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अब NASA को टक्कर देने के लिए तैयार है ISRO, ये मिशन कई मायनों में है स्पेशल

नई दिल्ली: भारत का चंद्रयान-3 मिशन (India’s Chandrayaan-3 mission) पूरी तरह सफल रहा और इसरो के लैंडर ने चांद की सतह पर सुरक्षित लैंडिंग (safe landing) की. भारत दुनिया का पहला देश है जो चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचा (reached the south pole) है. इसलिए ये मिशन कई मायनों में स्पेशल (This mission is special in many ways) बन जाता है. चंद्रयान-3 की इस सफलता के गवाह खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बने और उन्होंने भारत में प्रचलित पुरानी कहावत ‘चंदा मामा दूर के’ नहीं अब ‘चंदा मामा एक टूर के’ की बात कहकर साफ कर दिया कि इसरो आने वाले दिनों में दुनिया की स्पेस इकोनॉमी में नासा को भी टक्कर देने जा रहा है.

भारत को दुनिया की स्पेस इकोनॉमी में अलग मुकाम दिलाने वाले इसरो की भविष्य की योजनाओं को भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उजागर कर दिया. इसमें सूर्य के अध्ययन के लिए जाने वाला ‘आदित्य एल-1’ मिशन, मानव को अंतरिक्ष में भेजने का ‘गगनयान’ मिशन और शुक्र ग्रह पर जाने का भी एक मिशन शामिल है. इससे पहले भारत मंगल ग्रह के लिए एक आर्बिटर मिशन भेज चुका है, जो दुनिया में पहला ऐसा स्पेस मिशन था, जो अपने पहले ही प्रयास में सफल हुआ था.

भारत का चंद्रयान-3 मिशन इसरो को नासा से आगे ले जाने वाला है. इसरो ने चांद के उस हिस्से को छुआ है, जिसे खुद सूरज भी भी नहीं छू पाया, जबकि चांद रोशन ही सूरज की रोशनी से होता है. भारत के अलावा अभी तक कोई भी देश चांद के दक्षिणी ध्रुव पर नहीं पहुंचा है. इसलिए अब भारत स्पेस इकोनॉमी में दुनिया के बड़े-बड़े देशों को टक्कर देने के लिए तैयार है. इतना ही नहीं हाल में रूस ने भी 1600 करोड़ रुपये की लागत से तैयार ‘लुना-25’ मिशन को चांद के दक्षिण ध्रुव पर भेजा था, लेकिन वह लैंडिंग से पहले ही क्रैश कर गया. इस तरह भारत का मिशन अब चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला इकलौता मिशन है, वह महज 615 करोड़ रुपये के खर्च में.

इसरो की ये सफलता, दुनिया में स्पेस इकोनॉमी की नई इबारत लिखेगी. अभी इसरो दुनिया के कई देशों, प्राइवेट कंपनियों के लिए कम लागत पर सैटेलाइट लॉन्च करने का काम करता है. इसके लिए इसरो की एक कमर्शियल इकाई Antrix अलग से काम करती है. इसी स्पेस इकोनॉमी में एलन मस्क की StarX और जेफ बेजोस की Blue Origin भी अपने दांव लगा रही हैं. अब इसरो इन सभी कंपनियों को कड़ी टक्कर देने में सक्षम है क्योंकि भारत इनके मुकाबले काफी कम लागत में स्पेस मिशन को पूरा कर सकता है.

चांद और मंगल तक पहुंचने वाले इसरो की जब शुरुआत हुई थी, तब पहले रॉकेट के पार्ट्स को ले जाने के लिए उसके पास ढंग की गाड़ी भी नहीं थी. साल 1962 में भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (INCOSPAR) बना. यही साल 1969 में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर इसरो बन गया. इंकोस्पार को बनाने का श्रेय डॉ. विक्रम साराभाई को जाता है. स्थापना के अगले ही साल इंकोस्पार ने पहला अंतरिक्ष में जाने वाला रॉकेट लॉनच किया. वायुमंडल की जांच के लिए बनाए गए इस साउंडिंग रॉकेट को केरल के थुंबा इक्वेटेरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन से लॉन्च किया गया, आज इसी का नाम विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर है.

इस रॉकेट के कई हिस्सों को साइकिल की मदद से लैंडिंग साइट तक ले जाया गया. गांव वालों से मदद ली गई और चर्च की जमीन पर रॉकेट लॉन्च हुआ. इसके बाद कहानी आगे बढ़ी और इसरो ने 19 अप्रैल 1975 को अपना पहला सैटेलाइट ‘आर्यभट्ट’ लॉन्च किया. तब इसरो की मदद तत्कालीन सोवियत संघ रूस ने की थी. आज मुकाम ऐसा बदला है कि भारत का मून मिशन सफल रहा है, जबकि रूस का लुनार मिशन क्रैश कर चुका है.

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