- दमोह में कम मतदान ने बढ़ाई सत्तारूढ़ पार्टी की चिंता
भोपाल। दमोह विधानसभा सीट (Damoh Vidhan Sabha Seat) पर हुए उपचुनाव का परिणाम 2 मई को आएगा। लेकिन मतदान के बाद से ही भाजपा और कांग्रेस (Congress) दोनों पार्टियां पसोपेस में फंसी हुई है। इसकी वजह है इस बार 2018 के विधानसभा चुनाव की अपेक्षा 15.46 फीसदी कम मतदान। भाजपा लगातार मंथन कर रही है कि कम मतदान की वजह क्या है। उधर कम मतदान को कांग्रेस (Congress) अपने पक्ष में देख रही है जबकि वो पिछले आम चुनाव में मतदान का प्रतिशत बढऩे के कारण चुनाव जीती थी। उपचुनाव में महिलाओं के वोटिंग (Voting) प्रतिशत में बड़ी गिरावट हुई है। दमोह विधानसभा (Damoh Vidhan Sabha) क्षेत्र के उपचुनाव के लिए 17 अप्रैल को वोट डाले गए। कुल वोटिंग (Voting) 59.81 प्रतिशत रहा। क्षेत्र में लगभग 2 लाख 40 हजार वोटर (Voter) हैं। महिला वोटरों की संख्या 1,15,455 है। इसमें से 60,770 ने अपने मताधिकार का उपयोग किया जो कि 52.64 प्रतिशत होता है। जबकि पुरूषों का मतदान प्रतिशत 66.47 रहा है। महिलाओं और पुरूषों के मतदान प्रतिशत में 14 प्रतिशत का अंतर परिणाम को किसी भी दिशा में ले जा सकता है। विधानसभा (Vidhan Sabha) के आम चुनाव में कांग्रेस (Congress) उम्मीदवार के तौर पर राहुल लोधी (Rahul Lodhi) ने यह सीट 789 वोटों के अंतर से जीता था।
2018 में पड़े थे 75 प्रतिशत से ज्यादा वोट
उपचुनाव में क्षेत्र में मतदान प्रतिशत का रिकॉर्ड बने इसके लिए चुनाव आयोग ने काफी प्रचार किया था। आम चुनाव में 75.27 प्रतिशत वोट डाले गए थे। वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में भी सत्तर प्रतिशत से अधिक वोट डाले गए थे। पिछले चुनाव में लगभग पौने दो लाख वोट में से कांग्रेस और भाजपा को 45-45 प्रतिशत वोट मिले थे। इस बार कुल 1,43,431 वोट डाले गए हैं। मतदान में 14 प्रतिशत की गिरावट से राजनीतिक दलों के समीकरण गड़बड़ा गए हैं। दोनों ही प्रमुख दलों के उम्मीदवार अपनी-अपनी जीत का दावा जरूर कर रहे हैं लेकिन, चेहरे पर आत्मविश्वास की कमी दिखाई देती है। कांग्रेस के अजय टंडन ने कहा कि मतदान प्रतिशत में गिरावट कोरोना संक्रमण फैलने के डर के कारण आई है। वहीं, भाजपा उम्मीदवार राहुल लोधी ने कहा कि कांग्रेस का वोटर हताशा के कारण मतदान केंद्र तक गया ही नहीं।
कोरोना का असर या प्रतिबद्ध वोटर में उदासीनता
मप्र में कोरोना वायरस का संक्रमण तेजी से बढ़ा है। संक्रमण बढऩे के बाद भी दमोह में चुनाव प्रचार में किसी तरह की रुकावट नहीं आई। चुनाव प्रचार थमने के तत्काल बाद से दमोह में नेताओं के कोरोना संक्रमित होने की सूचनाएं आने लगी थीं। बड़ी संख्या में कांग्रेस और भाजपादोनों के नेता संक्रमण के शिकार हुए हैं। यह माना जा रहा है कि नेताओं के संक्रमित होने की सूचना ने वोटर में असुरक्षा का भाव पैदा किया। राज्य में संक्रमण के कारण होने वाली मौत की खबरों और खराब स्वास्थ्य सेवाओं के कारण भी वोटर घर से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं दिखा सका। भाजपा के नेताओं की उदासीनता भी चर्चा का विषय बनी हुई है।
महिला मतदाताओं पर भाजपा को विश्वास
दमोह विधानसभा सीट पर पिछले तीन दशक से भी अधिक समय से भाजपा चुनाव जीतती रही है। भाजपा के जयंत मलैया वर्ष 1990 से इस क्षेत्र का लगातार नेतृत्व करते आ रहे थे। आम चुनाव में उनकी हार बेहद कम अंतर से हुई थी। मलैया वर्ष 2008 का विधानसभा चुनाव दो सौ से कम वोटों के अंतर से जीते थे। दमोह राज्य के बुंदेलखंड का महत्वपूर्ण जिला मुख्यालय है। राज्य की मुख्यमंत्री रहीं उमा भारती बुंदेलखंड इलाके से ही आती हैं। इस क्षेत्र के वोटरों पर उनका भी खासा असर है। महिला वोटरों के बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता लाडली लक्ष्मी और कन्यादान योजना के कारण बनी है। उपचुनाव में महिला वोटरों को बांधे रखने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज ने इस बात का खूब प्रचार किया था कि पंद्रह माह की कांग्रेस सरकार ने महिलाओं के हितों से जुड़ी तमाम योजनाओं को बंद कर दिया था। भाजपा की हर चुनाव में रणनीति महिला वोटरों को साधने की रहती है। महिला वोटरों का मतदान प्रतिशत बढऩे पर पार्टी अपनी जीत को लेकर आश्वस्त हो जाती है। लेकिन, दमोह में महिलाओं और पुरूषों के बीच 22 हजार से अधिक वोटों का अंतर विश्वास कमजोर कर रहा है। मतदान समाप्त होने के बाद से भाजपा और कांग्रेस के किसी भी बड़े नेता ने अपनी पार्टी की जीत का दावा नहीं किया।