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घर के भीतर इन जगहों पर कोरोना संक्रमण का खतरा 10 गुना ज्यादा, IIT बॉम्बे का अलर्ट

मुंबई । कोविड-19 के संक्रमण (Covid-19 Infection) का खतरा घर के भीतर वाले दरवाजों, कमरे के कोनों, फर्नीचर के आसपास, वॉश बेसिन के ऊपर ज्‍यादा होता है. ऐसे स्‍थानों पर हवा का धीमा प्रवाह होता है, जिससे यहां कोरोनावायरस (Coronavirus) 10 गुना अधिक समय तक हवा में रह सकते हैं. यह जानकारी आईआईटी बॉम्‍बे (IIT Bombay) के शोधकर्ताओं ने दी है. उन्‍होंने कहा है कि कमरों में उचित वेंटिलेशन होना चाहिए, ताकि ताजी हवा कमरे में आती रहे. अपने शोध में उन्‍होंने सा‍र्वजनिक शौचालय में वायु प्रवाह का अध्‍ययन किया. उनका कहना है कि बंद कमरों, बंद वॉश रूम्‍स आदि में खतरा अधिक है, ऐसे में अधिक से अधिक सावधानी बरतनी चाहिए.


शोधकर्ताओं ने कहा कि संक्रामक बीमारी फैलाने वाले एरोसोल ऐसे कमरों, कोनों और स्‍थानों पर 10 गुना अधिक समय तक रह सकते हैं, जहां उचित वेंटिलेशन न हो. उन्‍होंने कहा कि ऐसे समय जब रेस्‍तरां, थिएटर, मॉल और स्‍कूल-कॉलेज सहित अन्‍य सार्वजनिक स्‍थानों को बड़ी संख्‍या में खोला जा रहा है. तब हमें और अधिक सावधानी बरतने की जरूरत है. टीम ने कहा कि आदर्श रूप से एक कमरे में हवा को लगातार ताजी हवा से बदलते रहना चाहिए, लेकिन दरवाजों के पीछे, कोनों में, फर्नीचर के आसपास या किसी बाधा के पीछे के क्षेत्र में यह बदल नहीं पाती.

कंप्‍यूटर सिमुलेशन का उपयोग कर पहचानी कमरे में हवा की मौजूदगी
शोधकर्ताओं ने ऐसे स्‍थानों को मृत क्षेत्र कहा है, जिनमें हवा लंबे समय तक फंसी रहती है और गोलाकार गति में चलती है. हालांकि खिड़कियां, पंखे, एयर कंडीशनर और एग्‍जॉस्‍ट पंखे एक कमरे के अधिकांश हिस्‍सों को ठीक से हवादार रखते हैं. शोधकर्ता और एयरोस्‍पेस इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर कृष्‍णेंदु सिन्‍हा ने कहा कि अध्‍ययन के लिए कंप्‍यूटर सिमुलेशन का उपयोग कर कमरे में क्षेत्रों में मौजूद हवा के क्षेत्रों की पहचान की गई. शोधकर्ताओं को यह अध्‍ययन करने के लिए प्रेरित किया गया था कि बंद कमरों में हवा के बहने को बेहतर तरीके से कैसे प्रतिबंधित कर सकते हैं. इसके जरिए कोविड संचरण को कम करने के लिए बंद कमरों में उचित वेंटिलेशन के महत्‍व का प्रदर्शन किया गया. इसमें कंप्‍यूटर सिमुलेशन का उपयोग प्रभावी रहा.

वॉशरूम का कंप्‍यूटर मॉडल बनाकर समझा वेंटिलेशन सिस्‍टम
शोधकर्ताओं ने अध्‍ययन के लिए वॉशरूम का एक कंप्‍यूटर मॉडल बनाया और पाया कि वॉश बेसिन के ऊपर का क्षेत्र एक मृत क्षेत्र पाया गया था. प्रोफेसर ने कहा कि वेंटिलेशन सिस्‍टम अक्‍सर प्रति घंटे (एसीएच) हवा में परिवर्तन को ध्‍यान में रखते हुए डिजाइन किए जाते हैं. यह माना जा रहा है कि हर कोने को ताजी हवा मिल रही है, लेकिन सिमुलेशन से पता चला कि कुछ कोनों में खुले हिस्‍सों की तरह ताजी हवा नहीं मिलती. यदि ऐसे स्‍थानों पर संक्रमित लोग हों, या वे इस क्षेत्र का उपयोग करते हों तो यहां संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है. ऐसे में जरूरी है कि ताजी हवा तेजी से पंप होती रहनी चाहिए. उन्‍होंने कहा कि कोविड संक्रमित व्‍यक्ति द्वारा वॉशरूम का उपयोग करने के बाद संक्रमण बढ़ जाती है, क्‍योंकि ऐसे स्‍थानों पर संक्रामक एरोसोल किसी अन्‍य हवादार हिस्‍सों की तुलना में 10 गुना अधिक समय तक रह सकता है.

शोधकर्ताओं ने बताया ऐसे करें बचाव
प्रोफेसर सिन्‍हा ने बताया कि इस टीम में मणिशंकर यादव, उत्कर्ष वर्मा और आईआईटी-बी के जननी एस मुरलीधरन और विवेक कुमार (पुणे स्थित एक फर्म से) शामिल थे. इनके द्वारा 2 नवंबर को जर्नल फिजिक्स ऑफ फ्लूड्स में ‘इफेक्ट्स ऑफ रीसर्क्युलेशन जोन ऑन द वेंटिलेशन ऑफ ए पब्लिक वॉशरूम’ शीर्षक से अध्ययन प्रकाशित किया गया था.

कोरोना संक्रमण और संक्रामक एरोसोल से बचने के लिए शोधकर्ताओं ने कई सुझाव दिए हैं. उनका कहना है कि कमरे में उचित वेंटिलेशन होना चाहिए. जहां से हवा की निकासी तेजी से नहीं हो पाती है ऐसे मृत क्षेत्रों में अतिरिक्‍त पंखे, खिड़कियां आदि होनी चाहिए. कमरे को हवादार करने के लिए प्रबंध होने चाहिए. वॉशरूम को हवादार करने के लिए एग्‍जॉस्‍ट पंखे जरूर होने चाहिए. वहीं वॉश बेसिन खुले स्‍थान पर होना चाहिए.

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