ज़रा हटके

दुनिया का एक ऐसा देश, जहां जानवरों को मिले हैं कानूनी अधिकार

क्वीटो । जहां एक तरफ कई देश मानवाधिकार (Human Rights) के लिए संघर्ष कर रहे हैं, वहीं एक देश ऐसा भी है, जिसने अपने यहां जंगली जानवरों (wild animals) के लिए कानूनी अधिकार दे दिए हैं. जिसमें जीने का अधिकार भी शामिल है. प्रकृति पर अधिकार दिया गया है. असल में यह कानून एक कोर्ट (court) के ऐतिहासिक फैसले के बाद बनाया गया. जिसमें गैर-इंसानी जीवों को कई तरह के कानूनी अधिकार दिए गए.

यह कहानी है इक्वाडोर (Ecuador) की. होता ये है कि लाइब्रेरियन एना बीट्रिज बरबानो प्रोआनो एक वूली मंकी (Woolly Monkey) को जंगल से तब घर ले आईं, जब वह एक महीने की थी. वूली मंकी को एस्ट्रेलिटा (Estrellita) नाम दिया गया. एस्ट्रेलिटा अगले 18 सालों तक एना बीट्रिज के घर पर रही. उसने इंसानों के साथ इशारों में बातचीत करना सीखा. आवाजें निकालना सीखा. घर में आराम से रह रही थी.


फिर एक दिन एस्ट्रेलिटा को स्थानीय प्रशासन के लोग जब्त करके चिड़ियाघर में डाल देते हैं. एस्ट्रेलिटा इंसानी घर से निकल कर चिड़ियाघर में रहना बर्दाश्त नहीं कर पाई. उसे कार्डियो-रेस्पिरेटरी अरेस्ट आ गया. एक महीने के अंदर ही एस्ट्रेलिया की मौत हो गई. लेकिन उसकी मौत से पहले एना बीट्रिज ने कोर्ट में एस्ट्रेलिटा को वापस पाने के लिए केस किया था. उन्होंने कहा था कि एस्ट्रेलिटा को चिड़ियाघर में तनाव होगा. वह वहां नहीं रह पाएगी.

एना बीट्रिज के केस में वैज्ञानिक दस्तावेजों का हवाला दिया गया था. जिसमें कहा गया कि एस्ट्रेलिटा की संज्ञानात्मक क्षमता और सामाजिक जटिलता वाला व्यवहार उसे अकेले रहने में दिक्कत करेगा. वह कम से कम शारीरिक लिबर्टी का अधिकार रखती है. पर्यावरणीय प्रशासनिक अधिकारियों को उसे चिड़ियाघर में डालने से पहले यह जांचना चाहिए था कि एस्ट्रेलिटा की स्थिति कैसी है. इसके बाद कोर्ट ने जो फैसला सुनाया उसने इतिहास लिख दिया.

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि कहा कि स्थानीय प्रशासन और एना बीट्रिज दोनों ने ही एस्ट्रेलिटा के अधिकारों का हनन किया है. स्थानीय प्रशासन ने एस्ट्रेलिटा को चिड़ियाघर में डालने से पहले की जरूरतों पर ध्यान नहीं दिया. एना बीट्रिज ने उसे जंगल से अपने घर पर लाकर गलत किया. क्योंकि जंगल ही उसका पहला घर था. इसके बाद कोर्ट ने देश की सरकार को आदेश दिया कि जानवरों के अधिकारों के कानून को सही किया जाए. अगर न हो तो नया कानून बनाया जाए.

कोर्ट ने कहा कि जंगली जानवरों को घरेलू बनाना और उनका मानवीकरण करना ऐसी प्रक्रिया है, जिससे इकोसिस्टम के प्रबंधन और प्रकृति के संतुलन पर असर पड़ेगा. इससे जानवरों की आबादी में तेजी से गिरावट आएगी. यह जंगली जानवरों के कानूनी अधिकारों का हनन है. उन्हें प्रकृति पर अधिकार प्राप्त है. उन्हें जीने का भी अधिकार है. आपको बता दें कि इक्वाडोर दुनिया का पहला ऐसा देश है, जिसने अपने जंगली जानवरों के लिए कानूनी अधिकार बनाए हैं.

इक्वाडोरियन एनवरायरमेंटल वकील ह्यूगो इशेवेरिया ने कहा कि नया कानून बनने के बाद पुराने कानून को काफी ज्यादा क्लैरिटी मिल गई है. अब यह पता चलता है कि किस जानवर को किस तरह के अधिकार मिले हैं. उनके पास कई तरह के अधिकार हैं, जिनका हनन न कोई इंसान कर सकता है. न ही कोई संस्था. चाहे वह निजी हो या फिर सरकारी. इक्वाडोर के अलावा न्यूजीलैंड, कनाडा और अमेरिका के कुछ राज्यों में भी ऐसे कानून बनाए गए हैं. या फिर स्थानीय स्तर के नियम-कायदे हैं.

कोर्ट के आदेश में साफ तौर पर लिखा है कि जंगली जीवों को जीने का, बढ़ने का और विकसित होने का अधिकार है. ये उनकी इकोलॉजिकल प्रक्रिया है. जिसे किसी भी तरह से बाधित या रोक नहीं सकते. किसी भी तरह का अंतर-प्रजातीय संघर्ष नहीं करा सकते. शिकार नहीं कर सकते. जंगलों से जीवों को लाकर उन्हें घरेलू नहीं बना सकते. उनका मानवीकरण नहीं कर सकते. इस आदेश के बाद इक्वाडोर के पुराने कानून में कई बदलाव किए गए. नया कानून ज्यादा सख्त हो गया है.

ज्यादातर देशों में आमतौर पर जानवरों से संबंधित कानूनों में हर प्रजाति को वरीयता नहीं दी जाती. सिर्फ उनपर ध्यान दिया जाता है, जो विलुप्त होने की कगार पर होते हैं. या फिर खतरे में होते हैं. लेकिन इक्वाडोर में कानूनी अधिकार सभी प्रजातियों के जीवों को दिया गया है. इसलिए पूरी दुनिया में इस कानून की तारीफ हो रही है.

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