ब्‍लॉगर

अब होगी ‘इण्डियंस’ दी ‘दिल्ली’

– ऋतुपर्ण दवे

कहते हैं समय के साथ काफी कुछ बदल जाता है या बदल दिया जाता है। कुछ इसी तर्ज पर लुटियंस की दिल्ली की सबसे बड़ी पहचान इण्डियन होने जा रही है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का मंदिर जहाँ जनता के प्रतिनिधि बैठते हों उसकी स्वतंत्रता के बरसों बाद तक विदेशी छाप क्यों रहे? वर्तमान संसद भवन को चाहे गुलामी की मानसिकता से जकड़ी भव्य इमारत कह लें या अंग्रेजी वास्तु शिल्प की मिसाल या फिर स्वंतत्रता के बाद भी गुलामी की पहचान लेकिन सच यही है कि अंदर बैठने वाले हों या बाहर से देखने वाले, हर भारतीय के मन में लुटियंस की यह साकार परिकल्पना जरूर टीसती होगी।

आज भी जब दिल्ली के संदर्भ में लुटियंस की चर्चा होती है तो यह गुलामी के दौर की भावना का अंदर तक एहसास कराता है। शायद ऐसा कुछ संसद में बैठकर हमारे गणमान्य भी महसूस करते रहे होंगे, शायद इसी भावना से निर्णय भी लिया गया हो! जिससे भारतीय वास्तुशिल्प की नई कृति के रूप में नया और विशुध्द भारतीय संसद भवन बने। जो भारतीय नक्शाकारों, भारतीय हाथों और वर्तमान भारतीय जरूरत के हिसाब से न केवल डिजाइन्ड हो बल्कि भविष्य की जरूरतों और पर्यावरणीय आवश्यकताओं के अनुरूप देश के लिए वह नया मॉडल बने जिसे हम गर्व से कह सकें कि ये लुटियंस की नहीं इण्डियन्स की बनाई संसद है।

करीब सवा बरस में 92 बरस पूर्व बनी संसद का नया भवन राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट के बीच 60 हजार स्क्वायर मीटर में त्रिकोणीय आकार में बनेगा, जिसके माथे पर प्रतीक चिन्ह अशोक भी संभव है। इसमें 120 दफ्तर होंगे। सांसदों, उप-राष्ट्रपति और स्पीकर समेत विशिष्ट अतिथियों के लिए छह अलग-अलग दरवाजे होंगे। यहाँ 1350 सांसद बैठ सकेंगे। राज्यसभा की नई इमारत में 400 सीटें होंगी। यह भविष्य के परिसीमन की जरूरतों को लंबे समय तक पूरा करेगा। इसकी गैलरी में 336 से अधिक लोग बैठ पाएंगे। इसमें दो सांसदों के लिए एक सीट होगी, जिसकी लंबाई 120 सेंटीमीटर होगी यानी एक सांसद को बैठने की खातिर 60 सेमी जगह मिलेगी। संयुक्त सत्र के दौरान इन्हीं दो सीटों पर तीन सांसद बैठेंगे। नयी संसद में देश की विविधता को दर्शाने के लिए विशेष ध्यान रख एक भी खिड़की किसी दूसरी खिड़की से मेल खाने वाली नहीं होगी यानी हर खिड़की अलग आकार और अंदाज की होगी जो भारतीय विविधताओं को दर्शाएगी। निश्चित रूप से नयी संसद सुन्दरता और भारतीय वास्तु शिल्प के लिहाज से अनूठी होगी।

नई इमारत संसद भवन के प्लॉट संख्या 18 पर बनेगी। निर्माण सेंट्रल विस्टा रिडेवलपमेंट परियोजना के तहत होगा। साढ़े 9 एकड़ में संसद भवन की नयी इमारत बनेगी जबकि करीब 63 एकड़ में नया केन्द्रीय सचिवालय और 15 एकड़ में आवास बनेगा। इससे अलग-अलग स्थानों पर दूर-दूर मौजूद सभी केन्द्रीय मंत्रालय, उनके कार्यालय एक ही जगह यानी आसपास हो जाएं। जाहिर है देश की जरूरतों के लिहाज से सारे कार्यालय एक जगह होना समय की बचत के साथ बेहद सुविधाजनक व खर्चों में कमी के लिहाज से उपयोगी होगा।

यहाँ प्रधानमंत्री आवास भी केन्द्रीय सचिवालय के आसपास साउथ ब्लॉक स्थित बनने वाले नए प्रधानमंत्री कार्यालय के पास बन सकता है जो अभी लोक कल्याण मार्ग पर है। जिससे प्रधानमंत्री के घर व दफ्तर आते-जाते वक्त यातायात न रोकना पड़े। शायद इसीलिए केवल एक प्लाट जिसकी संख्या 7 है, उसका भू-उपयोग बदलकर आवासीय किया गया है जो उत्तर में साउथ ब्लॉक, दक्षिण में दारा शिकोह रोड, पूर्व में साउथ ब्लॉक का हिस्सा है। जबकि पश्चिम में राष्ट्रपति भवन के दरम्यान 15 एकड़ क्षेत्रफल में फैला है। वहीं अलग-अलग क्षेत्रफल के प्लाट संख्या 3, 4, 5 और 6 का भू उपयोग सरकारी कार्यालयों एवं मनोरंजन पार्क में किया जाएगा। इस तरह संसद, राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री कार्यालय एवं आवास, केन्द्रीय सचिवालय सब एक ही जगह हो जाएंगे जो देखने लायक और दिल्ली में लुटियंस नहीं इण्डियन्स की पहचान बनेंगे।

नए केंद्रीय सचिवालय के लिए विजय चौक से इंडिया गेट के बीच चार प्लॉट पर 10 आधुनिक इमारतें बनेंगी, जिनमें केंद्र सरकार के सभी मंत्रालय होंगे। अभी केंद्र के 51 मंत्रालयों में केवल 22 मंत्रालय सेंट्रल विस्टा में हैं। तीन प्लॉट में तीन-तीन 8 मंजिला इमारतें और चौथे प्लॉट में एक इमारत के अलावा कन्वेंशन सेंटर होगा जिसमें 8000 लोगों की बैठक क्षमता होगी तथा 7 हॉल होंगे। सबसे बड़े हॉल में 3500 लोग, दूसरे में 2000, तीसरे में 1000 लोग बैठ सकेंगे जबकि 500 लोगों की बैठने की क्षमता के तीन छोटे हॉल भी होंगे। सभी इमारतों की ऊंचाई इंडिया गेट से कम होगी। नए निर्माण के दौरान कृषि भवन, शास्त्री भवन, निर्माण भवन व साउथ ब्लॉक के समीप कई अन्य महत्वपूर्ण इमारतों, बंगलों को तोड़कर नया परिसर बनेगा।

इसका मतलब यह नहीं कि मौजूदा संसद भवन का महत्व कमेगा। यह ऐतिहासिक धरोहर थी, है और रहेगी। 91 साल पुरानी मौजूदा संसद, वास्तु शिल्प का बेजोड़ नमूना है जो मात्र 83 लाख रुपए में, करीब 6 वर्षों में बनी थी। जबकि नया भवन बस सवा साल में 861.90 करोड़ रुपयों में भारतीय कंपनी टाटा ग्रुप के हाथों बनेगा। वर्तमान संसद भवन की नींव 12 फरवरी 1921 को ड्यूक ऑफ कनाट ने रखी थी जिसके नाम पर कनाट प्लेस है। दिल्ली के सबसे भव्य भवनों में एक मौजूदा भवन उस वक्त के मशहूर वास्तुविद एडविन लुटियंस के डिजाइन और हर्बर्ट बेकर की देखरेख में बना। अपने अद्भुत खम्भों और गोलाकार बरामदों के कारण यह पुर्तगाली स्थापत्यकला का अद्भुत नमूना कहलाया। इसका उद्घाटन 18 जनवरी 1927 को भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड इरविन ने किया था।

शुरू में यह सर्कुलर हाउस कहलाया जिसे देखने दुनिया भर से लोग आते हैं। गोलाकार आकार में निर्मित भवन का व्यास 170.69 मीटर और परिधि आधा किमी से अधिक 536.33 मीटर है जो करीब 6 एकड़ (24281.16 वर्ग मीटर) में फैला हुआ है। दो अर्धवृत्ताकार भवन, केन्द्रीय हाल को खूबसूरती से घेरे हुए हैं। भवन के पहले तल का गलियारा 144 खम्भों पर टिका है जिसके हर खम्भे की लंबाई 27 फीट है। बाहरी दीवार में मुगलकालीन जालियां लगी हैं और बहुत ही जिओमेट्रिकल ढंग से बनीं हैं। पूरे भवन में 12 दरवाजे और एक मुख्य द्वार है।

यूं तो पूरा संसद तीन भागों लोकसभा, राज्यसभा और सेण्ट्रल हाल में बंटा है। जिसमें लोकसभा का कक्ष 4800 वर्गफीट में बना है। बीच में एक स्थान पर लोकसभा अध्यक्ष का आसन है। सदन में केवल 550 सदस्यों के लिए 6 भागों में बंटी 11 पंक्तियों की बैठक व्यवस्था के अलावा अधिकारियों, पत्रकारों के बैठने की व्यवस्था है। ऐसी ही बैठक व्यवस्था राज्यसभा सदस्यों की भी है जिनकी संख्या 238 है जो 250 तक बढ़ सकती है। संसद का तीसरा प्रमुख भवन केन्द्रीय कक्ष है जो गोलाकार है। इसके गुम्बद का व्यास 98 फीट है जो विश्व के महत्वपूर्ण गुम्बदों में एक और बेहद खास है क्योंकि यहीं 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों ने भारतीयों को उनकी सत्ता सौंपी थी। भारतीय संविधान का प्रारूप भी यहीं तैयार हुआ। मौजूदा संसद की पूरी डिजाइन, मध्य प्रदेश के मुरैना जिला स्थित मितालवी में बने 9 वीं शताब्दी के इकोत्तरसो या इंकतेश्वर महादेव मंदिर जिसे अब चौंसठ योगिनी मंदिर के नाम से जाना जाता है, उससे प्रेरित है।

नया संसद भवन समय के साथ प्रासंगिक है। 2026 में संसदीय क्षेत्रों का नए सिरे से परिसीमन होगा, आबादी के साथ संसदीय कार्यक्षेत्रों की संख्या बढ़ेगी, तब सुरक्षा, तकनीक और सहूलियत के लिहाज से भी नया भवन जरूरी होगा और दिल्ली की पहचान धीरे-धीरे लुटियंस नहीं इण्डियन्स की दिल्ली होगी।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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