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जेल में क्लर्क बने नवजोत सिद्धू, 3 महीने तक चलेगी ट्रेनिंग, जानें कितनी मिलेगी सैलरी


चंडीगढ़: करीब 34 साल पुराने रोड रेज मामले में एक साल की जेल की सजा काट रहे नवजोत सिंह सिद्धू को जेल में क्लर्क का सहायक नियुक्त किया गया है. बता दें कि अभी पूर्व क्रिकेटर और राजनीतिज्ञ नवजोत सिंह सिद्धू पटियाला जेल में सजा काट रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जेल अधिकारियों ने बताया कि मंगलवार से ही सिद्धू ने अपना काम करना शुरू कर दिया था. सिद्धू सहायक की नौकरी दो पालियों में करेंगे. पहले सुबह 9 बजे से दोपहर 12 बजे तक और फिर दोपहर के 3 बजे से शाम 5 बजे तक. जेल के नियमों के अनुसार सिद्धू को पहले तीन महीने बिना वेतन के ट्रेनिंग दी जाएगी.

इसके बाद उन्हें अकुशल, अर्ध-कुशल व कुशल कैदी की श्रेणी में रखा जाएगा. इसके बाद श्रेणी के आधार पर उन्हें 30 रुपये से 90 रुपये के बीच वेतन मिल सकता है. इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए पंजाब जेल के एक अधिकारी ने कहा कि सिद्धू को एक साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई है. वहीं उनकी स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों को देखते हुए ऑफिस के काम पर रखा गया है. अधिकारी ने कहा कि वह नौकरी करते हुए जेल रिकॉर्ड बनाए रखने में सहायता करेंगे. बता दें कि मेडिकल बोर्ड की सिफारिश पर न्यायिक मजिस्ट्रेट ने जेल में नवजोत सिंह सिद्धू को स्पेशल डाइट की अनुमति दी है.


लीवर की समस्या से ग्रस्त हैं सिद्धू
सिद्धू के वकील एचपीएस वर्मा ने कहा कि वह खराब स्वास्थ्य स्थितियों और एलर्जी का सामना कर रहे हैं. वह गेहूं की रोटी, तैलीय भोजन और चाय का सेवन नहीं कर सकते इसलिए उन्हें विशेष आहार की अनुमति दी जाए. सिद्धू को लीवर की समस्या ग्रेड 3 और एम्बोलिज्म का भी सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने सहायक रिकॉर्ड के साथ सिद्धू की मेडिकल हिस्ट्री को भी अदालत में प्रस्तुत किया था. वर्मा ने कहा कि सिद्धू खून के गाढ़ेपन का सामना करने के बावजूद दवाएं नहीं ले सके क्योंकि उन्हें विशेष आहार की जरूरत थी.

बरी होने के बाद भी हो गई सजा
27 दिसंबर 1988 को पार्किंग को लेकर सिद्धू की पटियाला निवासी गुरनाम सिंह से बहस हो गई थी. सिद्धू और उनके दोस्त रुपिंदर सिंह संधू ने कथित तौर पर गुरनाम सिंह को उनकी कार से खींचकर मारा था. बाद में उनकी अस्पताल में मौत हो गई. एक चश्मदीद ने सिद्धू पर गुरनाम सिंह के सिर पर वार कर हत्या करने का आरोप लगाया था. सिद्धू को 1999 में एक स्थानीय अदालत ने सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था, लेकिन 2006 में उच्च न्यायालय ने उन्हें गैर इरादतन हत्या का दोषी ठहराया और तीन साल जेल की सजा सुनाई थी.

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