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मां के 100वें जन्मदिन पर घर पहुंचे PM मोदी, पैर धोकर लिया आशीर्वाद, लिखा एक भावुक ब्‍लॉग

अहमदाबाद । आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) की मां हीराबेन (Maa Hiraben) का 100वां जन्मदिन (Birthday) है। इस मौके पर पीएम मोदी गांधीनगर (Gandhinagar) स्थित आवास पहुंचे और उन्होंने मां से आशीर्वाद लिया। उन्होंने मां के पैर धोए और साथ में पूजा भी की। मां के जन्मदिन के मौके पर पीएम आज पावागढ़ के काली मंदिर में पूजा करेंगे। इसके बाद वडोदरा में एक रैली को संबोधित करेंगे। पीएम दो दिवसीय दौरे पर गुजरात पहुंचे हैं। वे राज्य को 21 हजार करोड़ रुपये की सौगात देंगे।

प्रधानमंत्री मोदी की मां हीराबेन का जन्म 18 जून 1923 को हुआ था। पीएम की मां के जन्मदिन के अवसर पर उनके गृहनगर वडनगर में धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे और उनके लंबे जीवन और स्वास्थ्य की प्रार्थना की जाएगी। रायसन क्षेत्र में 80 मीटर लंबी सड़क का नाम बदलकर पूज्य हीराबा मार्ग किया जाएगा। परिवार ने जगन्नाथ मंदिर में भंडारे की भी योजना बनाई है।


काली मंदिर में करेंगे ध्वजारोहण
प्रधानमंत्री मोदी आज पावागढ़ के काली मंदिर में पूजा-अर्चना करेंगे। वे मंदिर में ध्वजारोहण भी करेंगे। जानकारी के अनुसार, मंदिर में 500 साल बाद ध्वजारोहण किया जाएगा। इस मंदिर से खुद उनकी आस्था जुड़ी हुई है। इस मंदिर में देवी के दर्शनों के लिए भक्तों को रोपवे का सहारा लेना पड़ता है क्योंकि मंदिर पर्वत पर स्थित है। इसके बाद 250 सीढ़ियां चढ़ने के बाद माता के दर्शन होते हैं।

मातृशक्ति योजना का करेंगे उद्घाटन
प्रधानमंत्री आज सुबह पावागढ़ में काली मंदिर में पूजा करेंगे। इसके बाद वे विरासत वन की यात्रा करेंगे। दोपहर को वडोदरा में पीएम गुजरात गौरव अभियान में हिस्सा लेंगे। इस दौरान वे 16 हजार करोड़ से अधिक की रेलवे परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास करेंगे। वे आज गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय का शिलान्यास और मुख्यमंत्री मातृशक्ति योजना की भी शुरुआत करेंगे।

भावुक कर देगा PM मोदी का ये ब्लॉग
प्रधानमंत्री मोदी की मां ने भी जन्मदिन पर मिलने पहुंचे बेटे का मुंह मीठा कराया और आशीर्वाद दिया. PM ने अपनी मां के जन्मदिन के खास मौके पर एक ब्लॉग भी लिखा है. इस ब्लॉग में उन्होंने मां से जुड़ी अपने बचपन की यादों को साझा किया है.

PM मोदी लिखते हैं, ”मेरी मां, हीराबा आज 18 जून को अपने सौवें वर्ष में प्रवेश कर रही हैं. यानी उनका जन्म शताब्दी वर्ष प्रारंभ हो रहा है. पिताजी आज होते, तो पिछले सप्ताह वो भी 100 वर्ष के हो गए होते. यानि 2022 एक ऐसा वर्ष है जब मेरी मां का जन्मशताब्दी वर्ष प्रारंभ हो रहा है और इसी साल मेरे पिताजी का जन्मशताब्दी वर्ष पूर्ण हुआ है.

मेरी मां का जन्म, मेहसाणा जिले के विसनगर में हुआ था. वडनगर से ये बहुत दूर नहीं है. मेरी मां को अपनी मां यानी मेरी नानी का प्यार नसीब नहीं हुआ था. एक शताब्दी पहले आई वैश्विक महामारी का प्रभाव तब बहुत वर्षों तक रहा था. उसी महामारी ने मेरी नानी को भी मेरी मां से छीन लिया था. मां तब कुछ ही दिनों की रही होंगी. उन्हें मेरी नानी का चेहरा, उनकी गोद कुछ भी याद नहीं है. आप सोचिए, मेरी मां का बचपन मां के बिना ही बीता, वो अपनी मां से जिद नहीं कर पाईं, उनके आंचल में सिर नहीं छिपा पाईं. मां को अक्षर ज्ञान भी नसीब नहीं हुआ, उन्होंने स्कूल का दरवाजा भी नहीं देखा. उन्होंने देखी तो सिर्फ गरीबी और घर में हर तरफ अभाव.

बचपन के संघर्षों ने मेरी मां को उम्र से बहुत पहले बड़ा कर दिया था. वो अपने परिवार में सबसे बड़ी थीं और जब शादी हुई तो भी सबसे बड़ी बहू बनीं. बचपन में जिस तरह वो अपने घर में सभी की चिंता करती थीं, सभी का ध्यान रखती थीं, सारे कामकाज की जिम्मेदारी उठाती थीं, वैसे ही जिम्मेदारियां उन्हें ससुराल में उठानी पड़ीं. इन जिम्मेदारियों के बीच, इन परेशानियों के बीच, मां हमेशा शांत मन से, हर स्थिति में परिवार को संभाले रहीं.

वडनगर के जिस घर में हम लोग रहा करते थे वो बहुत ही छोटा था. उस घर में कोई खिड़की नहीं थी, कोई बाथरूम नहीं था, कोई शौचालय नहीं था. कुल मिलाकर मिट्टी की दीवारों और खपरैल की छत से बना वो एक-डेढ़ कमरे का ढांचा ही हमारा घर था, उसी में मां-पिताजी, हम सब भाई-बहन रहा करते थे.

उस छोटे से घर में मां को खाना बनाने में कुछ सहूलियत रहे इसलिए पिताजी ने घर में बांस की फट्टी और लकड़ी के पटरों की मदद से एक मचान जैसी बनवा दी थी. वही मचान हमारे घर की रसोई थी. मां उसी पर चढ़कर खाना बनाया करती थीं और हम लोग उसी पर बैठकर खाना खाया करते थे.

घर चलाने के लिए दो चार पैसे ज्यादा मिल जाएं, इसके लिए मां दूसरों के घर के बर्तन भी मांजा करती थीं. समय निकालकर चरखा भी चलाया करती थीं क्योंकि उससे भी कुछ पैसे जुट जाते थे. कपास के छिलके से रूई निकालने का काम, रुई से धागे बनाने का काम, ये सब कुछ मां खुद ही करती थीं. उन्हें डर रहता था कि कपास के छिलकों के कांटें हमें चुभ ना जाएं.”

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