ब्‍लॉगर

सिंधः आजादी हाँ, अलगाव ना

– डॉ. वेदप्रताप वैदिक

पाकिस्तान में सिंध की आजादी और अलगाव का आंदोलन फिर तेज हो गया है। जीए सिंध आंदोलन के नेता गुलाम मुर्तज़ा सईद के 117 वें जन्मदिन पर सिंध के कई जिलों में जबर्दस्त प्रदर्शन हुए। इन प्रदर्शनों में नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप के पोस्टर भी उछाले गए। जीए सिंध मुत्तहिदा महाज के नेता शफी अहमद बरफत ने कहा है कि सिंध की संस्कृति, इतिहास और परंपरा पाकिस्तान से बिल्कुल अलग है और अभीतक बरकरार है लेकिन इस सिंधी राष्ट्रवाद पर पंजाबी राष्ट्रवाद हावी है। अंग्रेजों ने सिंध को जबरदस्ती पाकिस्तान में मिला लिया और अब पाकिस्तान सिंध के द्वीपों, बंदरगाहों और सामरिक क्षेत्रों को चीन के हवाले करता जा रहा है। सिंधी आंदोलनकारियों का मानना है कि जैसे 1971 में बांग्लादेश आजाद हुआ है, वैसे ही सिंध भी आजाद होकर रहेगा।


भारतीय होने के नाते हम सभी यह सोचते हैं कि पाकिस्तान के टुकड़े हो जाएं तो भारत से ज्यादा खुश कौन होगा? छोटा और कमजोर पाकिस्तान फिर भारत से भिट्टियाँ लड़ाने से बाज आएगा। इसीलिए भारत के कई नेता पाकिस्तान से सिंध को ही नहीं, पख्तूनिस्तान और बलूचिस्तान को भी तोड़कर अलग राष्ट्र बनाने की वकालत करते हैं। अफगानिस्तान के प्रधानमंत्री सरकार दाऊद खान तो पख्तून आंदोलन के इतने कट्टर समर्थक थे कि उन्होंने अपने कार्यकाल में तीन बार पाकिस्तान के साथ युद्ध-जैसा ही छेड़ दिया था। सिंधी अलगाव के सबसे बड़े नेता गुलाम मुर्तजा सईद से मेरी कई मुलाकातें हुईं। वे प्रधानमंत्री नरसिंह राव जी के जमाने में भारत भी आए। वे लगभग 20 दिन दिल्ली में रहे। वे देश के कई बड़े नेताओं से मिलते रहे। वे लगभग रोज़ ही मेरे दफ्तर आते थे और मेरे साथ लंच लिया करते थे।

जी.एम. सईद साहब सिंधियों की दुर्दशा का अत्यधिक मार्मिक चित्रण करते थे। उसके कई तथ्य मेरे अनुभव में भी थे। मैं स्वयं कराची और सिंध के कुछ इलाकों जैसे गढ़ी खुदाबक्स (बेनज़ीर की समाधि) आदि में जाता रहा हूं और सिंधी शोषण का विरोधी हूं लेकिन मैं यह मानता हूं कि यदि दूरदृष्टि से देखा जाए और पूरे दक्षिण एशिया का भला सोचा जाए तो इस विशाल क्षेत्र में किसी भी नए देश का उदय होना लाभदायक नहीं है। इन इलाकों में नागरिकों को पूर्ण आजादी और समानता मिलनी चाहिए लेकिन उनका अलगाव उनके अपने लिए भी काफी नुकसानदेह है। बांग्लादेश की तुलना इससे नहीं की जा सकती। दक्षिण एशिया में कई स्वतंत्र राष्ट्रों का खड़ा होना भारत के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द साबित हो सकता है।

(लेखक सुप्रसिद्ध पत्रकार और स्तंभकार हैं।)

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