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ईरान नहीं अब नामीबिया के चीते भरेंगे भारत में उड़ान, जानें क्‍यों फंसा था पेंच

नई दिल्ली। पूरे 75 साल बाद एक बार फिर भारत (India) के जंगल में चीते देखने को मिलेंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी(Prime Minister Narendra Modi) नामीबिया (Namibia) से आए 8 चीतों को मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क (Kuno National Park) में स्वतंत्र विचरण के लिए छोड़ने वाले हैं. चीता इस धरती पर सबसे तेज दौड़ने वाला जानवर है. ये जब अपने शिकार के पीछे भागता है तो 120 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार पकड़ सकता है. चीता को भारत लाने के श्रेय को लेकर कांग्रेस और बीजेपी (Congress and BJPCongress and BJP) आमने-सामने हैं. भारत में चीता लाने की कवायद कब शुरू हुई? क्या चीता लाना जरूरी था? जानिए सब कुछ…



1947 में अंग्रेजों के साथ-साथ चीतों से भी भारत मुक्त हो गया था. 1990 के दशक में प्रोजेक्ट टाइगर के सकारात्मक परिणाम देखने को मिले तो उत्साहित होकर भारत सरकार ने प्रोजेक्ट एलिफैंट लॉन्च किया और चीता को भारत लाने पर भी चर्चा शुरू हुई. सबसे पहले ईरान से संपर्क किया गया, क्योंकि ईरान में एशियाटिक चीते हैं, जो भारतीय चीतों की तरह ही हैं. भारत में इनके सर्वाइव करने की संभावना सबसे ज्यादा थी, लेकिन ईरान ने चीता देने से मना कर दिया. उसके बाद गैर आधिकारिक तौर पर कहा जाता है कि चीतों के बदले में ईरान से एशियाटिक लायन मांगे गए थे, जिसके लिए वहां की सरकार तैयार नहीं हुई.

ईरान ने टीश्यू और सेल्स देने से भी इनकार कर दिया
ईरान के इनकार के बाद भी भारतीय वैज्ञानिकों ने हार नहीं मानी. साल 2000 में CCBM (Centre For Cellular And Molecular Biology) हैदराबाद के वैज्ञानिकों ने प्रस्ताव दिया कि हमें सिर्फ चीतों के कुछ सेल्स और टीश्यू मिल जाएं तो हम उसे क्लोन करके चीता बना देंगे, लेकिन ईरान ने इसके लिए भी इनकार कर दिया.

प्रोजेक्ट चीता किसका है?
साल 2008-09 में चीता को भारत लाने की कवायद फिर शुरू हुई, भारत सरकार ने अफ्रीकन चीतों के भारत में सर्वाइवल के लिए अध्ययन करवाया. एक्सपर्ट कमेटी में NTCA और WII देहरादून के वैज्ञानिक शामिल थे. कमेटी ने कूनो नेशनल पार्क को चीता रिइंट्रोडडक्शन के लिए सही बताया. चीतों के लिए इस बार भारत ने नामीबिया से संपर्क किया. नामीबिया ने चीता देने के लिए हामी भरी.

2011 में प्रोजेक्ट के लिए 50 करोड़ रुपये जारी
25 अप्रैल 2010 को तत्कालीन वन मंत्री जयराम रमेश चीतों को देखने के लिए नामीबिया गए. 2011 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने प्रोजेक्ट चीता के लिए 50 करोड़ रुपये जारी किए. चीतों के रखरखाव पर प्रति वर्ष 300 करोड़ रुपये का बजट प्रस्तावित था.

2012 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रोजेक्ट चीता पर रोक लगाई
प्रोजेक्ट चीता पर सबकुछ ठीक चल रहा था, लेकिन कुछ संगठनों ने आपत्ति लगाकर प्रोजेक्ट को कोर्ट में घसीट लिया. मई 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रोजेक्ट पर रोक लगा दी. 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा- चीतों को लाने की बजाय गुजरात के गिर से शेरों को ट्रांसलोकेट किया जाये, ताकि किसी बीमारी फैलने की स्थिति में शेरों को बचाया जा सके.

गुजरात से न शेर शिफ्ट हुए, ना चीता आए
2013 में नरेंद्र मोदी गुजरात के सीएम थे, उस वक्त सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुपालन में मोदी के नेतृत्व वाली गुजरात सरकार ने तर्क दिया कि शिफ्टिंग में अड़चनें हैं. गुजरात सरकार के गोल-मटोल रवैये की वजह से गिर के शेरों को ट्रांसलोकेट नहीं किया गया और न ही नामीबिया से चीते आ सके.

2019 में सुप्रीम कोर्ट ने रोक हटा दी
2019 में केंद्र सरकार ने एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने प्रोजेक्ट चीता से रोक हटा दी. भारत सरकार ने फिर से प्रोजेक्ट चीता पर काम शुरू किया. पूरे तीन साल बाद 16 सितंबर 2022 को 8 चीतों को विमान से भारत लाया गया जिन्हें अपने जन्मदिन पर आज पीएम मोदी कूनो नेशनल पार्क में छोड़ देंगे.

चीता जरूरी या गैर जरूरी?
इकोलॉजी चेन से जब कोई जीव विलुप्त होता है तो उसकी जगह दूसरे जीव ले लेते हैं, जिससे इको सिस्टम चलता रहता है. जंगली कुत्तों और भेड़ियों ने चीतों की जगह ले ली है, जब चीतों को दोबारा उस जगह पर छोड़ा जाएगा तो इनमें कॉन्फ्लिक्ट हो सकता है. प्रोजेक्ट चीता पर अब कितना खर्च होगा, इसकी जानकारी अभी उपलब्ध नहीं है, लेकिन 2011 में 300 करोड़ का बजट था, यह बहुत अधिक है. चीता एक अंब्रेला स्पीसीज है, यानी एक जानवर के संरक्षण से ऑटोमेटिक कई और जीवों का संरक्षण हो जाता है. चीते सर्वाइव कर गए तो वन्यजीव प्रेमी कूनो नेशनल पार्क विजिट करेंगे. अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी.

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