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रिपोर्ट में खुलासा: अर्धसैनिक बलों में 50 हजार से अधिक जवानों ने नौकरी छोड़ी

नई दिल्‍ली (New Delhi)। हाल ही में राज्यसभा में जारी की गई संसदीय समिति की रिपोर्ट (Parliamentary Committee report) में बताया गया है कि अर्धसैनिक बलों (paramilitary forces) के कम से कम 50155 जवानों ने पिछले पांच वर्षों में जॉब छोड़ी है। इसके अतिरिक्त सुसाइड करने वाले कर्मियों की संख्या में भी बढ़ोत्तरी हुई है। संसदीय समिति ने मुद्दे में चिंता व्यक्त की और गवर्नमेंट से अर्धसैनिक बलों के जवानों के काम करने की स्थिति में महत्वपू्र्ण सुधार करने और कर्मियों को बल में रहने के लिए प्रेरित करने के तुरन्त तरीका सुझाए हैं!

जानकारी के लिए बता दें कि गृह विभाग से संबंधित एक संसदीय समिति की रिपोर्ट से पता चला है कि देश के छह अर्धसैनिक बलों के लगभग 50,155 कर्मियों ने पिछले पांच वर्षों में अपनी नौकरी छोड़ी है। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि यह स्तर बलों में काम करने की स्थिति को प्रभावित कर सकता है। इसलिए काम करने की स्थिति में महत्वपूर्ण सुधार के लिए तत्काल उपाय किए जाने चाहिए।



जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021-2022 में असम राइफल्स और केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) के मामले में नौकरी छोड़ने की दर में वृद्धि हुई है। बीएसएफ, सीआरपीएफ और आईटीबीपी के मामले में स्थिति समान रही है। इस दौरान सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) के मामलों में पिछले वर्ष के आंकड़ों की तुलना में कमी आई थी। वर्ष 2018 और 2022 के बीच, बल छोड़ने वाले 50,155 कर्मियों में से, सबसे अधिक बीएसएफ (23,553) में थे, इसके बाद सीआरपीएफ (13,640) और सीआईएसएफ (5,876) थे। वर्ष 2021 और 2022 के बीच असम राइफल्स में नौकरी छोड़ने वालों की संख्या 123 से 537 तक और सीआईएसएफ में 966 से बढ़कर 1706 हो गया है, जबकि एसएसबी में 553 से घटकर 121 हो गया है।


समस्या पुरानी, कम नहीं हो रही परेशानी

एक अधिकारी ने कहा कि सुरक्षा बलों में यह समस्या पुरानी हो गई है। कई रिपोर्ट और सिफारिशों के बाद भी स्थिति में बहुत बदलाव नहीं आया है। हालांकि, जवानों के कल्याण के लिए कई कदम उठाए गए हैं। लेकिन समय पर प्रोन्नति नहीं मिलने, लंबे समय तक कठोर तैनाती, करियर की चिंता, स्वास्थ्य संबंधी वजह या पारिवारिक कारणों से जवान वीआरएस या इस्तीफा देने जैसा कदम उठाते हैं।


जवानों की संख्या कम होने से दबाव

जवानों की कम संख्या की वजह से सौ दिन छुट्टी दे पाना संभव नहीं हो पाता। साथ ही रोटेशन नीति का भी कठोरता से पालन नहीं हो रहा। निचले स्तर पर प्रोन्नति की रफ्तार भी अपेक्षा के अनुरूप नहीं है। हालांकि, पहले की तुलना में स्थिति बेहतर हुई है। पहले एक ही पोस्ट पर सालों तक नौकरी के बाद भी प्रमोशन संभव नहीं हो पाता था।

आत्महत्या भी समस्या
वर्ष 2018 से वर्ष 2022 के दौरान 654 जवानों की आत्महत्या का मामला सामने आया। सीआरपीएफ में 230 और बीएसएफ में 174 मौत हुई है। असम राइफल्स में 43 मौत हुई। मालूम हो कि गृह मंत्रालय ने संसद में एक सवाल के जवाब में कहा था कि एक टास्क फोर्स गठित की गई है। यह आत्महत्या रोकने के लिए उपचारात्मक कदमों का सुझाव देगी।

रिपोर्ट तैयार की जा रही है। वहीं, तनाव कम करने के लिए योग, मनोवैज्ञानिक परामर्श सत्र सहित कई कदम उठाए गए हैं। बीएसएफ के पूर्व एडीजी पीके मिश्रा ने कहा कि समस्या और इलाज सबको पता है लेकिन जरूरत इस बात की है कि जमीनी स्तर पर सुधार लागू हों और अफसरों को भी इस बाबत जागरूक किया जाए कि वे कल्याण के कदम नीचे तक पहुंचाएं।

 

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