ब्‍लॉगर

राष्ट्रपति का जन सरोकार

डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
भारत में संसदीय प्रजातन्त्र है। इसमें राष्ट्रपति देश का संवैधानिक प्रमुख होता है। आमजन के प्रति संघीय स्तर पर सीधी जिम्मेदारी व जबाबदेही प्रधानमंत्री की होती है। यह संवैधानिक व्यवस्था राष्ट्रपति को आमजन से दूर करती है। उनके प्रायः सभी कार्यक्रम इस व्यवस्था व मर्यादा के अनुरूप होते हैं। सुरक्षा व प्रोटोकाल के बंधन भी कम नहीं होते। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद स्वयं इन बंधनों का उल्लेख करते हैं। उन्होंने कहा कि वह पिछली यात्राओं के दौरान ही अपने गांव आना चाहते थे लेकिन सुरक्षा कारणों से ऐसा नहीं हो सका।
इसबार वे विशेष ट्रेन से कानपुर आये थे। परौंख में तो उत्सव जैसा माहौल रहा। राष्ट्रपति के आगमन की सूचना मिलने के बाद अन्यत्र रहने वाले यहां के निवासी भी पहुंच गए थे। इस गांव में पांच हेलीपैड बनाए गए थे। तीन हेलीपैड राष्ट्रपति के हेलीकॉप्टर के लिए और एक-एक मुख्यमंत्री और राज्यपाल के लिए हेलीकॉप्टर के लिए था। जनसभा के माध्यम से राष्ट्रपति का आमजन से संवाद हुआ। इसमें पांच हजार लोगों के सोशल डिस्टेंसिंग के साथ बैठने की व्यवस्था की गई थी। यहां पर आसपास के ग्राम पंचायतों के नौ ग्राम प्रधान ने राष्ट्रपति का स्वागत किया।
परौंख गांव पहुंचते ही राष्ट्रपति सबसे पहले पथरी देवी मंदिर पहुंचे। उनके साथ उनकी पत्नी सविता कोविंद और उनकी बेटी भी थी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राज्यपाल आनंदीबेन पटेल भी उनके साथ मंदिर पहुंचीं। राष्ट्रपति ने पथरी देवी मंदिर में माथा टेका और परिक्रमा की। पुजारी कृष्ण कुमार बाजपेई ने पूजा संपन्न कराई। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कानपुर देहात में मेडिकल कॉलेज की स्वीकृति का ऐलान किया। राष्ट्रपति ने जनसभा को संबोधित किया। कहा कि मेरे आने से जितनी आपको खुशी है, उससे ज्यादा खुशी मुझे है। इसीलिए हेलीकॉप्टर से उतरकर अपनी धरती को चरण स्पर्श किया। उन्होंने कहा कि मैं आपके जैसा नागरिक हूं, बस संविधान में उसे प्रथम नागरिक का दर्जा है। सपने में नहीं सोचा था कि राष्ट्रपति बनकर सेवा करूंगा। हम सब बराबर की पृष्ठभूमि से हैं। प्रधानमंत्री तो यूपी ने बहुत दिए लेकिन राष्ट्रपति यूपी से पहला है। अब यूपी वालों के लिए भी राष्ट्रपति बनने का रास्ता खुल गया है। गांव में पक्के मकान बन गए, रोहनिया बाजार देखकर अच्छा लगा। राष्ट्रपति ने कहा कि मेरे सहपाठी जसवंत सिंह, चंद्रभान सिंह, दशरथ सिंह बहुत याद आते हैं। कोरोना काल में फिटनेस और प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ावा देने की कोशिश है। खुद को टीका लगवाएं और दूसरों को भी प्रेरित करें। गांव वालों को राष्ट्रपति भवन देखने की व्यवस्था खुद करूंगा। आप लोग आएं और देखें।

परौख में तीस व पुखरायां में राष्ट्रपति से मिलने के लिए कुल छड़सठ लोग व्यक्तिगत रूप में राष्ट्रपति से मिले। दिल्ली से कानपुर आते समय रामनाथ कोविंद रूरा व झींझक स्टेशन पर रुके थे। स्थानीय लोगों से संवाद किया। कहा कि इस धरा से मेरा पुराना नाता है। परौंख मेरी जन्मभूमि और मातृभूमि है। मगर झींझक स्टेशन पर आकर आज मैं सभी का आशीर्वाद लेने आया हूं। उन्होंने अपनी पुरानी यादें ताजा कीं। कहा कि जब मैं झींझक आया करता था और घंटों इसी स्टेशन पर बैठा करता था। यहां के मेरे बहुत करीबी बाबूराम बाजपेई और रसूलाबाद के रामबिलास त्रिपाठी रहे। ईश्वर की महिमा है आज दोनों लोग ईश्वर की शरण में हैं। प्रोटोकॉल की वजह से दूरी है दिल से नहीं है। उन्होंने कहा कि इन दो नामों का मैंने उल्लेख किया है परन्तु अनगिनत लोग बिछड़ गए। आज मैं उन आत्माओं को याद करता हूं। उन्होंने कहा मेरा झींझक आने का कार्यक्रम नहीं था, लेकिन दिल्ली से चलने पर रेलमंत्री से मुलाकात होने पर उन्होंने कहा कि आपके गांव के समीपस्थ झींझक और रुरा स्टेशन है। इसके चलते आज मैं यहां उपस्थित हूं। मगर यहां आकर बेहद खुशी मिली। उन्होंने कहा कि एक बात और कि कानपुर देहात में डीएफसी निर्माण हुआ। साथ ही फ्रंट कॉरिडोर से भी लोगों को बहुत फायदा होगा।
उन्होंने संबोधित करते हुए कहा कि आप भी भारत के नागरिक हैं और मैं भी भारत का नागरिक हूं। बस फर्क सिर्फ इतना है कि राष्ट्रपति होने के नाते मुझे कतार में आगे खड़ा किया गया है। मगर इस सरजमीं से बड़ा ही पुराना नाता है। उन्होंने कहा कि जब मैं दिल्ली से ट्रेन से निकला तो सभी स्टेशनों पर बहुत सुविधाएं दिखाई दीं जिन्हे देखकर बेहद खुशी हुई। मगर फिर भी कहना चाहता हूं कि जितना हो सके अधिक से अधिक सुविधायें रेल यात्रियों को दी जाएं। कहा कि जब मैं जब सांसद था तो जिन ट्रेनों का ठहराव कराया था शिकायत मिली कि बंद हुईं। उन्होंने कहा कि कोरोना के चलते जो ट्रेनें बंद हुई वो सभी पुनः शुरू होंगी। देश आजाद हुआ बहुत तरक्की हुई है, लेकिन बहुत कुछ बाकी है। देश की तरक्की में हम सबको योगदान देना चाहिए। हम सभी देश के नागरिक हैं। हम अधिकारों की बात बहुत करते हैं, हम सबके दायित्व हैं।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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