन दलों को राष्ट्रीय दल की मान्यता प्राप्त है उनमें भाजपा और कांग्रेस के अलावा हालांकि इन दलों की ताकत कुछ राज्यों में ही सीमित है। ऐसे में इनके खिलाफ रणनीति में उन राज्यों की क्षेत्रीय ताकत के रूप में ही विचार किया जाता है। भाजपा की रणनीति भी इसी तरह से बनाई जा रही है।

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