इंदौर न्यूज़ (Indore News)

नेताजी के पराक्रम से स्वाधीनता संग्राम को नई दिशा मिली : सत्यनारायण पटेल

  • 127वीं जयंती पर पराक्रम दिवस मना, 5 विभूतियों को नेताजी सुभाष अलंकरण मिला

इन्दौर। भारत के इतिहास में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नाम अमर है। अपनी मातृभूमि के लिए, स्वाधीनता संग्राम के लिए आपने अपना घर और आराम को छोड़ा और आजाद हिंद फौज का गठन किया। आपके पराक्रम से स्वाधीनता आंदोलन को नई दिशा मिली यह कहना था नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की 127 वीं. जयंती पर हुए पराक्रम दिवस क्रार्यक्रम में पहुंचे कांग्रेस नेता पूर्व विधायक सत्य नारायण पटेल का।

पटेल ने कहा कि देश के युवाओं को नेताजी के जज्बे से सीख लेनी चाहिए और देश के निर्माण में अपना योगदान देना चाहिए। आपने भारत सरकार के इस निर्णय की सराहना की कि हर साल ये दिवस पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जाएगा। सुभाष जयंती पर आयोजित हुए पराक्रम दिवस के दौरान मो. इकबाल खान मेव द्वारा लिखित ‘मेरी यादों के बिखरे मोती’ पुस्तक का विमोचन भी किया गया। शहर अध्यक्ष सुरजीतसिंह चड्ढा ने कहा कि अपनी मातृभूमि के लिए सर्वस्व न्यौछावर कर देने वाले ऐसे महापुरुष सदियों में जन्म लेते हैं। हमें अपनी वर्तमान पीढ़ी को देशभक्तों के योगदान से अवगत कराने की जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस अभी भी एक जीवंत प्रेरणा के रूप में भारतीयों के दिल में जीवंत राष्ट्रवाद के प्रतीक के रूप में जीवित हैं और सदा अमर रहेंगे। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि मो. इकबाल खान मेव, पूर्व पार्षद राधे बौरासी, राहुल निहोरे थे। इस अवसर पर मुख्य रूप से अजीत कुमार जैन, विजयसिंह राठौर, गणेश वर्मा, संजय जयंत, हुकम यादव आदि मौजूद थे। कार्यक्रम के बारे में जानकारी देते हुए मंच के अध्यक्ष मदन परमालिया ने बताया कि हर वर्ष नेताजी की जयंती स्वाधीनता पुरोधा के रूप में मनाई जाती है।


इन पांच लोगों को मिला नेताजी सुभाष अलंकरण
पराक्रम दिवस कार्यक्रम के दौरान अतिथियों ने पांच विभूतियों को नेताजी सुभाष अलंकरण से विभूषित किया जिनमें अनुसूचित जाति की प्रथम महिला संस्कृत में पीएचडी एवं जिले में एमए में टॉपर श्रीमती शीतल अहीरवार, समाजसेवी जीवन कनेरिया, स्वतंत्रता संग्राम सैनानी उत्तराधिकारी अनिल आजाद, राष्ट्र कवि एवं गीतकार कमलेश दवे, देशभक्ति के लिए जज्बा बढ़ाने वाले बलवीरसिंह छाबड़ा को विभिन्न क्षेत्रों में योगदान के लिए शाल, श्रीफल, अभिनंदन पत्र, स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया। अलंकृत विभूतियों को मालवीय पगड़ी पहनाकर स्वागत किया गया।

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