इंदौर। 18 नवंबर 2015 को महू की सांघी स्ट्रीट में हुई एडवोकेट योगेश गर्ग की हत्या में आरोपी बनाए गए सभी आरोपियों को महू न्यायालय द्वारा बरी कर दिया गया है। उल्लेखनीय है कि उक्त हत्याकांड के पीछे जमीनी विवाद प्रमुख वजह था, मगर पुलिस ने अपनी केस डायरी में जमीनी विवाद का कहीं खुलकर जिक्र ही नहीं किया और साथ ही पुलिस ने अमेरिका और मुंबई में रहने वाले दो लोगों को केस में गवाह बना डाला, जिससे पुलिस केस कमजोर साबित हुआ और सभी आरोपी बरी हो गए।
इस हत्याकांड में पांच आरोपी विकास चौहान, सावन खोड़े, मांगीलाल ठाकुर, सुरेश और राजू डाबोरिया को गिरफ्तार किया गया था, जिसमें मांगीलाल ठाकुर को मास्टरमाइंड बताया गया था, वहीं विकास और सावन को शूटर बताया गया था। केस जीतने के बाद एडवोकेट विक्रम दुबे ने बताया कि पुलिस ने घटना में प्रयोग की गई रिवाल्वर 24 नवंबर को जब्त की थी, लेकिन इसका मेमोरेंडम चालान में पेश नहीं किया और यह बाद में 25 नवंबर को दिखाया गया। यह जब्तियां 25, 26 और 27 को बताईं। पुलिस की ओर से यह गंभीर चूक रही, जो आरोपियों के पक्ष में रही, वहीं देशी और अंग्रेजी पिस्तौल के बारे में भी दर्ज ब्योरा सही नहीं था। ब्योरे में जांच अधिकारी ने शॉटगन की गोली से हमला करने की बात लिखी, जो गलत थी, क्योंकि गोली देसी पिस्तौल से चली थी। डिजिटल एविडेंस के प्रमाण पत्र भी सही तरीके से प्रस्तुत नहीं किए गए थे। सीआरपीसी 100 और 155 के तहत गवाह मौके पर मौजूद लोगों को होना चाहिए, लेकिन पुलिस ने इस मामले में एक गवाह अमेरिका में रहने वाले योगेश गर्ग के भाई जयेश गर्ग को बनाया और दूसरा गवाह उस समय मुंबई में रहने वाले उनके साले मयंक को बनाया था।
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