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उतार-चढ़ाव से भरा है नये साल का इतिहास

– रमेश शर्मा

एक जनवरी से नया साल आरंभ हो रहा है। अब पूरी दुनिया वर्ष 2023 में प्रवेश करेगी। समय नापने की यह पद्धति ग्रेगोरियन कैलेण्डर के अनुसार है। पर यह ग्रेगोरियन कैलेण्डर पद्धति 2022 वर्ष पुरानी नहीं है। यह केवल 441 वर्ष पुरानी है और भारत में इसे लागू हुए केवल 270 वर्ष ही हुए हैं।

दुनिया में काल गणना का इतिहास बहुत उतार-चढ़ाव से भरा है। संसार के विभिन्न देशों में पिछले सात हजार वर्ष में बीस से अधिक काल गणना कैलेण्डरों का इतिहास उपलब्ध है। वर्तमान ग्रेगेरियन कैलेण्डर जिसके अनुसार आज की दुनिया चल रही है, इसका आरंभ आज से केवल 441 वर्ष पहले 1582 ईस्वी सन् में हुआ था और अंग्रेजों ने भारत में इसे 270 वर्ष पहले 1753 में लागू किया था। पर तब भारत में इसका उपयोग केवल यूरोपीय समुदाय ही करता था। शेष भारत में कहीं विक्रम संवत और कहीं हिजरी सन् का प्रचलन था।


आज भारत में भले अंग्रेजों द्वारा स्थापित कैलेण्डर से जीवन चर्या निर्धारित होती हो और भारतीय अपने अतीत को भूल गये पर भारत के लिए यह गर्व की बात है कि यूरोप को काल गणना से परिचित कराने वाले भारतीय शोधकर्ता ही रहे हैं। इसका विवरण यूरोप के प्राचीन इतिहास में उपलब्ध है। यूरोप के प्राचीन इतिहास में एक वर्णन मिलता है कि दो सौ नावों से आर्यों का एक दल यूरोप गया था, जिसने रोम की स्थापना की थी वे अपने साथ समय साधना पद्धति लेकर गये थे। दूसरा विवरण सुप्रसिद्ध यूनानी सम्राट सिकन्दर के समय का है।

सिकन्दर आक्रमणकारी के रूप में भारत आया था और वह जब भारत से लौटा तो वह यहाँ से विभिन्न विषय के विद्वानों का दल लेकर लौटा था। उनमें पंचांग अर्थात कैलेण्डर की पद्धति विशेषज्ञ भी थे। इन विशेषज्ञों ने यूरोप जाकर यूरोपीय काल गणना पद्धति में संशोधन किये और यूरोप में जूलियन कैलेण्डर आरंभ हुआ। जिसे बाद में पोप ग्रेगरी अष्टम् ने यह वर्तमान कैलेण्डर आरंभ किया। जो उन्हीं के नाम से ग्रेगोरियन कैलेण्डर कहा जाता है। इसे गणना करके डेढ़ हजार वर्ष पूर्व की तिथि से लागू किया गया था। यह निर्धारण ईसा मसीह की अनुमानित जन्मतिथि की गणना करके 1573 वर्ष पूर्व की 1 जनवरी से लागू किया गया था । चूँकि इसे ईसा मसीह की अनुमानित जन्मतिथि से लागू किया किया गया था इसलिए उन्हीं के नाम पर “ईस्वी सन्” नाम दिया गया।

इस काल गणना पद्धति को वैश्विक बनाने का श्रेय अंग्रेजों को है जो पूरी दुनिया में व्यापार करने के बहाने लंदन से निकले थे। वे जिस भी देश में व्यापार करने गये वे वहाँ के शासक बन गये। उन्होंने जिस भी देश का शासन संभाला उन्होंने वहाँ अपनी परंपराएं लागू कीं। जिसमें यह ग्रेगेरियन ईस्वी सन् कैलेण्डर पद्धति भी शामिल थी। अंग्रेज अपनी जड़ों और परंपराओं से इतने गहरे जुड़े रहे कि उन्होंने पूरी दुनिया को अपने परिवेश में कुछ इस प्रकार ढाला कि उनका शासन समाप्त हो जाने के बाद भी उनके द्वारा शासित दुनिया के लगभग सभी देश अंग्रेजों के ग्रेगोरियन कैलेंडर से ही अपनी सरकार और समाज चला रहे हैं। हाँ कुछ ऐसे देश अवश्य हैं जो अपने देश के भीतर अपनी निजी काल गणना पद्धति का ही उपयोग करते हैं। पर आज संसार का मानसिक वातावरण ऐसा है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर अपनी बात समझाने के लिये मानक के रूप में अंग्रेजी महीनों और तिथियों का ही सहारा लेना पड़ता है। ग्रेगोरियन कैलेण्डर उपयोग किये गये महीनों और दिनों के नाम भी अंग्रेजों के अपने नहीं हैं। वे दुनिया की विभिन्न भाषाओं से लेकर रूपान्तरित किये गये हैं। यह इतिहास भी बड़ा रोचक है।

सबसे पहले इसका नाम “कैलेण्डर” ही देखें। कैलेण्डर शब्द अंग्रेजी भाषा का नहीं,। लैटिन भाषा का है। लैटिन भाषा में “कैलेण्ड” शब्द का अर्थ हिसाब-किताब होता है। उधर चीन में “केलैण्ड” का अर्थ चिल्लाना होता है। तब वहाँ ढोल बजाकर तिथि, दिन और समय की सूचना दी जाती थी। इस तरह कैलेण्ड शब्द से इस पद्धति का नाम कैलेण्डर पड़ा । इसे संसार में अलग-अलग देशों में अलग-अलग तिथियों में लागू किया गया । यह ग्रेगोरियन कैलेंडर इटली, फ्रांस, स्पेन और पुर्तगाल ने सन् 1582 ईस्वी में, परशिया, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, हॉलैंड और फ़्लैंडर्स ने 1583 ईस्वी में, पोलैंड ने 1586 ईस्वी में, हंगरी ने 1587 ईस्वी में, जर्मनी, नीदरलैंड, डेनमार्क ने 1700 ईस्वी में, ब्रिटेन और उनके द्वारा शासित लगभग सभी देशों में 1752 ईस्वी, जापान ने 1972 ईस्वी, चीन ने 1912 ईस्वी, बुल्गारिया ने 1915 ईस्वी, तुर्की और सोवियत रूस ने 1917 ईस्वी, युगोस्लाविया और रोमानिया ने 1919 ईस्वी में लागू हुआ।

संसार के ज्ञात इतिहास में जितने भी सन् संवत् या न्यू ईयर परंपराएँ मिलतीं हैं उनमें सबसे प्राचीन परंपरा भारत में मिलती है। संसार की सबसे पुरानी काल गणना पद्धति भारतीय “युगाब्ध संवत् ” माना जाता है जो लगभग 5125 वर्ष पुराना है। इसका संबंध महाभारत काल से है। यह संवत् युधिष्ठिर के राज्याभिषेक की तिथि से आरंभ हुआ था। इसका सत्यापन द्वारिका के किनारे समुद्र की पुरातत्व खुदाई में मिली विभिन्न सामग्री से होता है। अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों ने इस उपलब्घ सामग्री के समय लगभग पाँच हजार से पाँच हजार दो सौ वर्ष के बीच का माना गया है। संवत् आरंभ होने का दूसरा प्राचीन उल्लेख बेबीलोनिया से मिलता है। इस संवत् का इतिहास लगभग चार हजार वर्ष पुराना है। तब वहां नववर्ष का आरंभ बसंत ऋतु से होता था। यह तिथि लगभग एक मार्च के आसपास ठहरती है।

ग्रेगोरियन कैलेण्डर लागू होने से पहले समूचे यूरोप में यही कैलेण्डर लागू था। इसलिये आज भी मार्च का महीना हिसाब-किताब का वर्षात माना जाता है। जिन अंग्रेजों ने एक जनवरी से नव वर्ष का आरंभ माना वे भी अपने हिसाब-किताब का वर्ष मार्च से ही करते थे। तीसरा प्राचीन नववर्ष पारसी नौरोज है। इसका आरंभ लगभग तीन हजार वर्ष पहले हुआ था। पारसी नौरोज 19 अगस्त से आरंभ होता है। चौथा प्राचीन संवत् भारत का विक्रम संवत है जो महाराज विक्रमादित्य के राज्याभिषेक से आरंभ हुआ था। इसे 2079 वर्ष बीत गये। विक्रम संवत् के अतिरिक्त भारत में शक संवत् और वीर निर्वाण संवत् की भी मान्यता रही है। शक संवत् का संबंध भारत को शक आक्रमण से मुक्ति की स्मृति में आरंभ हुआ था तो वीर निर्वाण संवत् का संबंध भगवान महावीर स्वामी की निर्वाण तिथि से है। इसका आरंभ 7 अक्टूबर 527 ईसा पूर्व माना जाता है।

यूरोपियन कैलेण्डर का आरंभ रोम से हुआ था। इसे आरंभ करने वाले रोमन सम्राट जूलियन सीजर थे। इसलिये उसका पुराना जूलियन कैलेण्डर था। उन्होंने वहां पूर्व से प्रचलित कैलेण्डर में कुछ परिवर्तन किये थे जो उनसे पूर्व राजा न्यूमा पोपेलियस ने आरंभ किया था। तब इसमें केवल दस माह और 354 दिन ही हुआ करते थे। कहते हैं शोधकर्ता तो बारह मास का ही कैलेण्डर तैयार करना चाहते थे पर राजा बारह माह का कैलेण्डर बनाने तैयार न हुआ था। राजा की जिद के चलते बारह के बजाय दस माह का कैलेण्डर तैयार हुआ था। बाद में जूलियट सीजर ने उस कैलेण्डर में परिवर्तन करने के आदेश दिये और तब यह कैलेण्डर बारह महीने का तैयार हुआ। अब कुछ विद्वानों का मत है कि इसमें ईसा मसीह की जन्मतिथि में चार वर्ष का अंतर आ गया है। इसमें समय के साथ अनेक परिवर्तन हुये।

जब यह कैलेण्डर आरंभ हुआ था तब इसमें लीप एयर या हर चौथे साल फरवरी 29 दिन का प्रावधान नहीं था। यह प्रावधान खगोल अनुसंधान के बाद अमेरिकी वैज्ञानिकों ने सूर्य और पृथ्वी परिक्रमा की गणना करके जोड़ा। जबकि भारत में पाँच हजार वर्ष पुरानी गणना भी बारह माह की थी। जो ऋतु परिवर्तन का अध्ययन करके निर्धारित किया गया था। भारत में इसे कैलेण्डर नहीं “पंचांग” कहा जाता है। शब्द “पंचांग” भी गहन अर्थ लिए हुए है। पंचांग अर्थात पाँच अंग। भारतीय पंचांग में कुल पाँच आधार होते हैं। ये तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण हैं। इन पाँच अंगों से ही भारतीय पंचांग में तिथि दिन की गणना होती है जबकि वर्ष और माह की जानकारी इन पाँच अंगों से अलग होती है। जबकि ग्रेगोरियन कैलेण्डर में केवल दो जानकारी होती है। तारीख और दिन की। माह और वर्ष भी। इस प्रकार पाँच हजार वर्ष पुरानी भारतीय कालगणना पद्धति “पंचांग” पश्चिम की आधुनिक कैलेण्डर पद्धति से अपेक्षाकृत अधिक उन्नत रही है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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