इंदौर। वैसे तो मददगार का पेशा नहीं देखा जाता कि वह कौन है, उसका अतीत क्या है, लेकिन पुलिस ऐसे लोगों के साथ अपना मंच साझा करेगी तो जनता के बीच नकारात्मक मैसेज जाएगा। कल महिला थाने में जिस डेस्क का पुलिस ने उद्घाटन किया और उसमें एक कन्फेक्शनरी कारोबारी को मददगार के रूप में शामिल किया उसके आचरण पर कई दाग लग चुके हैं। यह बात अलग है कि बाद में लीपापोती होकर मामले को ठंडा कर दिया गया हो, लेकिन आरोपों की भी बुनियाद होती है।
दरअसल कल डीआईजी हरिनारायणचारी मिश्र ने ससुराल द्वारा ठुकराई महिलाओं की मदद के लिए मां अहिल्ला स्वावलंबन डेस्क की शुरुआत की। उद्घाटन के बाद ही तीन पीडि़त महिलाओं को पुलिस ने हाथोहाथ रोजगार दिलाया। यह तो पुलिस की सराहनीय पहल है, जिसकी पूरा शहर तारीफ कर रहा है, लेकिन पुलिस ने जिन्हें रोजगार देने के लिए मददगार बनाया उनके चयन में चूक कर दी। मददगारों में एक सांवेर रोड स्थित आशा कन्फेक्शनरी के मालिक दीपक दरियानी की कंपनी में महिला को नौकरी दी गई। दीपक दरियानी का पिछला रिकार्ड जानने की पुलिस ने कोशिश नहीं की। उस पर एक कर्मचारी के अपहरण का आरोप लगा था। मामला बाणगंगा थाने में चला था, जिसमें एक बड़े पुलिस अधिकारी ने लीपापोती करते हुए मामले को जांच में ऐसा डाला जो अभी तक उभरकर सामने नहीं आया। मामले में उक्त पुलिस अधिकारी से लंबा लेन-देन भी किया गया था। लसूडिय़ा थाने में भी एक महिला ने शिकायत कर उसके भाई को हादसे में मरवाने का आरोप लगाया था। दीपक दरियानी वही शख्स है जिसका बेटा लॉकडाउन में महंगी कार से शहर में कोविड के नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए नजर आया था। पुलिस ने उसे पकड़ा था। भले ही आज कारोबारी पर लगे इन आरोपों की जो भी स्थिति हो। शिकायतकर्ता पीछे हट गए हों या फिर मामला खत्म करने की कोशिश की गई हो, लेकिन आरोप तो तर्क देकर लगाए गए थे। पुलिस अगर ऐसे लोगों के साथ अपना मददगार मंच साझा करेगी तो जनता में अच्छे मैसेज नहीं जाएंगे।