- डेढ़ से दो माह में नहीं मिला पैसा
- केंद्र से मजदूरी व सामग्री के चाहिये 800 करोड़
भोपाल। प्रदेश के लाखों मजदूर उधारी में काम करने के लिये मजबूर हैं। यह हाल किसी और निजी संस्थान के नहीं, बल्कि 100 दिनों का रोजगार सुनिश्चित करने वाली मनरेगा के हैं। वह इसलिये भी कि इनको बीते डेढ़-दो माह से मजदूरी नही मिली है। जबकि महंगाई के इस दौर में आर्थिक जरूरतों के लिये राज्य के औसतन 9 लाख लोग मजदूरी पर निर्भर है। इनका करीब 463.02 करोड़ का भुगतान रूका हुआ है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार राज्य को मजदूरी व सामान के केंद्र से करीब 800 करोड़ रूपये चाहिये। इनमें 454.23 करोड़ रूपये सिर्फ मजदूरी के ही है। इसके चलते मजदूरों को कई तरह की आर्थिक दिक् कत का सामना करना पड़ रहा है। कमोबेश यही हाल सामाग्री मद को लेकर है। यह लेनदारी 286.34 करोड़ रूपये की बकाया है। भुगतान नहीं होने से ग्राम पंचायतों को सामान भी नहीं मिल पा रहा है। क्योंकि निर्माण सामग्री आपूर्ति कर्ता अब हाथ खड़े करने लगे हैं। हालांकि केंद्र सरकार ने बताया है कि 5557.94 करोड़ रूपये 30 नवंबर तक जारी कर चुके हैं। बावजूद इसके कुल भुगतान 982.59 करोड़ रूपये का बकाया है। इस वित्तीय वर्ष में मप्र 10 लाख 8 हजार से अधिक परिवार न्यूनतम 100 दिनों के रोजगार की अवधि पूरी कर चुके हैं।
काम के लिये नहीं पहुंच रहे हैं मजदूर
प्राप्त जानकारी के अनुसार मौजूदा वित्तीय वर्ष में 55.29 लाख परिवारों ने रोजगार मांगा। जिसमें 55.21 लाख परिवारों को काम का प्रस्ताव दिया। बावजूद इसके इनमें सिर्फ 45.18 को ही मजदूरी का अवसर मिल पाया। बताया जाता है कि शेष करीब 10.11 लाख काम के लिये ही नहीं पहुंचे। लिहाजा प्रस्ताव के बाद भी उनको काम नहीं दिया जा सका है। जबकि यह स्थिति बीते वर्ष भी बनी थी। तब रोजगार मांगने वाले 66.05 लाख परिवारों में सिर्फ 55.31 लाख को ही काम मिल पाया था। इनमें 66.00 लाख परिवारों को रोजगार का प्रस्ताव दिया गया था।
बढ़ रही है महिला मजदूरों की संख्या
मनरेगा में काम करने वाले परिवारों का औसत प्रतिशत इस वर्ष जहां 45.76 लाख रहा है। वहीं व्यक्तियों की औसत संख्या 83.52 रही है। इनमें महिलाओं का प्रतिशत 40.8 रहा है। यह संख्या बीते वर्ष कोरोना कॉल के मुकाबले करीब 0.39 प्रतिशत कम है। बावूजद इसके आंकड़े बताते हैं कि बीते दो वर्षों में मनरेगा में मजदूरी करने वाली महिलाओं का प्रतिशत लगातार बढ़ रहा है। आंकलन इसी से किया जा सकता है कि वर्ष 2018-19 में यह प्रतिशत 36.54 में सिमटा हुआ था।
पंचायत चुनाव के दौरान बढ़ी सरपंचों की मुश्किल
पंचायत चुनाव के दौरान भुगतान की इस स्थिति के कारण निर्वतमान सरपंचों के लिये परेशानी का सबब बन गई है। क्योंकि मजदूरी का समय पर भुगतान नहीं होने से परेशान मजदूर इसके लिये सरपंच को ही जिम्मेदार ठहराने से बाज नहीं आ रहे हैं। ऐसे में सरपंच अफसरों के यहां भुगतान का दबाव बनाने में जुटे हुए हैं।
वर्ष 2020-21 वर्ष 2021-22
रोजगार की मांग करने वाले परिवार 66.05 55.29
रोजगार का प्रस्ताव पाने वाले परिवार 66.00 55.21
रोजगार प्राप्त करने वाले परिवार 55.31 45.18
लाख में