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‘सेंगोल’: 7 दशक तक बना रहा सोने की छड़ी, अब प्राचीन भारतीय परंपरा होगी पुनर्जीवित

नई दिल्ली (New Delhi)। अगस्त 1947 में ब्रिटेन से सत्ता हस्तांतरण के समारोह (Britain’s transfer of power ceremony) में इस्तेमाल किए जाने के बाद सेंगोल (Sengol) को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) (Allahabad (now Prayagraj)) के आनंद भवन संग्रहालय की नेहरू गैलरी में रख दिया गया था। संग्रहालय में इसे पंडित नेहरू को भेंट (presented to Pandit Nehru) की गई सुनहरी छड़ी (Golden stick) के तौर पर रखा रहा। असल में भारत के अलग-अलग राज्यों में राजदंड के इस्तेमाल की परंपरा हजारों वर्ष पुरानी है। मौर्य काल में 300 ईसा वर्ष पूर्व भी इसके इस्तेमाल के सबूत मिलते हैं। भारत ही नहीं दुनियाभर में राजदंड को न्यायपूर्ण शासन का प्रतीक माना जाता है। इसी माह ब्रिटिश सम्राज के राज्याभिषेक (coronation) के दौरान भी उन्हें राजदंड सौंपा गया था।

पीएम मोदी को दिए जाने की बात कहां से आई
पिछले वर्ष तमिलनाडु में आजादी के अमृत महोत्सव व काशी-तमिल संगमम के दौरान इसकी चर्चा हुई। पीएम मोदी ने इसके संबंध में विस्तार से जानकारी ली और तय किया कि इसे नए संसद भवन में विधि-विधान से स्थापित किया जाएगा। 28 मई को 15, अगस्त, 1947 की भावना के साथ ही प्राचीन भारतीय परंपरा को पुनर्जीवित करते हुए आधीनम मठ के पुजारी कोलारु पदिगम गाते हुए सेंगोल को गंगा जल से शुद्ध कर प्रधानमंत्री मोदी को सौंपेंगे।


उपेक्षा पर सोशल मीडिया पर घमासान
देश के नए संसद भवन में सेंगोल को रखे जाने की घोषणा के साथ ही सोशल मीडिया पर घमासान शुरू हो गया है। सेंगोल को आनंद भवन संग्रहालय में पंडित नेहरू को भेंट की गई सुनहरी ‘छड़ी’ के तौर पर रखे जाने की बात सुनकर लोग भड़के हुए हैं। इतिहास, अंतरराष्ट्रीय संबंध और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े विषयों पर लिखने वाले दिव्य कुमार सोति कहते हैं, यह शर्म की बात है कि नेहरू खानदान के बनाए कॉमी इकोसिस्टम ने सेंगोल (राजदंड) को चलने की छड़ी (बेंत) बनाकर रख दिया। राजनीति विश्लेषक हिमांशु जैन लिखते हैं, इस तरह की तमाम चीजें हैं, जो अगर मोदी पीएम नहीं होते, तो हम लोग कभी जान भी नहीं पाते।

तब गंगाजल छिड़का, भजन गाए
जब राजदंड को पंडित नेहरू को सौंपा गया, तो अधीनम मठ के पुजारियों ने सेंगोल पर गंगाजल छिड़का और पारंपरिक शैव भजन गाते हुए इसे नेहरू को सौंपा गया। आखिर में नेहरू आशीर्वाद देते हुए कहा, अदियार्गल वैनिल अरसलवार अनाई नमथे यानी हमारी आज्ञा से आपकी विनम्रता स्वर्ग पर भी शासन करेगी।

दिलचस्प है तमिल परंपरा के देश की आजादी का प्रतीक बनने की कहानी
जब यह तय हो गया था कि 15 अगस्त, 1947 को भारत आजाद हो जाएगा, तो पंडित नेहरू ने सी राजगोपालाचारी से सत्ता हस्तांतरण को लेकर चर्चा की और पूछा कि इसे किस तरह किया जाए। इस पर राजगोपालाचारी ने तमिलनाडु में चोल राजाओं की सेंगोल के जरिये सत्ता हस्तांतरण की परंपरा के बारे में बताया। नेहरू को यह विचार पसंद आया और राजगोपालाचारी का इसका प्रबंध करने को कहा।

राजगोपालाचारी ने गैर-ब्राह्मण थिरुवदुथुरै अधीनम मठ के 20वें राजगुरु अम्बालावन देसिका स्वामीगल से संपर्क किया। वे खुद तो बीमार थे, लेकिन उन्होंने इसकी जिम्मेदारी ली और राजदंड बनवाया। 14 अगस्त, 1947 की रात मद्रास से विशेष विमान से दिल्ली पहुंचे अधीनम मठ के ही पुजारी कुमारस्वामी थम्बिरन ने अम्बालावन देसिका स्वामीगल की तरफ से रात रात 11:45 बजे माउंटबेटन को सेंगोल सौंपा, जिन्होंने इसे भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को सौंपा गया।

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