- ग्राम पंचायतों के लंबे समय से प्रकरणों की सुनवाई लंबित
भोपाल। प्रदेश में ग्राम पंचायतों में सरपंच और सचिवों के खिलाफ धारा 40-92 की कार्रवाई की सुनवाई अब कलेक्टर करेंगे। राज्य सरकार द्वारा यह निर्देश दिया गया है। सरकार के निर्देश के बाद सरपंच और सचिवों में हड़कंप मच गया है। इसकी वजह यह है कि कलेक्टरों को अधिकार मिलने से सरपंच और सचिवों को डर सता रहा है कि उनकी छोटी-सी गलती भी भारी पड़ सकते हैं। पंचायतों में योजनाओं के क्रियान्वयन में मनमानी पर नकेल कसने के लिए सरकार ने चार साल पहले नई व्यवस्था बनाई थी। पंचायत प्रतिनिधियों और सचिवों के खिलाफ धारा-40 (पद से पृथक) एवं धारा-92 (वसूली) की कार्रवाई की सुनवाई के लिए प्रथम अपीलीय अधिकारी के रूप में बतौर जिला पंचायत सीइओ को नियुक्ति किया गया था। लेकिन, सरकार ने इस व्यवस्था में एक बार फिर बदलाव किया है। जिला पंचायत सीइओ से यह व्यवस्था छीन कर सरकार ने कलेक्टर को सौंप दिया है।
एक मई 2017 को किया था संशोधन
पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की योजनाओं के क्रियान्वयन में गड़बड़ी करने वाले सरपंच व सचिवों को पद से पृथक करने वसूली की कार्रवाई के लिए जनपद पंचायतों से जांच प्रतिवेदन जिला पंचायत सीइओ कार्यालय में भेजे गए हैं। एक मई 2017 से लेकर अब तक सैकड़ो पंचायतों के सरपंच-सचिवों के मामले सीइओ कार्यालय में पहुंचे। कुछ प्रकरणों को छोड़ दे तो ज्यादातर प्रकरण लंबित पड़े हुए हैं। पंचायत विभाग में प्रकरणों की सुनवाई अव्यवस्थित तरीके से चल रही थी। शासन ने व्यवस्था में फेरबदल करते हुए फिर राजस्व विभाग में दोबारा भेज दिया है। अब प्रकरणों की सुनवाई कलेक्टर करेंगे।
वर्ष 1994 में दिए गए थे
अधिकार पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की अधिसूना के अनुसार 5 मार्च 1994 को उपखंड अधिकारी यानी एसडीएम को विहित प्राधिकारी अधिसूचित किया गया था। राज्य शासन के द्वारा उक्त अधिसूचना को संशोधित कर नवीन अधिसूचना एक मई 2017 को राजपत्र में प्रकाशित की गई। जिसके तहत अधिसूचित विहित प्राधिकारी उपखंड अधिकारी (राजस्व) के स्थान पर मुख्य कार्यपालन अधिकारी को विहित प्राधिकारी अधिसूचित किया गया था।