ब्‍लॉगर

लव जिहाद पर अंकुश जरूरी

– प्रमोद भार्गव

देश के कई नगरों में बड़े विवाद का कारण बन रहे लव जिहाद पर प्रतिबंध के लिए कठोर कानूनी उपाय जरूरी हैं। मध्य प्रदेश समेत उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, कर्नाटक की राज्य सरकारों ने इस दृष्टि से कानून के प्रारूप की तैयारी शुरू कर दी है। इस नजरिए से मप्र सरकार ‘मध्य प्रदेश धर्म स्वातंत्रय (संशोधन) विधेयक 2020’ आगामी विधानसभा सत्र में लाएगी। इस बावत गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा है कि इस विधेयक में लव जिहाद के दोषी को 5 साल की सजा के प्रावधान के साथ मामला गैर जमानती धाराओं में दर्ज होगा। अभीतक धर्म परिवर्तन कराने वाले को ही दोषी माना जाता है, नए कानून में जबर्दस्ती या अन्य हथकंडे अपनाकर धर्म परिवर्तन कर शादी करने वाले के माता-पिता, भाई-बहन और अन्य सहयोगियों को भी आरोपी बनाया जाएगा। लव जिहाद की मध्य प्रदेश समेत देश में बढ़ती घटनाओं के चलते इस तरह का कानून लाना जरूरी हो गया है।

दरअसल लव जिहाद और धर्मांतरण अब देश में आतंकवाद के प्रच्छन्न रूप में सामने आ रहे हैं। इसलिए इनसे निपटना किसी भी संवेदनशील सरकार के लिए आवश्यक है। धर्मांतरण को लेकर दुनिया में सबसे बेहतर कानून म्यांमार का है। वहां वर्ष 2000 में ही इस सिलसिले में कठोर कानून अस्तित्व में आ गया था। यहां धर्म परिवर्तन पर ही प्रतिबंध है। इसमें दो अलग-अलग धर्म के स्त्री-पुरुष बिना धर्म परिवर्तन किए विवाह कर सकते हैं। इसमें भी शादी के बाद होने वाली संतान की धर्म की स्वतंत्रता मर्जी से चुनने का अधिकार है। भिन्न धर्म के पति-पत्नी को अपनी-अपनी सामाजिक मान्यताओं के अनुसार रीति-रिवाज के पालन की भी छूट है।

सही मायनों में यही धार्मिक स्वतंत्रता और अंतर धार्मिक विवाह है। क्योंकि जब भिन्न धर्मावलंबी प्रेम का परवान चढ़कर वैवाहिक गठबंधन की दहलीज पर पैर रखते हैं, तब उनके मनोभाव परस्पर केवल प्रेम से जुड़े होते हैं, न कि किसी धार्मिक मान्यता की बाध्यता से? हिंदु, सिख, जैन व बौद्ध युगल यथास्थिति में रहते हुए ही विवाह के बंधन में बंध जाते हैं किंतु इस्लाम इसकी इजाजत नहीं देता है। वहां यदि लड़की हिंदू है तो उसे हर हाल में इस्लाम की स्वीकारोक्ति के बाद ही निकाह की अनुमति मिलती है। इसलिए ऐसे विवाह को हम अंतरधार्मिक विवाह कहकर उदारता भी नहींं दिखा सकते? दरअसल अंतरधार्मिक विवाह वह कहलाएगा, जिसमें विवाह करने वाले दंपत्ति की स्वतंत्र धार्मिकता प्रचलन में रहे और वह परिवार समेत समाज में भी मंजूर हो? लेकिन मुसलमानों में ऐसा कतई देखने में नहीं आता है। बल्लभगढ़ का निकिता तोमर की सरेराह हुई हत्या इसका ताजा उदाहरण है।

खासतौर से हिंदु मुस्लिमों के बीच होने वाले विवाह प्रेम की पवित्रता से जुड़े होते तब तो इन्हें ठीक माना जा सकता था, किंतु अब इनमें धर्म परिवर्तन का “षड्यंत्र, प्रलोभन और बहला फुसलाकर जबरन शादी कर लेने के मामले सामने आ रहे हैं। इसलिए हिंदु समाज ही नहीं केरल की कैथोलिक चर्च भी ऐसे प्रेम को लव जिहाद कहकर ईसाई समाज को चेतावनी दे रहा है। 19 जनवरी 2020 को सर्वोच्च सिरो मालाबार कैथोलिक चर्च ने प्रति रविवार को होने वाली प्रार्थना सभा में एक परिपत्र जारी कर कहा कि ईसाई लड़कियों को प्यार के जाल में फंसाकर उनका धर्मांतरण कर उन्हें आतंकी संगठन इस्लामी स्टेट (आईएस) का सदस्य तक बनाया जा रहा है।

लखनऊ में तो मोहम्मद कातिल पत्रकारिता की आड़ में लव जिहाद का खेल खेलता रहा। चिनहट की रहने वाली जब एक युवती इससे पत्रकारिता के गुर सीखने आई तो इसने कॉफी में नशीला पदार्थ पिलाकर दुराचार किया। वीडियो फिल्म बनाई और फिर शादी कर लेने को कहा, जबकि उसकी पहली पत्नी भी हिंदु है और उसके दो बच्चे हैं। अब इस युवती की शिकायत पर इस मामले में प्राथमिकी दर्ज कर कानूनी प्रक्रिया चल रही है।

उत्तर प्रदेश के ही मेरठ में 23 जुलाई 2020 को एक बेहद व खौफनाक मामला सामने आया था। यहां के शाकिब नाम के मुस्लिम युवक ने अमन बनकर एक बीकॉम युवती को अपने कथित लव जिहाद में फंसाया। शादी के नाम पर उससे 25 लाख रुपए भी ठग लिए। इसके बाद जब ईद के दिन युवती को असलियत पता चली तो उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। जब इस फरेबी मोहब्बत का पर्दाफाश हो गया तो शाकिब ने अपने परिजनों व मित्रों के साथ मिलकर युवती की निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी। कानपुर में इसी तरह के एक जबरन धर्म परिवर्तन के मामले में एसआईटी की जांच में पाकिस्तानी फंडिंग की बात सामने आई है। साफ है लव जिहाद से जुड़े ऐसे मामले न केवल जबरन धर्म परिवर्तन, बल्कि मासूम हिंदू युवतियों की हत्या और आतंकवाद के भी पर्याय बन रहे हैं।

ऐसे ही एक मामले के परिप्रेक्ष्य में 30 अक्टूबर 2020 को हलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अहम फैसला सुनाते हुए कहा था, ‘विवाह से धर्म परिवर्तन का कोई सरोकार नहीं है। जब धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्ति को जिस धर्म को वह अपनाने जा रहा है, उस धर्म के मूल सिद्धांतों के बारे में ही कोई जानकारी है, न उसकी मान्यताओं और विश्वासों के प्रति कोई आस्था है, तो फिर धर्म परिवर्तन का क्या औचित्य?’ दरअसल धर्म परिवर्तन के बाद विवाह करने वाले एक जोड़े ने न्यायालय से संरक्षण की मांग की थी। न्यायामूर्ति एमसी त्रिपाठी ने 2014 के नूरजहां बेगम मामले का हवाला देकर इस याचिका को खारिज कर दिया था। ऐसी पांच याचिकाएं थीं जिनमें न्यायालय से पूछा गया था कि क्या सिर्फ विवाह के लिए धर्म परिवर्तन हो सकता है? इन मामलों में भोली-भाली हिंदू लड़कियों ने मुस्लिम लड़कों के बरगलाने पर इस्लाम कबूल कर लिया था। जबकि इन लड़कियों को इस धर्म के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।

संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप का कहना है कि कोई भी राज्य सरकार चाहे तो धर्मांतरण रोकने के लिए कानून बना सकती है। इसमें जबरन धर्म बदलने और जबरन शादी करने को लेकर कानूनी प्रावधान हो सकते हैं। कोई भी व्यक्ति धर्म के प्रलोभन में आकर धर्म नहीं बदल सकता है। ओडीशा में 1967 से ही कपटपूर्वक धर्मांतरण प्रतिबंधित है। इस कानून के मुताबिक प्रलोभन, ताकत या किसी भी प्रकार से प्रताड़ित करके व्यक्ति का धर्मांतरण नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार से यदि धर्म परिवर्तन किया जाता है तो धर्मांतरण कराने वाले व्यक्ति को एक साल की सजा और 50 हजार के जुर्माने का प्रावधान है। 2017 में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने विवाह केवल वैवाहिक लक्ष्य पूर्ति के लिए धर्म परिवर्तन करने की मंशा पर प्रतिबंध लगाने का सुझाव प्रदेश सरकार को दिया था।

हमारे तथाकथित उदारवादी लोग धार्मिक स्वतंत्रता के बहाने कपटपूर्ण लव जिहाद को भी जायज ठहराने की कोशिश करते हैं। ऐसी इकतरफा पक्षधरता इस्लामिक धर्मांधता को बढ़ाने वाली है। जबकि ये लव जिहादी हिंदू स्त्री अस्मिता की जड़ पर प्रहार करते हुए उसके मन और शरीर से खिलवाड़ कर उसे मौत देने तक का काम कर रहे हैं। साफ है, धार्मिक स्वतंत्रता की ओट में जो प्रेम लव जिहाद के रूप में फलता है, वह हरेक प्रेम निश्चल नहीं होता है। बहरहाल धर्मनिरपेक्षता बहु सांस्कृतिक स्वरूप और अंतर धार्मिकता के बहाने लव जिहाद जैसी विक्रति पर आवरण डालना देश हित में कतई नहीं है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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