टेक्‍नोलॉजी

Asthma के मरीजों के लिए कारगर है शार्प की plasmacluster technology

नई दिल्ली! शार्प कॉर्पोरेशन (Sharp Corporation) जापान की पूर्ण स्वामित्व की भारतीय सब्सिडरी शार्प बिज़नेस सिस्टम्स (India) प्र्रा. लिमिटेड जिसे आधुनिक तकनीक के उत्पादों एवं समाधानों के लिए जाना जाता है, ने आज नए अध्ययन के परिणाम जारी किए। अध्ययन में इस बात की पुष्टि हुई है कि शार्प एयर प्यूरीफायर में मौजूद प्लाज़्माक्लस्टर आयन टेकनोलॉजी (plasmacluster technology) सांस की बीमारियों जैसे दमा (Asthma) के लक्षणों को कम करने में कारगर है, जो भारत में रूग्णता एवं मृत्यु के मुख्य कारणों में से एक है। रेस्पीरेटरी मेडिसिन एवं स्टैम सैल शोध में विशेषज्ञ डॉ मुनेमासा मोरी ने संयुक्त राज्य अमेरिका के जाने-माने शोध संस्थान कोलम्बिया युनिवर्सिटी इरविंग मेडिकल सेंटर में यह अध्ययन किया।

नाक से फेफड़ों तक सांस की नलियों (रेस्पीरेटरी ट्रैक्ट एयरवे) तथा इनकी एपीथिलियल सैल लाइनिंग पर प्लाज़्माक्लस्टर आयन के प्रभावों की जांच के लिए यह अध्ययन किया गया। ये एपिथिलियल सैल्स सांस की नलियों में बनने वाले म्युकस को साफ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। अक्सर बाहरी कण अंदर आने से म्युकस का स्राव बढ़ जाता है, और इन नलियों में मौजूद मोटाइल सिलिएटेड सैल्स एक ही दिशा में गति कर म्युकस को साफ करती हैं। अध्ययन के तहत सिलिएटेड एवं सेक्रेटरी एपिथिलियल सैल्स के बीच अंतर करने के लिए ह्मन एयरवे टिश्यू स्टैम सैल्स को इंडयूस किया गया। इस तरह कल्चर्ड सैल्स (कोशिकाओं) ने शीट जैसी संरचना का निर्माण किया, जिसे अधिकतम 24 घण्टे के लिए प्लाज़्माक्लस्टर आयन के संपर्क में रखा गया।



अध्ययन के तहत शोधकर्ताओं ने पाया कि दमा के मरीज़ों में सांस की समस्याओं को बढ़ाने वालो विस्कस म्युकस में कमी आई, और कम विस्कोसिटी वाले म्युकस से युक्त स्मूद प्रोटीन का स्राव बढ़ गया, जिससे मरीज़ की सांसों में सुधार आया। इन बदलावों से सांस की नलियों में म्युकस के स्राव में सुधार हुआ, जो दमा यानि अस्थमा के मरीज़ों की मुख्य समस्या है।

इस अवसर पर नरीता ओसामू, मैनेजिंग डायरेक्टर, शार्प बिजनेस सिस्टम्स (इंडिया) प्रा. लिमिटेड ने कहा, ‘‘भारतीय शहरों में लगातार बढ़ते प्रदूषण के चलते नई समस्याएं पैदा हुई हैं, इसकी वजह से साफ और प्राकृतिक हवा में सांस लेना मुश्किल हो गया है। बच्चों, वरिष्ठ नागरिकों और दमा जैसी बीमारियों से पीड़ित मरीज़ों के लिए यह प्रदूषण और भी खतरनाक है, जो जानलेवा तक हो सकता है। इन सभी बढ़ती चुनौतियों के बीच हाल ही में किए गए अध्ययन में प्लाज़्माक्लस्टर आयन टेकनोलॉजी के सकारात्मक प्रभाव सामने आए हैं, जो सांस की नलियों में विस्कस म्युकस के स्राव को कम करने में कारगर है और दमा के मरीज़ों को राहत देती है। शार्प एयर प्युरीफायर इंडोर हवा से ज़हरीले प्रदूषकों को बाहर निकालने में कारगर साबित हुए हैं, हम विशेषज्ञों एवं संस्थानों के साथ मिलकर अपने प्रोडक्ट्स को और बेहतर एवं प्रभावी बनाने के लिए काम कर रहे हैं, ताकि हर व्यक्ति साफ और सुरक्षित हवा में सांस ले सके।’

डॉ मुनेमासा मोरी, असिस्टेन्ट प्रोफेसर, कोलम्बिया युनिवर्सिटी, डिपार्टमेन्ट ऑफ मेडिसिन ने कहा, ‘‘मैं इस बात पर अध्ययन करना चाहता था कि कैसे प्लाज़्माक्लस्टर टेकनोलॉजी वायरस के प्रभाव को कम कर मनुष्य के रेस्पीरेटरी सिस्टम (श्वसन तंत्र) पर सकारात्मक प्रभाव उत्पन्न कर सकती है। इसलिए मैंने अपनी टीम के साथ मिलकर यह प्रयोग किया। हमने मनुष्य की एपिथिलियल सैल्स को सीधे प्लाज़्माक्लस्टर आयन के संपर्क में रखा और पाया कि म्युकस के निर्माण में बदलाव आए। यह बेहद महत्वपूर्ण परिणाम है क्योंकि इससे दमा के मरीज़ों को सैल्युलर स्तर पर राहत मिलेगी। हम मरीज़ों की सैल्स पर प्लाज़्माक्लस्टर आयन के प्रभावों की जांच के लिए भी उत्सुक हैं, और इसके लिए नई प्रणाली की खोज में जुटे हैं। मुझे विश्वास है कि प्लाज़्माक्लस्टर टेक्नोलॉजी में हुई यह आधुनिक प्रगति मरीज़ों के लिए बेेहद कारगर साबित होगी।’

साल 2000 में प्लाज़्माक्लस्टर आयन टेक्नोलॉजी से युक्त पहले एयर प्यूरीफायर की शुरूआत के बाद से शार्प की प्रॉपराइटरी एयर प्यूरीफिकेशन टेक्नोलॉजी नोवल कोरोनावायरस, बैक्टीरिया, मोल्ड एवं दुर्गंध को दूर करने में बेहद कारगर साबित हुई है। शार्प अब तक दुनिया भर में 23 श्रेणियों में 100 मिलियन से अधिक प्रोडक्ट्स बेच चुका है, प्लाज़्माक्लस्टर आयन टेकनोलॉजी से युक्त इन प्रोडक्ट्स में एयर प्यूरीफायर, एयर कंडीशनर, रेफ्रीजरेटर और अन्य प्रोडक्ट कैटेगरीज़ शामिल हैं। पीसीआई टेकनेालॉजी की जांच आईआईटी दिल्ली सहित दुनिया के 35 से अधिक वैज्ञानिक संस्थानों में की जा चुकी है, जहां इसकी प्रमाणिकता की पुष्टि भी हुई है।

प्लाज़्माक्लस्टर टेकनोलॉजी से नेगेटिव चार्ज वाले ऑक्सीजन और पॉज़िटिव चार्ज वाले हाइड्रोजन आयन एक साथ हवा में डिस्चार्ज हो जाते हैं, पॉज़िटिव और नेगेटिव आयन तुरंत हवा के जर्म्स, फंगस, वायरस और एलर्जन से कनेक्ट हो जाते हैं। रसायनिक प्रक्रिया के द्वारा उनकी सतह पर प्रोटीन को डीग्रेड कर यह एयर फिल्ट्रेशन तकनीक बैक्टीरियल गतिविधि को कम करता है। जापान के बाहर 13 से अधिक जांच संस्थानों ने प्लाज़्माक्लस्टर टेक्नेालॉजी की प्रभाविता की पुष्टि की है, जो हवा में फेलने वाले सेरेटिया बैक्टीरिया को नष्ट करने में मददगार है, जो अस्पताल अधिग्रहीत इन्फेक्शन (डॉ मेल्विन डब्ल्यू, फर्स्ट, यूएस) हवा से फैलने वाले इन्फलुएंज़ा वायरस (इंस्टीट्यूट पास्चर, वियतनाम) का स्रोत है। इसके अलावा इस तकनीक को टीबी अस्पताल में टीबी इन्फेक्शन (नेशनल सेंटर ऑफ ट्यूबरकुलोसिस एण्ड लंग डिज़ीज़ेज़, जॉर्जिया) के जोखिम को कम करने में भी मददगार पाया गया है।

कोलम्बिया युनिवर्सिटी, यूएसए द्वारा की गई जांच के परिणाम
जांच के दौरान मनुष्य की सांaस की नलियों में किसी तरह के बदलाव या नकारात्मक परिणाम नहीं पाए गए, 24 घण्टे तक सांस की नलियों की एपिथिलियल सैल्स को प्लाज़्माक्लस्टर आयन्स के संपर्क में रखने के बाद इसकी पुष्टि हुई है।

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