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मप्र शासन एवं बिड़ला कंपनी के बीच करोड़ों की विवादित भूमि मामले में नया बखेड़ा

नागदा। उज्जैन (Ujjain) जिले के नागदा (Nagda) में स्थित 195 हैक्टर भूमि के स्वामित्व को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में मप्र शासन एवं बिड़ला कंपनी (Birla Company) के बीच जारी विवाद को लेकर अब एक नया बखेड़ा खड़ा हो गया है। यह विवाद क्षेत्रीय सांसद अनिल फिरोजिया के एक बयान के बाद सामने आया है।

 

नागरिक अधिकार मंच ने सांसद फिरोजिया की मांग का विरोध करते हुए इस भूमि पर प्रस्तावित नागदा जिले के कार्यालय के लिए भूमि उपलब्ध कराने की मांग उठाई है। मंच के अघ्यक्ष अभय चौपड़ा एवं संयोजक अभिभाषक शैलेंद्र चौहान ने शनिवार को हिन्दुस्थान समाचार संवाददाता नागदा से बातचीत से कई तर्कों के साथ भूमि बिड़ला कंपनी को उपलब्ध कराने की हिमायत का जोरदार विरोध किया है।



 यहां से खड़ा हुआ विवाद

सांसद ने हाल में यह बयान जारी किया कि सुपीम कोर्ट में जो भूमि को लेकर विवाद चल रहा है, इस विवाद में मप्र शासन ने अपील कर रखी है। सांसद के मुताबिक मप्र शासन इस प्रकरण को वापस लेकर बिड़ला कंपनी को उद्योग खोलने के लिए भूमि देने के लिए विचार जारी है। इस बारे में सीएम के समक्ष प्रस्ताव भी चला गया है। उद्योग खुलने से लगभग 5 हजार लोगों को रोजगार दिलाने के तर्क दिए गए हैं।

जन अधिकार मंच का इन तर्कों पर विरोध

1. मंच के अनुसार बिड़ला कंपनी ग्रेसिम ने गत एक वर्ष के दौरान 2500- 3000 लोगों को उद्योग से निकाल दिया है। जनप्रतिनिधि इस मामले में खामोश है। और अब एक नया शिगुफा लेकर आए हैं कि लोगों को रोजगार मिलेगा।

2. उद्योग के कारण शहर में भयंकर प्रदूषण फैल चुका है। नागदा में प्रदूषण को लेकर एनजीटी ने हाल में ग्रेसिम पर 75 लाख का जुर्माना किया है। यह जुर्माना इस बात का प्रतीक हैकि शहर के लोग प्रदूषण से बुरी तरफ से प्रभावित है। प्रदूषण से शहर में कई बीमारियां भी सामने आई है। यहां तक की सांसद ने गत वर्ष संसद में नागदा में प्रदूषण को लेकर सवाल किया था। उसकी जांच रिपोर्ट जनता के सामने अभी तक प्रदूषण विभाग ने सार्वजनिक नहीं की है। हालांकि विदेश की एक प्रयोगशाला की रिपोर्ट में शहर में भयंकर प्रदूषण प्रमाणित किया गया है।

3. सांसद की उस दलील को भी जन अधिकार मंच ने खारिज किया है जिसमें बताया जा रहा है ग्रेसिम नवीन यूनिट डाल रहा है, जबकि वस्तुस्थिति यह है कि ग्रेसिम को पर्यावरण मंत्रालय से उत्पादन को विस्तार करने की अनुमति मिली है। उत्पादन का विस्तार करने के लिए 195 हैक्टर भूमि की आवश्यकता नहीं होती है। एक षंडयंत्र के तहत उद्योगपतियों को जनता की करोड़ों की भूमि को दिए जाने का खेल खेला जा रहा है।

4. एक नेता ने कुछ वर्ष पहले एक सार्वजनिक कार्यक्रम में इस भूमि पर सरकारी कार्यालय खोलने की हिमायत की थी। अब यह दलील दी जा रही है कि शहर के 70 प्रतिशत लोगों को रोजगार दिलाया जाएगा। जबकि इस आरक्षण के लिए तो स्वत: कानूनन ही बाध्यता है। प्रबंधन की मेहरबानी से 70 प्रतिशत रोजगार नहीं मिलेगा।

5. जिला बनाने के कार्यालय खोलने के बाद शेष भूमि उद्योग विस्तार के लिए देने के लिए जन अधिकार मंच को कोई आपत्ति नहीं है।

6. जनता को गुमराह कर पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए यह सब कुछ हो रहा है। ऐसी स्थिति में जन अधिकार मंच आंदोलन के लिए आगे आएगा।

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