उज्‍जैन न्यूज़ (Ujjain News)

अब तक 1 हजार करोड़ से अधिक खर्च हो चुके हैं शिप्रा की सफाई पर

  • नेता, सामाजिक संस्थाओं के अलावा साधु-महात्माओं ने भी चलाया अभियान लेकिन नहीं हो पाया काम पूरा

उज्जैन। शिप्रा नदी की सफाई के नाम पर डकैती करने का धंधा बन चुका है और अब तक विभिन्न सरकारों ने शिप्रा की सफाई के लिए 1 हजार करोड़ रुपये का अनुदान दिया है जो कहाँ गया किसी को पता नहीं है और इतना रुपया खर्च होने के बाद भी शिप्रा उसी तरह से मैली और बदबूदार बनी हुई है। शिप्रा शुद्धिकरण योजना में जमकर भ्रष्टाचार हुआ। एक बार फिर शिप्रा की सफाई की माँग उठ रही है और महाशिवरात्रि पर जो 21 लाख दीपक लगाए जा रहे हैं, उसके साथ ही सोशल मीडिया पर नाराजगी जाहिर की जा रही है कि ये शिप्रा नदी के किनारे भी गंदे हैं और उसकी शुद्धता को लेकर भी सरकार कुछ करे तथा 10 लाख पेड़ लगवाए, हर बार शिप्रा शुद्धिकरण के नाम पर प्रदेश सरकार द्वारा हजारों करोड़ रुपए फूंक दिए जाते हैं लेकिन नतीजा कुछ नहीं मिला। इसका मतलब साफ है कि शिप्रा शुद्ध नहीं करना है बल्कि उसके नाम पर केवल भ्रष्टाचार करना है।


एक हजार करोड़ रुपए की राशि कम नहीं होती लेकिन जब नई योजना बनती है तो पूर्व में क्या हुआ उस पर ध्यान नहीं रखा जाता और एक अलग डीपीआर बनाई जाती है। उक्त डीपीआर नये अधिकारी बनाते हैं जिनको कोई जमीनी हकीकत पता नहीं होती। आज भी शिप्रा नदी में गंदा पानी मिल रहा है और नदी का पानी बदबू मार रहा है। इसका कारण यह है कि नाले मिल रहे हैं और आस पास का अपशिष्ट कचरा भी मिल रहा है। जानकारी मिली है कि प्रदेश सरकार फिर से शिप्रा शुद्धिकरण के नाम पर छह सौ करोड़ की योजना बनाई वो बना रही है लेकिन इसे रोका जाना चाहिए, क्योंकि यह केवल भ्रष्टाचार के लिए हो रहा है। सिंहस्थ के पूर्व शिप्रा से कान्ह नदी को मिलने से रोकने के लिए 100 रुपए की डायवर्शन योजना बनाई थी लेकिन के उसके पाईप कहाँ डाले गए, यह पूछने पर कोई जवाब देने वाला नही है और अब फिर कोई नई योजना पर काम शुरू हो गया है और यह कब रुप ले पाएगी, इस पर विचार करना होगा।

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