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अंगदान की कमी को दूर करने मददगार साबित होगा सुअर, जानें क्‍या है अंगों की खासियत

वॉशिंगटन। अमेरिका में डॉक्टरों (US Doctors) की एक टीम ने चमत्कार कर दिखाया है. इस टीम ने एक 57 वर्षीय शख्स में जेनेटिकली मॉडिफाइड सूअर का दिल (Genetically-Modified Pig Heart) सफलतापूर्वक ट्रांसप्लांट (Transplant) किया है. मेडिकल इतिहास में यह पहली बार है और माना जा रहा है कि इससे अंगदान (Organ Donation) की कमी से निपटने में मदद मिलेगी.
वैसे इससे पहले कई जटिल मेडिकल केस में मरीज को सूअर के अंग लगाए (swine parts to the patient) गए हैं. लंबे वक्त से ऐसा माना जा रहा है कि सूअर के अंगों को जेनिटिकली मॉडिफाई (Genetically-Modified) करके मानव शरीर के लिए उपयुक्त बनाया जा सकता है. इस आर्टिकल में हम आपको ऐसे ही कुछ मेडिकल साइंस के चमत्कार के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसमें मरीज को सूअर के अंग लगाए गए…



सूअर की आंत की मदद से तैयार कर दी आर्टिफिशियल वजाइना
ये मामला चेक रिपब्लिक का है. प्राइवेट पार्ट में गंभीर समस्या से जूझ रही एक महिला का इलाज डॉक्टरों ने अनोखे तरीके से किया. इस महिला की वजाइना इतनी संकरी थी कि सेक्स करना तो दूर, डॉक्टर चेकअप भी नहीं कर सकते थे. ऐसे में सूअर की आंत की मदद से सर्जरी के जरिए इस महिला के प्राइवेट पार्ट को नए सिरे से तैयार किया गया.
चेक रिपब्लिक की यह महिला चेकअप के लिए अपने गाइनीकॉलजिस्ट के पास गई थी. डॉक्टर ने पाया कि महिला का प्राइवेट पार्ट इतना तंग है कि उसकी जांच भी नहीं की जा सकती. ऐसे में उन्होंने उसे ट्रीटमेंट के लिए पश्चिमी चेक रिपब्लिक के कस्बे प्लजे़न के यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में भेज दिया.
यहां पर जांच के बाद डॉक्टरों ने पाया कि महिला स्क्लेरोडर्मा से जूझ रही थी, जिसमें त्वचा सख्त होकर सिकुड़ जाती है. ऐसे में डॉक्टरों ने ‘मेश ऑगमेंटेड वजाइनल रीकंस्ट्रक्शन टेक्नीक’ इस्तेमाल करने का फैसला किया. इस प्रक्रिया में प्रभावित जगह पर फ्रेश टिशू लगाए जाते हैं. इसमें इंसान की त्वचा या सूअर की आंत इस्तेमाल की जाती है, क्योंकि सूअर के टिशू नरम होते हैं और उनकी बनावट भी इंसानों के टिशू की तरह होती है.

चीन में बर्न केस की सर्जरी में होता है सूअर के चमड़े का इस्तेमाल
चीन में वैज्ञानिकों ने सूअरों और मनुष्यों के जीन को मिलाकर एक नई तरह की त्वचा ( Human and pig gene hybrid ) विकसित की है, जिसे इंसानों पर लगाया जा सकता है. वैज्ञानिकों की इस खोज को जलने और एसिड हमलों के पीड़ितों के इलाज के लिए एक मील का पत्थर माना जा रहा है. म्यूटेंट ‘स्किन’ उस दिशा में एक और कदम है, जिसमें सूअरों को उन अंगों के साथ तैयार किया जा रहा है जिन्हें इंसानों में प्रत्यारोपित किया जा सकता है.
कृत्रिम ‘त्वचा’ का विकास नानचंग विश्वविद्यालय से संबद्ध अस्पताल में चीन के शोधकर्ताओं की एक टीम द्वारा किया गया है, जिसका नेतृत्व लिंचिंग जो ने किया. त्वचा का मैकाक बंदरों पर पहली बार परीक्षण किया गया था और परिणामों से पता चला कि यह 25 दिनों तक बंदर की मूल त्वचा पर स्थापित रहने में कामयाब रहा.

सूअर की किडनी से महिला को मिला जीवनदान
अमेरिका में वैज्ञानिकों को जिनोट्रांसप्लांटेशन को लेकर बड़ी सफलता मिली. वैज्ञानिकों ने एक एक्सपेरिमेंट के तौर पर सूअर की किडनी को महिला को ट्रांसप्लांट किया था. ये ट्रांसप्लांटेशन न सिर्फ सफल रहा, बल्कि किडनी ने पूरी तरह से अपना काम भी किया.
न्यूयॉर्क के NYU (न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी) के लैंगोन हेल्थ के डॉक्टरों ने एक सूअर के किडनी को महिला में ट्रांसप्लांट की है. महिला के शरीर की कोशिकाओं में बाहर से ही इस किडनी को 3 दिन तक जोड़ा गया. इस दौरान किडनी ने सामान्य रूप से अपना कामकाज किया.
ट्रांसप्लांटेशन टीम को लीड कर रहे डॉक्टर रॉबर्ट मोंटगोमरी ने कहा है कि सूअर की किडनी ने एक सामान्य इंसान की किडनी की तरह ही काम किया है. जिस महिला को किडनी ट्रांसप्लांट की गई, वो एक ब्रेन डेड महिला है. महिला की किडनी ठीक से काम नहीं कर रही थी, इस वजह से उसे लाइफ सपोर्ट पर रखा गया था. फिलहाल ये एक एक्सपेरिमेंट के तौर पर किया गया है और महिला के परिवार से इसके लिए सहमति ली गई थी.

जेनेटिकली मॉडिफाइड क्यों?
दरअसल, सूअर की जीन्स में ग्लाइकोन नाम का एक शुगर मॉलिक्यूल होता है, जो इंसानों में नहीं होता है. इस शुगर मॉलिक्यूल को हमारी बॉडी एक फॉरेन एलिमेंट की तरह ट्रीट करती है और इसे रिजेक्ट कर देती है. इस वजह से इससे पहले जब भी किडनी ट्रांसप्लांट करने की कोशिश की गई, वो फेल हो गई. वैज्ञानिकों ने इस समस्या से निपटने के लिए सूअर के जीन में पहले से ही बदलाव कर इस शुगर मॉलिक्यूल को निकाल दिया था. साथ ही जेनेटिक इंजीनियरिंग से सूअर के जीन्स में बदलाव कर किडनी का ट्रांसप्लांट किया गया.

ये कोशिशें भी हुईं फेल
जिनोट्रांसप्लांटेशन को लेकर सालों से कोशिश की जा रही है. वैज्ञानिक इससे पहले लंगूर और बंदर के अंगों को भी इंसानी शरीर में ट्रांसप्लांट करने के प्रयास कर चुके हैं. ब्लड क्लॉट्स से लेकर शरीर के इम्यून रिस्पॉन्स की वजह से ट्रांसप्लांटेशन सफल नहीं हो सके.
-जून 1992 में पहली बार किसी इंसान के शरीर में लंगूर का लीवर ट्रांसप्लांट किया गया था. ट्रांसप्लांट के 21 दिन बाद ही मरीज के पूरे शरीर में संक्रमण फैल गया था. ये संक्रमण धीरे-धीरे बढ़ता गया और 70 दिन बाद मरीज की ब्रेन हैमरेज से मौत हो गई.
-जनवरी 1993 में 62 साल के एक शख्स में लंगूर का लीवर ट्रांसप्लांट किया गया, लेकिन 26 दिन बाद ही उसकी भी मौत हो गई थी.
-1920 से लेकर 1990 तक दुनियाभर में इस क्षेत्र में काफी काम हुआ. खरगोश, बंदर से लेकर लंगूर तक के ऑर्गन इंसानों का ट्रांसप्लांट किए गए. 1990 के बाद वैज्ञानिकों ने जिनोट्रांसप्लांटेशन के लिए सूअर को सबसे मुफीद माना.

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