ब्‍लॉगर

नशाबंदी-जीवदयाः भारत बेमिसाल

– डॉ. वेदप्रताप वैदिक

आज दो खबरों ने मेरा ध्यान खींचा। एक तो काबुल में तालिबान सरकार ने तीन हजार लीटर शराब जब्त की और उसे प्रचारपूर्वक काबुल नदी में बहा दिया और दूसरी खबर है, जैन मुनि निर्णयसागर के संकल्प की! मप्र के अशोकनगर की गोशाला में भूखों मरती गायों के लिए समुचित भोजन जुटाना उनका लक्ष्य था। उन्होंने कहा कि जब तक इन लगभग 700 गायों के खाने की व्यवस्था नहीं होती, वे भी कुछ खाएंगे-पिएंगे नहीं। उनकी यह घोषणा होते ही 15 मिनट के अंदर जैन भक्तों ने 23 लाख रु. जुटा दिए और कुछ जैन महिलाओं ने अपने जेवर उतारकर मुनिजी के चरणों में रख दिए। मुझे ये दोनों प्रसंग आपस में जुड़े हुए लगते हैं। एक है, नशाबंदी का और दूसरा है- जीवन दया का!

कुरान शरीफ में शराब पीने की इजाजत उस तरह से नहीं है, जैसी बाइबिल और कुछ धर्मग्रंथों में है। कुछ मुसलमान मित्र कुरान की एक आयत का हवाला देते हुए कहते हैं कि कुरान सिर्फ इतना कहती है कि शराब पीने से जितना फायदा है, उससे ज्यादा नुकसान होता है। यदि नशा न हो तो आप थोड़ी-बहुत पी सकते हैं। कुरान की आयत की ऐसी मनपसंद व्याख्या करके कई मुसलमान शराब-पान की छूट ले लेते हैं।

मैंने अपनी पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान-यात्राओं के दौरान देखा है कि बड़े-बड़े मुसलमान नेताओं, फौजी अफसरों और उद्योगपतियों के तलघरों में बाकायदा शराबखाने खुले हुए हैं जबकि मुस्लिम देशों में शराब-पान को कानूनी अपराध माना जाता है और कुछ देशों में शराबियों को पकड़कर उनको सरेआम कोड़े लगाए जाते हैं।

तालिबान का शराबबंदी-अभियान सराहनीय है। कुरान, पुराण, बाइबिल आदि धर्मग्रंथ नशाबंदी का समर्थन करें या न करें लेकिन यह इसलिए त्याज्य है कि नशे में मनुष्य की चेतना नष्ट हो जाती है। मनुष्य, मनुष्य नहीं रहता। जानवर और उसमें फर्क नहीं रह जाता।

ऐसा ही मामला जीव-दया का है। कोई भी धर्मशास्त्र, यहां तक कि बाइबिल, पुराण, कुरान, गुरु ग्रंथ साहब आदि यह कहीं नहीं कहते कि जो मांस नहीं खाएगा, वह घटिया ईसाई या घटिया हिंदू या घटिया मुसलमान या घटिया सिख बन जाएगा। तो फिर मांस खाना जरूरी क्यों है? मांसाहार खर्चीला है, स्वास्थ्य-नाशक है और हिंसक है। मांस किसी का भी हो, अखाद्य हैं। प्राणी भूखे भी न मरें- यह सच्ची जीव-दया है।

भारत का शाकाहार और जीव-दया के मामले में जो इतिहास है, वह बेमिसाल है। दुनिया का कोई देश ऐसा नहीं है, जिसकी तुलना भारत से की जा सके। भारत में जितने लोग मांस मुक्त और नशा मुक्त जीवन जीते हैं, उतने दुनिया के किसी देश में नहीं हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और जाने-माने स्तंभकार हैं।)

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