देश

मुरादाबाद में घर पर सामूहिक नमाज पढ़ने पर हुई FIR से मचा बवाल, जानें क्या कहता है कानून

मुरादाबाद । यूपी के मुरादाबाद (Moradabad) में छजलैट थाना के गांव दूल्हेपुर में एक घर में सामूहिक रूप से नमाज़ (Namaz ) पढ़ने वाले 26 लोगों पर मुकदमा दर्ज होने का मामला बड़ा हो गया है. इसे लेकर राजनीति शुरू हो गई है. AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने ट्वीट करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी से सवाल भी किया है. वहीं अन्य मुस्लिम नेता (Muslim leaders) भी इसे गलत बता रहे हैं.

इन सबके बीच एक अहम सवाल ये है कि आखिर कानून क्या कहता है, पुलिस ने जो कार्रवाई की है वह किस आधार पर की है, पुलिस सही है या गलत. ऐसे तमाम सवाल हैं जिनका जवाब लोग जानना चाहते हैं. आज हम आपको विस्तार से बताएंगे नमाज पढ़ने को लेकर क्या है कानून.

निजी संपत्ति पर नमाज को लेकर क्या है नियम
इस मामले में कुछ मुस्लिम नेता इस बात को लेकर मुद्दा बना रहे हैं कि लोग घर में नमाज पढ़ रहे थे, तो इसमें क्या दिक्कत. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि कानून घर में नमाज पढ़ने को लेकर क्या कहता है. मुरादाबाद के कांठ से एसडीएम जगमोहन गुप्ता का कहना है, “निजी संपत्ति में अकेले नमाज पढ़ना गलत नहीं है. परिवार के साथ भी नमाज पढ़ सकते हैं, लेकिन इस तरह सामूहिक नमाज़ नहीं पढ़ी जा सकती है. परिवार से बाहर के लोग और ज्यादा संख्या में लोग घर में नमाज पढ़ने के लिए जुटते हैं तो इसके लिए परमीशन की जरूरत होती है. एक परिवार के लोग घर में नमाज पढ़ सकते हैं, फिर चाहे परिवार में 7-8 लोग ही क्यों न हों, लेकिन इधर-उधर से लोग इकट्ठा होकर किसी के घर में नमाज पढ़ने जाएं तो बिना अनुमति ये ठीक नहीं है. क़ानूनी रूप से निजी संपत्ति पर सामूहिक नमाज़ नहीं पढ़ सकते हैं. इसके लिए मस्जिद है.”


सार्वजनिक संपत्ति पर क्या कहता है नियम
अब एक और अहम सवाल ये आता है कि मंदिर, मस्जिद भी सार्वजनिक संपत्ति की श्रेणी में आते हैं. कानून इन जगहों पर नमाज या पूजा की अनुमति देता है. ऐसे में लोग इस सवाल का जवाब जानना चाहते हैं कि जब सार्वजनिक संपत्ति पर नमाज पढ़ने की अनुमति है तो लुलु मॉल में नमाज को लेकर हंगामा क्यों हुआ था, वो भी तो सार्वजनिक संपत्ति है. यहां हम बता दें कि कानून इसका भी अंतर बताता है और आपको ये बारीक अंतर समझना चाहिए. कुछ वरिष्ठ वकीलों ने बताया कि मॉल, अस्पताल, मंदिर-मस्जिद जैसे धार्मिक स्थल, सिनेमा हॉल, अदालतें, बारात घर या पार्क सार्वजनिक स्थल की कैटेगरी में आते हैं. इनका निर्माण खास मकसद से होता है. इन सब में अलग-अलग सेवाओं के लिए अलग-अलग लाइसेंस की जरूरत होती है.

कानून कहता है कि अगर एक सार्वजनिक स्थल या संपत्ति का इस्तेमाल निर्धारित सेवा की जगह किसी दूसरी श्रेणी की सेवा के लिए हो यह सेवाओं का उल्लंघन है और इसके लिए प्रशासनिक अनुमति जरूरी है. बिना अनुमति सेवा का उल्लंघन करना अवैध है और इसे कानून का भी उल्लंघन माना जाता है.

सार्वजनिक संपत्ति पर अनुमति, तो लुलु मॉल पर विवाद क्यों
लुलु केस में भी यही हुआ. मस्जिद सार्वजनिक स्थल है और यहां नमाज पढ़ना भी सही है, लेकिन जब आप इसी नमाज को मॉल, एयरपोर्ट या सिनेमा हॉल जैसे दूसरे सार्वजनिक स्थल पर पढ़ेंगे तो यह कानूनन गलत है. दरअसल, ये सारी जगहें सार्वजनिक स्थल होने के साथ ही धर्म निरपेक्ष भी मानी जाती हैं. इन जगहों पर हर धर्म के लोग आते-जाते हैं. ऐसे में इन जगहों का यूज किसी एक धर्म विशेष के लिए सही नहीं माना जाता. यही वजह है कि सार्वजनिक स्थल पर न तो नमाज पढ़ना सही है और न ही पूजा करना.

Share:

Next Post

कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए तीसरी बार मुकाबला, शशि थरूर चुनाव लड़ने पर कर रहे हैं विचार

Tue Aug 30 , 2022
नई दिल्ली। कांग्रेस में अध्यक्ष पद के चुनाव (Congress President Election) की घोषणा होने के साथ ही सबकी नजरें अब जी-23 नेताओं (G-23 Leaders) पर टिकी हैं। सबके जेहन में एक ही सवाल है कि क्या अध्यक्ष पद पर कांग्रेस में तीसरी बार मुकाबला होगा। गौरतलब है कि पिछले तीन दशक में दो बार कांग्रेस […]