यह कैसी निर्लज्जता है मोदीजी… लोग सांसों से लड़ रहे हैं… मर रहे हैं… तड़प रहे हैं… बिछड़ रहे हैं और आप सत्ता की आस में दौड़ लगा रहे हैं… कुर्सी पाने की लालसा में होड़ लगा रहे हैं… लोग लाशें उठा रहे हैं… मरघट चिताओं से भरे जा रहे हैं… सडक़ों पर लावारिस मौतों का मजमा लगा है… कौन किसका है और कौन किस्सा बन चुका है… कोई नहीं जान पा रहा है और आप चिंघाड़ रहे हैं… अपनी कामयाबियों के फलसफे सुना रहे हैं…बंगाल से लेकर केरल और केरल से लेकर तमिलनाडु तक आप और आपके साथी मौत की सरमायेदारी कर अपना सीना फुला रहे हैं… बंगाल में 200 सीटें जीतने के ख्वाब में आपने पता नहीं कितने सपनों को कुचल डाला… कितनी लाशों की बेबसी आपके कांधों पर टिकी हुई है… महीने दो-महीने आप अपना चुनावी संग्राम रोक लेते..इतना तो सोचते कि देश में ना मौतों से लड़ते लोगों को ठोर मिला और न सांसों की वजह… आप चाहते तो सडक़ों पर बिस्तर बिछवा देते… ऑक्सीजन की कतार लगवा देते… जिंदगी की हर राह आपके हाथों में थी, लेकिन फिसलती जीत को पकडऩे के चक्कर में आपने पूरे देश को हरा दिया… मौत का ऐसा जख्म दिया कि देश सिहर उठा… दर्द भी कांप उठा ….अस्पतालों में ऑक्सीजन खत्म होती रही और लाशें उठती रही… टैंकर तैयार थे, मगर सडक़ों की दूरियों की मोहताजी आप मिटा नहीं पाए… खुद चुनाव के लिए इस राज्य से उस राज्य… इस शहर से उस शहर विमानों से कुलांचे भरते रहे, लेकिन वायुमार्ग से ऑक्सीजन पहुंचाने का कार्य आपने नहीं किया… दवाओं के लिए बिलखते लोग… इंजेक्शनों के लिए मरते-मिटते, जुझते, झपटते रहे ….लेकिन आपने कुछ नहीं किया … क्या यही था आपका राजधर्म आधुनिक, समृद्ध, सर्वसपन्न, मजबूत भारत का दावा… या मजबूर अवाम की सच्चाई… अच्छा नहीं किया आपने.. आप समय पर नहीं जागे और सारा देश मौत की नींद सोता रहा… आप जुमलों की जिरह करते रहे और मौत जंग जीतती चली गई… हमारे हाथ राख है… सब कुछ खाक है… तांडव तो अभी भी बचा है… संभल सकते हो तो संभलिये वरना आप भी हम में शामिल हो जाइये… आपकी मरी हुई संवेदनाओं की लाशें आप उठाइए… हमारे अपनों को आंसुओं के भरोसे छोड़ जाइए… पर एक बात जरूर है अब आपके फैसले नहीं…यह फासलों की शुरुआत है… आपके अपने चहेते खामोश है… सबके मन में रोष है… सच तो यह है कि आप जीत चुके हैं… हम हार चुके हैं…बंगाल आप जीतें… हमारी दुआए…